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गयाकुण्ड में करें तर्पण ,श्राद्ध पक्ष कल से

गयाकुण्ड में करें तर्पण ,श्राद्ध पक्ष कल से

रिपोर्टर मनमोहन गुप्ता कामां 9783029649


कामां डीग जिले के कस्वा कामां कामवन धाम ब्रज क़े 12 वनों में कामवन परम श्रेष्ठ पांचवां वन है श्री कृष्ण ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शान्ति व पिंडदान क़े लिये गयाजी को आदेश दिया तथा कामवन में ही बुला लिया। मान्यता है कि बाबा नन्द व यशोदा ने अपने पितरों का पिंडदान यहां गयाकुण्ड में ही किया। आश्विन की पूर्णिमा से श्राद्ध पक्ष शुरू हो जायेगा। मन्दिर विमल बिहारी क़े सेवाअधिकारी संजय लवानिया ने बताया कि हिंदू धर्म में मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया जाता है। पितृपक्ष के दौरान पितरों को तर्पण भी इसीलिए ही दिया जाता है। ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले और उनकी गति हो सके। कहते हैं कि एक बार जो व्यक्ति गया जाकर पिंडदान कर देता है। उसे फिर कभी पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध या पिंडदान करने की जरूरत नहीं पड़ती है। अधिकतर लोगों की यह चाहत होती है कि मृत्यु के बाद उनका पिंडदान गया में हो जाए। सनातन धर्म में यह मान्यता है कि गया में श्राद्ध करवाने से व्यक्ति की आत्मा को निश्चित तौर पर शांति मिलती है। इसलिए ही इस तीर्थ को बहुत श्रद्धा और विश्वास के साथ गया जी कहा जाता है।
माना जाता है कि गया भस्मासुर के वंशज गयासुर की देह पर बसा हुआ स्थान है। एक बार की बात है गयासुर दैत्य ने कठोर तप किया। तप से ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर उन से वरदान मांगा कि उसकी देह यानी शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए। जो कोई भी व्यक्ति उसे देखे वह पापों से मुक्त हो जाए। ब्रह्मा जी ने गयासुर को तथास्तु कहा। इसके बाद लोगों में पाप से मिलने वाले दंड का भय खत्म हो गया। लोग और अधिक पाप करने लगे। जब उनका अंत समय आता था तो वह गयासुर का दर्शन कर लेते थे। जिससे सभी पापों की मुक्ति हो जाती थी।
इस समस्या का समाधान ढूंढने के लिए देवताओं ने गयासुर को यज्ञ के लिए पवित्र भूमि दान करने के लिए कहा। गयासुर ने विचार किया कि सबसे पवित्र तो वो स्वयं हैं और गयासुर ने देवताओं को यज्ञ के लिए अपना शरीर दान किया। दान करते हुए गयासुर ने देवताओं से यह वरदान मांगा कि यह स्थान भी पापों से मुक्ति और आत्मा की शांति के लिए जाना जाए। गयासुर धरती पर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया। गया तीर्थ भी इसलिए पांच कोस में फैला हुआ है। समय के साथ इस स्थान को गया जी पितृ तीर्थ के रूप में जाना जाने लगा।
गया जी का महत्व बहुत अधिक है। कहते हैं कि जिस व्यक्ति का पिंडदान यहां हो जाता है। उसकी आत्मा को निश्चित तौर पर शांति मिलती है। विष्णु पुराण में कहा गया है कि गया में श्राद्ध हो जाने से पितरों को इस संसार से मुक्ति मिलती है। गरुण पुराण के मुताबिक गया जी जाने के लिए घर से गया जी की ओर बढ़ते हुए कदम पितरों के लिए स्वर्ग की ओर जाने की सीढ़ी बनाते हैं।पितरों के दर्शन स्वप्न में हो सकते हैं, जहाँ वे शुभ या अशुभ संकेत दे सकते हैं, और वे साधु, संत, गाय, कुत्ते, या अतिथि जैसे विभिन्न रूपों में भी आ सकते हैं। पितरों को खुश करने के लिए उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण कर्म करना चाहिए और उनकी इच्छाओं को समझना चाहिए।

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