
सुसनेर/- 18अप्रेल,निराश्रित गोवंश के संरक्षण हेतु आमजन में गो सेवा की भावना जागृत करने के लिए एशिया के प्रथम गो अभयारण्य मालवा में चल रहें *एक वर्षीय वेदलक्ष्णा गो आराधना महामहोत्सव* के दशम दिवस पर गोकथा में पधारे श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहां कि भगवान को गाय माता ही पृथ्वी पर ला सकती है अर्थात भगवान राम, कृष्ण इस धरा पर भगवती गोमाता के कारण ही अवतरित हुए है ओर उन्होंने मां के रूप में गोमाता को अपनाया है लेकिन कलियुग में हम उसे एक आवारा पशु की उपाधि दे रहें है जो हमारे लिए लज्जाजनक बात है यानि जिसे मां के रूप में भगवान ने हमारे को सेवा करने जा अवसर दिया है भला वह आवारा कैसे हो सकती है । लेकिन स्वार्थी मनुष्य माया के वशीभूत होकर गोमाता को छोड़कर बकरी एवं भैंस पालने लग गया है जबकि बकरी हमेशा मैं मै करती रहती है यानि बकरी के संग रहकर हममें भी मैं यानि अहम का शिकार बन गए हैओर मनुष्य सतगुणों को छोड़कर तमोगुण की ओर बढ़ गया । ओर जबसे हम भगवती गोमाता को आवारा कहकर अपमानित करने लगे है तब से हनारी भावी पीढ़ी भी आवारागर्दी की ओर अग्रेसर हुई है ।
स्वामी जी ने बताया कि गो अपराध का कोई प्रायश्चित नहीं होता है , गोमाता को डंडा मारना, अशुद्ध जल पिलाना, अनुपयोगी चारा खिलाना उसको आवारा कहकर प्रताड़ित करने व मशीन से दूध निकलना यह सभी अपराध की श्रेणी में आता है ।
स्वामी जी ने बताया कि पहले मुगलों ने ओर फिर अंग्रेजों ने हमारी संस्कृति को छिनभिन्न करने के लिए सबसे पहले हमारी शिक्षा पद्धति पर प्रहार किया है जबकि हमारे यहां नालंदा एवं तक्षशिला जैसे विश्व विद्यालयों का सम्पूर्ण विश्व में कीर्तिमान था । लेकिन मैकाले शिक्षा पद्धति के कारण जबसे हम गुरुकुल से दूर होकर स्कूल शिक्षा की ओर बढ़े है तब से हम ईसाइयत के जाल में फंसे है ओर हम गाय से दूर हुए है क्योंकि पहले गुरुकुल में गोआधारित शिक्षा पद्धति थी लेकिन भारत में कब्जा करने की नियत रखने वालो ने हमको गाय से दूर रखने का षड्यंत्र किया ।
स्वामी जी ने कहा कि जब से हम पर मैकाले शिक्षा पद्धति का प्रभाव पड़ा है तब से हमने गाय को घर से बाहर निकाला है ओर कुत्तों को घर के अंदर ले गए है जबकि कुत्तों का काम घर की सुरक्षा एवं अपराधियों में डर बना रहें उसके लिए ही है,उसे घर के दरवाजे के बाहर ही स्थान दिया जाता था ,लेकिन आज हम उसे घर के अंदर प्रवेश देकर हमारी पीढ़ी को अर्थात भाई भाई , sas बहू , देवरानी, जेठानी एवं ननद भाभी व पिता पुत्र ,पुत्री को कुत्तों जैसा आपस में लड़ते देखा है क्योंकि संगती का असर कभी नहीं जाता हैं ओर उस संगती में मनुष्य भी कुत्ते की मौत मर रहा है । यानि जब गौ हमारे से दूर रहेगी ओर हमारे जीवन में उसे प्रमुखता से नहीं आयेगी तब तक जीवन में मातृत्त्व की कमी रहेगी । मातृत्त्व की भावना के लिए इस संसार में एक ही माध्यम है ओर वह है भगवती गोमाता ।
*दशम दिवस का गो भंडारा एवं चूनड़ी यात्रा सुसनेर तहसील के मैना की ओर से*
एक वर्षीय गोकृपा कथा के दशम दिवस पर सुसनेर तहसील के मैना ग्राम के ग्राम वासी एवं माता बहिनें विशाल चुनरी यात्रा एवं गोमाता के भंडारे की सामग्री पधारे जिसने
भारत सिंह जी, माधव सिंह जी, लाल सिंह जी बने सिंह जी, शिवराज सिंह जी ,कैलाश जी नरवर सिंह जी ,नारायण सिंह जी,शिवलाल जी सहित सभी समाजों के पंच पटेल चुनरी यात्रा लेकर मंच पर पहुंच कर गोमाता को चुनरी ओढ़ाकर भगवती गोमाता जी का पूजन आरती की और अंत में सभी ने गोव्रती महाप्रसाद ग्रहण किया ।*माया के वशीभूत होकर इन्सान गाय से दूर होकर बकरी भैंस पालने लगा*- स्वामी गोपालानंद जी सरस्वती
सुसनेर/- 18अप्रेल,निराश्रित गोवंश के संरक्षण हेतु आमजन में गो सेवा की भावना जागृत करने के लिए एशिया के प्रथम गो अभयारण्य मालवा में चल रहें *एक वर्षीय वेदलक्ष्णा गो आराधना महामहोत्सव* के दशम दिवस पर गोकथा में पधारे श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहां कि भगवान को गाय माता ही पृथ्वी पर ला सकती है अर्थात भगवान राम, कृष्ण इस धरा पर भगवती गोमाता के कारण ही अवतरित हुए है ओर उन्होंने मां के रूप में गोमाता को अपनाया है लेकिन कलियुग में हम उसे एक आवारा पशु की उपाधि दे रहें है जो हमारे लिए लज्जाजनक बात है यानि जिसे मां के रूप में भगवान ने हमारे को सेवा करने जा अवसर दिया है भला वह आवारा कैसे हो सकती है । लेकिन स्वार्थी मनुष्य माया के वशीभूत होकर गोमाता को छोड़कर बकरी एवं भैंस पालने लग गया है जबकि बकरी हमेशा मैं मै करती रहती है यानि बकरी के संग रहकर हममें भी मैं यानि अहम का शिकार बन गए हैओर मनुष्य सतगुणों को छोड़कर तमोगुण की ओर बढ़ गया । ओर जबसे हम भगवती गोमाता को आवारा कहकर अपमानित करने लगे है तब से हनारी भावी पीढ़ी भी आवारागर्दी की ओर अग्रेसर हुई है ।
स्वामी जी ने बताया कि गो अपराध का कोई प्रायश्चित नहीं होता है , गोमाता को डंडा मारना, अशुद्ध जल पिलाना, अनुपयोगी चारा खिलाना उसको आवारा कहकर प्रताड़ित करने व मशीन से दूध निकलना यह सभी अपराध की श्रेणी में आता है ।
स्वामी जी ने बताया कि पहले मुगलों ने ओर फिर अंग्रेजों ने हमारी संस्कृति को छिनभिन्न करने के लिए सबसे पहले हमारी शिक्षा पद्धति पर प्रहार किया है जबकि हमारे यहां नालंदा एवं तक्षशिला जैसे विश्व विद्यालयों का सम्पूर्ण विश्व में कीर्तिमान था । लेकिन मैकाले शिक्षा पद्धति के कारण जबसे हम गुरुकुल से दूर होकर स्कूल शिक्षा की ओर बढ़े है तब से हम ईसाइयत के जाल में फंसे है ओर हम गाय से दूर हुए है क्योंकि पहले गुरुकुल में गोआधारित शिक्षा पद्धति थी लेकिन भारत में कब्जा करने की नियत रखने वालो ने हमको गाय से दूर रखने का षड्यंत्र किया ।
स्वामी जी ने कहा कि जब से हम पर मैकाले शिक्षा पद्धति का प्रभाव पड़ा है तब से हमने गाय को घर से बाहर निकाला है ओर कुत्तों को घर के अंदर ले गए है जबकि कुत्तों का काम घर की सुरक्षा एवं अपराधियों में डर बना रहें उसके लिए ही है,उसे घर के दरवाजे के बाहर ही स्थान दिया जाता था ,लेकिन आज हम उसे घर के अंदर प्रवेश देकर हमारी पीढ़ी को अर्थात भाई भाई , sas बहू , देवरानी, जेठानी एवं ननद भाभी व पिता पुत्र ,पुत्री को कुत्तों जैसा आपस में लड़ते देखा है क्योंकि संगती का असर कभी नहीं जाता हैं ओर उस संगती में मनुष्य भी कुत्ते की मौत मर रहा है । यानि जब गौ हमारे से दूर रहेगी ओर हमारे जीवन में उसे प्रमुखता से नहीं आयेगी तब तक जीवन में मातृत्त्व की कमी रहेगी । मातृत्त्व की भावना के लिए इस संसार में एक ही माध्यम है ओर वह है भगवती गोमाता ।
*दशम दिवस का गो भंडारा एवं चूनड़ी यात्रा सुसनेर तहसील के मैना की ओर से*
एक वर्षीय गोकृपा कथा के दशम दिवस पर सुसनेर तहसील के मैना ग्राम के ग्राम वासी एवं माता बहिनें विशाल चुनरी यात्रा एवं गोमाता के भंडारे की सामग्री पधारे जिसने
भारत सिंह जी, माधव सिंह जी, लाल सिंह जी बने सिंह जी, शिवराज सिंह जी ,कैलाश जी नरवर सिंह जी ,नारायण सिंह जी,शिवलाल जी सहित सभी समाजों के पंच पटेल चुनरी यात्रा लेकर मंच पर पहुंच कर गोमाता को चुनरी ओढ़ाकर भगवती गोमाता जी का पूजन आरती की और अंत में सभी ने गोव्रती महाप्रसाद ग्रहण किया ।
सुसनेर से संवाददाता दीपक राठौर की रिपोर्ट