
<strong>नई दिल्ली:</strong> मानव की बढ़ती और घनी होती आबादी, तेजी से भूमि विकास, घटते जंगल, अवैध शिकार और जलवायु परिवर्तन के साथ विज्ञान का प्रकृति के बीच बढ़ता हस्तक्षेप कई समस्याओं का जन्मदाता है. परिणामस्वरूप कई जानवरों की प्रजातियां हैं जो विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही हैं. भारत में हिम तेंदुआ, बंगाल टाइगर से लेकर और भी प्रजातियां हैं, जो लुप्तप्राय की सूची में शामिल हैं.
आज विलुप्तप्राय प्रजाति दिवस है. ऐसे में आइए जानते हैं उन प्रजातियों का हाल जो संकटग्रस्त हैं. अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने साल 2020 में रेड लिस्ट जारी कर बताया था कि भूमि पर रहने वाले जानवरों की 500 से अधिक प्रजातियां संकटग्रस्त हैं. इनमें से कई प्रजातियों को संघ ने विलुप्तप्राय घोषित कर दिया. भारत में कई प्रजातियां हैं, जो विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही हैं.
लुप्तप्राय प्रजातियों के बारे में जानकारी से पहले बता दें कि विलुप्तप्राय का अर्थ क्या है? यह वह प्रजाति है जो किसी समय किसी क्षेत्र में पाई जाती थी. लेकिन अब इसकी जनसंख्या 50 प्रतिशत से घटकर 10 प्रतिशत से भी कम हो गई है. रेड डेटा बुक में इनका नाम शामिल है.
<strong>भारत की विलुप्तप्राय वन्यजीव प्रजातियां – एक नजर में</strong>
प्रजाति का नाम संकट का कारण
हिम तेंदुआ लद्दाख, हिमालय 500 से कम खाल और हड्डियों के लिए शिकार, मानव टकराव
एशियाई हाथी असम, केरल, कर्नाटक ~27,000 दांतों के लिए शिकार, जंगलों की कटाई
बंगाल टाइगर सुंदरबन, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड ~3,000 अवैध शिकार, घटता आवास, खाल की तस्करी
गंगा डॉल्फिन गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र ~3,200 जल प्रदूषण, मछली पकड़ने के जाल, नदी बांध
एक सींग वाला गैंडा काजीरंगा (असम), पश्चिम बंगाल ~3,000 सींग के लिए शिकार, बाढ़, अवैध शिकार
<strong>विलुप्तप्राय लिस्ट में कौन-कौन जानवर</strong>
विलुप्तप्राय लिस्ट में एशियाई हाथी, गंगा नदी डॉल्फिन, एक सींग वाला गैंडा, हिम तेंदुआ और बंगाल टाइगर के साथ अन्य प्रजातियों के नाम शामिल हैं.
एशियाई हाथी- एशिया में पाए जाने वाले सबसे बड़े स्तनपायी में शामिल एशियाई हाथी महत्वपूर्ण सांस्कृतिक महत्व रखता है. भारत के साथ ही कई देशों में इनका धार्मिक महत्व भी है. यह जंगलों और घास के मैदानों के पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. कभी यह भारत के पंजाब और गुजरात जैसे क्षेत्रों में बड़ी संख्या में पाए जाते थे. हालांकि दांतों के लिए उनका बड़ी संख्या में शिकार होता है, जिस वजह से वे खतरे का सामना कर रहे हैं.
गंगा नदी डॉल्फिन- दुनिया में मानव जनसंख्या के हिसाब से सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्र में रहने वाली गंगा नदी की डॉल्फिन भी अपने अस्तित्व के लिए खतरे का सामना कर रही है. जल प्रदूषण, नदियों में रासायनिक तत्वों की अधिकता के साथ ही यह कई बार मछली पकड़ने के जाल में उलझ जाती हैं और इन्हीं चीजों ने इन्हें खतरे में डाल दिया है. डॉल्फिन भारत के साथ ही नेपाल और बांग्लादेश में गंगा-ब्रह्मपुत्र और कर्णफुली-सांगू नदी में पाई जाती है.
एक सींग वाला गैंडा- भारतीय एक सिंग वाले गैंडे भारत और हिमालय की तलहटी में पाए जाते हैं. अपनी कीमती चमड़ी और सिंग की वजह से यह प्रजाति हमेशा से शिकारियों के निशाने पर रही है. फलस्वरूप ये भी विलुप्तप्राय की सूची में शामिल हो चुके हैं. यही नहीं, नदियों में बाढ़ आने की वजह से भी गैंडों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
हिम तेंदुआ- दुखद लेकिन सत्य है कि भारत में हिम तेंदुओं की संख्या मात्र 500 रह गई है. यह प्रजाति भारत के साथ चीन, नेपाल, भूटान, रूस, पाकिस्तान, अफगानिस्तान के साथ ही मंगोलिया में भी पाई जातीहै. गैंडों की तरह हिम तेंदुओं को भी अपनी खाल, हड्डियों और शरीर के अन्य अंगों की वजह से संकट का सामना करना पड़ रहा है. अवैध व्यापार या शिकार इनके लिए और भी खतरनाक है.
बंगाल टाइगर को भी अपनी खाल और शरीर के अन्य अंगों के लिए अवैध शिकार का सामना करना पड़ा है. शहरी विस्तार और तेजी से घटते जंगल इनके लिए और भी नुकसानदायी साबित हुए हैं. खतरों की वजह से इन प्रजातियों के जानवारों पर अस्तित्व का खतरा मंडरा रहा है.
<strong>वन्य जीव संरक्षण के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम</strong>
जम्मू-कश्मीर (इसका अपना अधिनियम है) को छोड़कर सभी राज्यों ने, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम को 1972 में अपनाया गया, जो खतरे में आने वाली और दुर्लभ प्रजातियों के किसी भी प्रकार के व्यापार को रोकता है। प्रजातियों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए केंद्र सरकार राज्य सरकारों को हर प्रकार की वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
शिकार पर राष्ट्रीय प्रतिबंध लगाया गया था और वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 में प्रभावी हुआ था। नवीनतम बाघ गणना (2015) के अनुसार, बाघों की आबादी में कुल 30% की वृद्धि हुई है।2010 में, बाघों की गणना के अनुसार भारत में 1700 बाघ बचे थे, जो 2015 में 2226 हो गए।
सरकार द्वारा अनगिनत संख्या में नेशनल पार्क, वन्यजीव अभ्यारण्य, पार्क आदि की स्थापना की गई है
1992 में, देश में प्राणी उद्यान के प्रबंधन के पर्यवेक्षण के लिए केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (सीजीए) शुरू किया गया था।1996 में, वन्य जीव सलाहकार समिति और वन्य जीव संस्थान वन्य जीव संरक्षण को उससे संबंधित मामलों की विभिन्न विशेषताओं पर सलाह मांगने के लिए स्थापित किया गया था।भारत की लुप्तप्राय प्रजातियों को बचाने के लिए सरकार ने कई अन्य पहल की हैं।
भारत पाँच मुख्य अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों का हिस्सा है जो वन्य जीव संरक्षण से जुड़े हैं। वे हैं- (i) लुप्तप्राय प्रजातियों (सीआईटीईएस) में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर सम्मेलन, (ii) वन्यजीव तस्करी (सीएडब्ल्यूटी) के खिलाफ गठबंधन, (iii) अंतर्राष्ट्रीय व्हेलिंग कमीशन (आईडब्ल्यूसी), (iv) संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन – विश्व धरोहर समिति (यूनेस्को – डब्ल्यूएचसी) और (v) प्रवासी प्रजातियों पर कन्वेंशन (सीएचएस)।
भारत की लुप्तप्राय प्रजातियों को बचाने के लिए कई सकारात्मक कदम उठाए जा रहे हैं पर यह पर्याप्त नहीं हैं। इस महान कार्य में आगे आने के लिए और अधिक गैर-सरकारी संग
ठनों और निजी कॉर्पोरेट क्षेत्रों की जरूरत है।