
कोरापुट, ओडिशा: कोरापुट ज़िले के सुदूर मलिगुड़ा गांव में एक बुजुर्ग दंपति की जिंदगी सरकारी व्यवस्था की असफलता और समाज की उपेक्षा की दर्दनाक मिसाल बन गई है। 75 वर्षीय सुंदर गड़बा और उनकी 70 वर्षीय पत्नी बाला गड़बा एक टूटी-फूटी झोपड़ी में रह रहे हैं, जो तिरपाल और घास-फूस से बनी है।
इनका पक्का घर पहले ही गिर चुका है। दोनों बेटे रोज़गार की तलाश में आंध्र प्रदेश चले गए हैं और मां-बाप को उनके हाल पर छोड़ दिया है। अब यह दंपति पास के टांगीनिगुड़ा में एक सड़क किनारे ढाबे में काम करके जैसे-तैसे पेट पाल रहा है।
बुजुर्गों ने कई बार सरकार से वृद्धावस्था पेंशन और आवास योजना का लाभ पाने के लिए आवेदन दिया, लेकिन उन्हें आज तक कोई मदद नहीं मिली। पंचायत और वार्ड सदस्यों से की गई सारी गुहारें अनसुनी रह गईं। प्रशासन की बेरुखी का आलम यह है कि अब तक केवल 10 किलो चावल ही सरकारी सहायता के नाम पर मिला है।
बरसात के मौसम में हालत और भी बदतर हो जाती है। इनकी झोपड़ी में बारिश का पानी घुटनों तक भर जाता है और ये दोनों बूढ़े पति-पत्नी पूरी रात भीगे फर्श पर बैठकर गुज़ारने को मजबूर होते हैं।
जब इस संबंध में ब्लॉक के सामाजिक सुरक्षा अधिकारियों से पूछा गया तो उन्होंने कागजी दस्तावेजों की कमी का हवाला दिया और कहा कि रिकॉर्ड अपडेट होने के बाद कार्रवाई की जाएगी।
स्थानीय लोगों ने इस अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई है और प्रशासन से मांग की है कि सुंदर और बाला गड़बा को जल्द से जल्द पक्का घर और वृद्धावस्था पेंशन प्रदान की जाए, ताकि उनकी जिंदगी की आख़िरी घड़ियाँ सम्मान और गरिमा के साथ बीत सकें।
यह कहानी न केवल एक दंपति की पीड़ा है, बल्कि आदिवासी ओडिशा में सरकारी योजनाओं की ज़मीनी सच्चाई भी उजागर करती है।