
बेरौचा मजरा कैलाशपुर में नागपंचमी का उत्सव पारंपरिक उल्लास के साथ मनाया गया, बच्चों ने निभाई ‘गुड़िया पीटने’ की अनूठी रस्म
संवाददाता: प्रभाकर मिश्र / कौशाम्बी जिले के प्रसिद्ध गांव बेरौचा मजरा कैलाशपुर में मंगलवार को नागपंचमी के पावन अवसर पर लोक परंपराओं का जीवंत दृश्य देखने को मिला। इस अवसर पर ‘गुड़िया पीटने’ की सदियों पुरानी परंपरा को गांव के बच्चों ने पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ निभाया।
सुबह से ही गांव की गलियों में बच्चों की टोलियाँ पारंपरिक वेशभूषा में ढोलक और मंजीरे की थाप पर नाचते-गाते निकलीं। उनके हाथों में लकड़ियाँ थीं और बीच में थी एक मिट्टी व कपड़े से बनी गुड़िया, जो अंधविश्वास, डर और बुराई का प्रतीक मानी जाती है। बच्चों ने उसे प्रतीकात्मक रूप से पीटते हुए पूरे गांव का भ्रमण किया।
गांव के सम्मानित नागरिकों ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
इस आयोजन को सफल बनाने में गांव के कई प्रमुख नागरिकों का सराहनीय योगदान रहा। इनमें विशेष रूप से अनिल कुमार मिश्र, सुनील मिश्र, सतीश मिश्र, शिवमिलन मिश्र, नीरज मिश्र,अंकित मिश्र, महेंद्र मिश्र शामिल रहे, जिन्होंने आयोजन की व्यवस्था, बच्चों को मार्गदर्शन और सांस्कृतिक महत्व की जानकारी देने में अहम भूमिका निभाई।
गांव के पूर्व प्रधान कृष्णा प्रसाद मिश्र ने बच्चों को नागपंचमी के ऐतिहासिक और पौराणिक पक्षों से अवगत कराते हुए कहा:
हमारी लोक परंपराएं सिर्फ आस्था का विषय नहीं, बल्कि सामाजिक शिक्षा का माध्यम हैं। ‘गुड़िया पीटना’ यह सिखाता है कि बच्चों में शुरू से ही अच्छाई और बुराई में भेद करने की समझ विकसित हो।
महिलाओं ने गाया पारंपरिक गीत, की नागदेवता की पूजा
गांव की महिलाओं ने भी इस मौके पर नागदेवता की विधिवत पूजा कर परिवार की सुख-शांति और नागदोष से मुक्ति की कामना की। महिलाओं ने पारंपरिक लोकगीत गाकर वातावरण को और भी भक्तिमय बना दिया। दूध, दूब, हल्दी और चावल से नागदेवता का पूजन कर पर्यावरण संतुलन और जीवों के संरक्षण का संदेश दिया गया।
गुड़िया दहन और बच्चों का अभिनंदन
पारंपरिक रस्म के अनुसार कार्यक्रम के अंत में गुड़िया का प्रतीकात्मक दहन किया गया, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इसके बाद सभी बच्चों को मिठाइयाँ, फल व पारंपरिक खिलौने वितरित किए गए। बच्चों की टोली में खासकर छोटे बच्चों का उत्साह देखते ही बन रहा था।
गांव की संस्कृति को जीवंत करता आयोजन
इस आयोजन ने एक बार फिर सिद्ध किया कि बेरौचा मजरा कैलाशपुर जैसे गांव भारत की संस्कृति और परंपराओं को संजोए रखने में आज भी अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। गांव के हर वर्ग — बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं और युवा — ने मिलकर इस परंपरा को न सिर्फ निभाया, बल्कि अगली पीढ़ी को भी इससे जोड़ने का कार्य किया।