
✍️✍️✍️✍️✍️अखंड भारत न्यूज़ जियाउद्दीन अंसारी
*शहडोल*जिला अंतर्गत ग्राम पपौंध, वार्ड नंबर 01, तहसील जनपद पंचायत ब्योहारी विधानसभा क्षेत्र, मध्य प्रदेश: ग्रामीण भारत की एक मार्मिक और यथार्थवादी तस्वीर पेश करते हुए, ब्योहारी विधानसभा क्षेत्र के ग्राम पंचायत पपौंध के वार्ड नंबर 01 के निवासियों ने प्रशासन की घोर उपेक्षा के विरोध में एक अनूठा और शक्तिशाली कदम उठाया है। वर्षों से सड़क की मांग कर रहे ग्रामीणों को जब प्रशासन से केवल आश्वासन और निराशा मिली, तो उन्होंने अपनी दुर्दशा को दुनिया के सामने लाने के लिए एक अविश्वसनीय तरीका अपनाया: उन्होंने अपनी ही “सड़क” पर धान की रोपाई कर दी। यह घटना केवल एक विरोध प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह “सिस्टम के मुँह पर तमाचा” है, जो ग्रामीण भारत की कड़वी सच्चाई और सरकारी दावों की पोल खोलता है।
एक सड़क, जो अब खेत बन चुकी है
वार्ड नंबर 01 के निवासियों के लिए, ‘सड़क’ शब्द अब एक मज़ाक बन गया है। जिस रास्ते को कभी उनके दैनिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए था, वह अब घुटनों तक गहरे कीचड़ और जलभराव का पर्याय बन गया है। बारिश के मौसम में यह स्थिति और भी विकट हो जाती है, जब यह रास्ता किसी सड़क से ज़्यादा धान के खेत जैसा दिखने लगता है। स्कूली बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, हर कोई इस नारकीय रास्ते से गुज़रने के लिए मजबूर है, जिससे न केवल उनका समय और ऊर्जा बर्बाद होती है, बल्कि उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा पर भी गंभीर खतरा मंडराता रहता है। बीमार लोगों को अस्पताल तक पहुंचाना लगभग असंभव हो जाता है, और आपातकालीन सेवाओं के लिए तो यह रास्ता अभेद्य है।
प्रशासन की वर्षों की उपेक्षा और जनता का बढ़ता आक्रोश
ग्रामीणों का आरोप है कि उन्होंने कई बार स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से अपनी इस मूलभूत समस्या के समाधान के लिए गुहार लगाई है। पंचायतों से लेकर तहसील स्तर तक, उन्होंने हर दरवाजे पर दस्तक दी, लेकिन उन्हें केवल कोरे आश्वासन और ठंडे जवाब मिले। हर चुनाव में नेता बेहतर सड़कों का वादा करते हैं, लेकिन चुनाव खत्म होते ही यह वादा सिर्फ एक चुनावी जुमला बनकर रह जाता है। प्रशासन की यह वर्षों पुरानी उपेक्षा अब ग्रामीणों के लिए असहनीय हो गई है, और उनका आक्रोश अब इस अनोखे विरोध प्रदर्शन के रूप में सामने आया है। यह सिर्फ एक सड़क की बात नहीं है; यह ग्रामीण भारत में मूलभूत सुविधाओं की कमी और सरकारी तंत्र की निष्क्रियता का प्रतीक है।
विरोध का एक अनूठा और मार्मिक तरीका
धान की रोपाई करने का निर्णय केवल एक प्रतीकात्मक विरोध नहीं है, बल्कि यह ग्रामीणों की हताशा और रचनात्मकता का एक मार्मिक मिश्रण है। उन्होंने अपनी दैनिक पीड़ा को एक शक्तिशाली संदेश में बदल दिया है। जब प्रशासन ने उनकी बात नहीं सुनी, तो उन्होंने अपनी ज़मीन पर ही अपने दर्द को बो दिया। यह न केवल प्रशासन के प्रति उनकी नाराज़गी को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि वे अपनी आवाज़ उठाने के लिए कितने दृढ़ संकल्पित हैं, भले ही उन्हें इसके लिए कितने ही असाधारण कदम क्यों न उठाने पड़ें। यह विरोध प्रदर्शन एक शांत क्रांति है, जो बिना किसी हिंसा या तोड़फोड़ के ‘सिस्टम’ को उसके अपने ही खेल में चुनौती दे रहा है।
सरकारी दावों और ग्रामीण सच्चाई के बीच की खाई
यह घटना ग्रामीण भारत के विकास के बारे में सरकारी दावों की पोल खोलती है। एक ओर जहां सरकारें ‘डिजिटल इंडिया’ और ‘स्मार्ट विलेज’ की बात करती हैं, वहीं दूसरी ओर पपौंध जैसे गांवों में लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं, जैसे कि एक पक्की सड़क, के लिए तरस रहे हैं। यह घटना शहरी और ग्रामीण भारत के बीच बढ़ती असमानता को भी उजागर करती है, जहां शहरी क्षेत्रों को आधुनिक बुनियादी ढांचे से सुसज्जित किया जा रहा है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। यह “सिस्टम के मुँह पर तमाचा” केवल एक गांव की कहानी नहीं है, बल्कि यह उन लाखों ग्रामीण भारतीयों की आवाज़ है जो आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं।
आगे का रास्ता: क्या प्रशासन जागेगा?
अब सवाल यह उठता है कि क्या प्रशासन इस मार्मिक विरोध प्रदर्शन से जागेगा? क्या वे अपनी आँखें खोलेंगे और पपौंध के ग्रामीणों की दुर्दशा पर ध्यान देंगे? यह घटना एक चेतावनी है कि यदि प्रशासन अपनी ज़िम्मेदारियों को नज़रअंदाज़ करता रहेगा, तो जनता को अपनी आवाज़ उठाने के लिए नए और अधिक रचनात्मक तरीके खोजने पड़ेंगे। पपौंध के ग्रामीणों ने एक मिसाल कायम की है – उन्होंने दिखाया है कि जब सिस्टम विफल हो जाता है, तो जनता खुद अपने तरीके से विरोध कर सकती है और अपनी समस्याओं को उजागर कर सकती है। यह घटना सभी संबंधित अधिकारियों के लिए एक कड़ा संदेश है कि उन्हें केवल कागज़ों पर विकास नहीं दिखाना है, बल्कि ज़मीनी हकीकत को भी समझना होगा और उसके अनुसार कार्य करना होगा।