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महिलाओ ने की डोल ग्यारस पर पूजा अर्चना

भारत त्योहारों की भूमि है जहाँ हर पर्व का होता हैं.. अपना धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

 

रिपोर्टर दिलीप कुमरावत MobNo 9179977597

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मनावर। जिला धार।। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की ग्यारस को जलझूलनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इसे परिवर्तिनी एकादशी एवं डोल ग्यारस आदि नामों से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान वामन की पूजा का विशेष महात्म्य है। कई स्थानों पर इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की सूरज पूजा की जाती है। डोल ग्यारस की पौराणिक कथा और भगवान कृष्ण के बाल रूप की लीला इस त्योहार से जुड़ी होने के कारण यह पर्व अधिक रोचक बन जाता है।

उल्लेखनीय है कि भारत त्योहारों की भूमि है जहाँ हर पर्व का अपना धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व होता है। इन्हीं में से एक है डोल ग्यारस हैं। जिसे भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को परंपरानुसार मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से मध्यप्रदेश, राजस्थान और गुजरात में बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। डोल ग्यारस का व्रत और उत्सव 3 सितंबर बुधवार को भक्ति भाव के साथ मनाया गया।

मान्यता है कि इस दिन माता यशोदा, बालक श्रीकृष्ण का जलवा सूरज पूजन किया गया था। बताया जाता हैं कि इस व्रत के प्रभाव से पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इस दिन डोल (ढोल) और झांझ की ध्वनि के साथ भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण के भजनों का गायन किया जाता है।

डोल ग्यारस व्रत विधि : प्रातःकाल स्नान कर भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण का पूजन किया जाता हैं। श्रद्धालुजन व्रत का संकल्प लेकर दिनभर फलाहार या निर्जल उपवास करते है। शाम को भगवान का पंचामृत से स्नान कर पीले वस्त्र पहनाकर पूजन किया जाता हैं। धूप, दीप, नैवेद्य और तुलसी पत्र करते है। रात्रि में भजन-कीर्तन एवं आरती की जाती है। अगले दिन द्वादशी को दान-पुण्य करके व्रत का पारण करते है। इस दिन मंदिरों से शोभायात्राएँ भी निकाली जाती हैं।
डोल (ढोल) बजाकर भगवान की महिमा का गुणगान किया जाता है। कही इस त्यौहार को सामूहिक उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। जहाँ भक्तजन मिलकर पूजा अर्चना नृत्य और गायन करते हैं। डोल ग्यारस केवल एक व्रत ही नहीं बल्कि आस्था, उत्सव और भक्ति का प्रतीक है। इस दिन भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा कर तथा उपवास रखकर भक्तजन सुख, शांति और समृद्धि की कामना करते हैं।

डोल ग्यारस को लेकर अलग अलग पौराणिक मान्यता है

पहली कथा: भगवान कृष्ण और मां यशोदा की है। यह कथा भगवान कृष्ण के जन्म से जुड़ी है। माना जाता है कि जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ, तब उनकी माँ यशोदा ने उन्हें एक पालने में झुलाया था। इसी कारण इस एकादशी को जलझूलनी एकादशी या डोल ग्यारस के नाम से जाना जाता है। एक और मान्यता के अनुसार, जन्माष्टमी के बाद आने वाली एकादशी को भगवान कृष्ण पहली बार घर से बाहर निकले थे। यह उनका पहला सामाजिक उत्सव था, जिसमें उन्हें पालकी या डोल में बिठाकर बाहर ले जाया गया था। इसलिए, इस दिन भगवान कृष्ण की प्रतिमा को एक सुंदर डोल या पालकी में बैठाकर यात्रा निकाली जाती है और उन्हें नदियों या तालाबों के पास ले जाकर स्नान कराया जाता है।

दूसरी कथा: माता देवकी के व्रत की कथा हैं। माता देवकी ने अपने आठवें पुत्र, भगवान कृष्ण को कंस से बचाने के लिए एक व्रत रखा था। इस व्रत का नाम कल्याणी एकादशी था। इस व्रत के प्रभाव से ही भगवान कृष्ण का जन्म हुआ और वह कंस के अत्याचारों से बच पाए। माना जाता है कि डोल ग्यारस का व्रत रखने से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत संतान की लंबी आयु के लिए भी रखा जाता है। इस प्रकार, डोल ग्यारस का पर्व भगवान कृष्ण की लीलाओं और उनकी दिव्यता को समर्पित है। यह दिन भक्ति, उल्लास और धार्मिक अनुष्ठानों के साथ मनाया जाता है।

तीसरी कथा: बालि वामन की कथा है। त्रेतायुग में बलि नामक एक दैत्य था, उसने इंद्र से द्वेष के कारण इंद्रलोक तथा सभी देवताओं को जीत लिया। इस कारण सभी देवता एकत्र होकर भगवान के पास गए और नतमस्तक होकर वेद मंत्रों द्वारा भगवान का पूजन और स्तुति करने लगे। अत: श्रीकृष्ण ने वामन रूप धारण करके पांचवां अवतार लिया और फिर अत्यंत तेजस्वी रूप से राजा बलि को जीत लिया। तब बलि से तीन पग भूमि की याचना करते हुए उससे तीन पग भूमि देने का संकल्प करवाया और अपने त्रिविक्रम रूप को बढ़ाकर एक पद से पृथ्वी, दूसरे से स्वर्गलोक पूर्ण कर लिए। अब तीसरा पग रखने के लिए राजा बलि ने अपना सिर झुका लिया और पैर उसके मस्तक पर रख दिया जिससे वह पाताल चला गया।

चौथी कथा: पौराणिक मान्यता अनुसार डोल ग्यारस के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने विवाह के बाद रुक्मिणीजी के साथ पहली बार डोल (पालकी) में नगर भ्रमण किया था। तभी से इस पर्व पर भगवान को डोल में बैठाकर नगर भ्रमण कराने की परंपरा शुरू हुई।

……..नंद घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की…….

श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। जय श्री कृष्ण।

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