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रामप्रसाद बिस्मिल एक सम्माननीय स्वतंत्रता सेनानी-शिवानी जैन एडवोकेट

शिवानी जैन एडवोकेट की रिपोर्ट

रामप्रसाद बिस्मिल एक सम्माननीय स्वतंत्रता सेनानी-शिवानी जैन एडवोकेट

ऑल ह्यूमंस सेव एंड फॉरेंसिक फाउंडेशन डिस्टिक वूमेन चीफ शिवानी जैन एडवोकेट ने कहा कि
स्वतंत्रता सेनानी रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम मुरलीधर और माता का नाम मूलमती था। उनके पिता एक रामभक्त थे, जिसके कारण उनका नाम र से रामप्रसाद रख दिया गया।

थिंक मानवाधिकार संगठन एडवाइजरी बोर्ड मेंबर डॉ कंचन जैन ने कहा अपने भाई परमानंद की फांसी का समाचार सुनने के बाद बिस्मिल ने ब्रिटिश साम्राज्य को समूल नष्ट करने की प्रतिज्ञा की। मैनपुरी षड्यंत्र में शाहजहांपुर के 6 युवक पकड़ाए, जिनके लीडर रामप्रसाद बिस्मिल थे, लेकिन वे पुलिस के हाथ नहीं लग पाए। इसका षड्यंत्र का फैसला आने के बाद से बिस्मिल 2 साल तक भूमिगत

रहे। और एक अफवाह के तरह उन्हें मृत भी मान लिया गया। इसके बाद उन्होंने एक गांव में शरण ली और अपना लेखन कार्य किया।
मां सरस्वती शिक्षा समिति के प्रबंधक डॉ एच सी विपिन कुमार जैन, संरक्षक आलोक मित्तल एडवोकेट, ज्ञानेंद्र चौधरी एडवोकेट, डॉ आरके शर्मा, निदेशक डॉक्टर नरेंद्र, शार्क फाउंडेशन की तहसील प्रभारी डॉ एच सी अंजू लता जैन, बीना एडवोकेट आदि ने कहा कि

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9अगस्त, 1925 को लखनऊ के काकोरी नामक स्थान पर देशभक्तों ने रेल विभाग की ले जाई जा रही संगृहीत धनराशि को लूटा। गार्ड के डिब्बे में लोहे की तिजोरी को तोड़कर आक्रमणकारी दल चार हजार रुपये लेकर फरार हो गए। इस डकैती में अशफाकउल्ला, चन्द्रशेखर आज़ाद, राजेन्द्र लाहिड़ी, सचीन्द्र सान्याल, मन्मथनाथ गुप्त, रामप्रसाद बिस्मिल आदि शामिल थे। काकोरी षड्यंत्र मुकदमे ने

काफी लोगों का ध्यान खींचा।सभी प्रकार से मृत्यु दंड को बदलने के लिए की गई दया प्रार्थनाओं के अस्वीकृत हो जाने के बाद बिस्मिल अपने महाप्रयाण की तैयारी करने लगे। अपने जीवन के अंतिम दिनों में गोरखपुर जेल में उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखी। फांसी के तख्ते पर झूलने के तीन दिन पहले तक वह इसे लिखते रहे।
शिवानी जैन एडवोकेट
डिस्ट्रिक्ट वूमेन चीफ

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