
पर्यटकों के लिए आस्था का केंद्र बनी जैन-बौद्ध की तपस्थली कौशाम्बी
संवाददाता: प्रभाकर मिश्र/ अखंड भारत न्यूज़
कौशाम्बी। विश्व धरोहर दिवस हर वर्ष 18 अप्रैल को मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का मकसद यह है कि विश्व में मानव सभ्यता से जुड़े ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण के प्रति जागरूकता लाई जा सके।
कौशाम्बी खास के पर्यटन स्थल को विश्व धरोहर का दर्जा तो नहीं मिला लेकिन, यहां देखने के लिए यमुना नदी के किनारे राजा उदयन के किले का अवशेष, अशोक स्तंभ, बौद्ध विहार, सेठ घोषित राम बिहार और प्रभास गिरी पर्वत हैं। दूसरी तरफ गंगा के किनारे
विश्व विरासत दिवस आज : अशोक स्तंभ, बौद्ध विहार, सेठ घोषित राम बिहार और प्रभास गिरी में पूरे साल आते हैं पर्यटक

कौशाम्बी स्थित सेठ घोषित राम विहार।
संत मलूक दास आश्रम, ख्वाजा कड़क शाह की दरगाह, शीतला माता का मंदिर भैरवनाथ का मंदिर सहित राजा जयचंद का किला मौजूद है।
श्रीलंका बुद्ध विहार के प्रबंधक
कोसम ईनाम में तथागत ने किया था चर्तुमाषा यमुना तट पर बसे कौसम ईनाम में भगवान गौतम बुद्ध ने चतुमाया किया था। इसी वजह से कौशाम्बी का नाम विश्व विख्यात है। गौतम बुद्ध ने घोषित राम विहार में रहकर तप करने के साथ सत्य और अंहिसा का उपदेश दिया तथागत की इस तपोस्थली की विश्व में अलग पहचान है। मान्यता है कि बुद्ध के अनुयायी जब तक यहां नहीं आते हैं, उनकी तीर्थयात्रा अधूरी मानी जाती है। यही कारण है कि कंबोडिया, श्रीलंका व बधाईलैंड समेत पूरे विश्व में बौद्ध धर्म के लोगों का आना-जाना लगा रहता है।
भन्ने टी. सिरीविशुद्धी महा थेरो ने बताया कि म्यांमार, कम्बोडिया, श्रीलंका, थाईलैंड, नेपाल, भूटान कोरिया सहित तकरीबन 25 देशों से हर साल 20 से 22 हजार पर्यटक यहां आते हैं।
इसी तरह जैन मंदिर के पुजारी महेंद्र जैन का कहना है कि देश के कोने-कोने से जैन धर्म के मानने वाले हर साल यहां 50 से 60 हजार पर्यटक दर्शन के लिए आते हैं।
कौशाम्बी खास में बनी प्राचीन। कंबोडिया सरकार ने कराया भव्य मंदिर का निर्माण बौद्ध धर्म के लोगों की मांग पर यहाँ पर श्रीलंका व कंबोडिया की सरकार ने बुद्ध के भव्य मंदिर का निर्माण कराया है। यहां पर पर्यटकों का आना-जाना बना रहता है। यहां पर करोड़ों की लागत से बौद्ध मंदिर बनाएं गए हैं. लेकिन देश व विदेश से आने वाले लोगों के रुकने का कोई इंतजाम नहीं है। इस वजह से दर्शन-पूजन के लिए आए अनुयायी शाम को ही वहां से रवाना हो जाते हैं।
धरोहरों की रखरखाव की जिम्मेदारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की है। विभाग इन धरोहरों के लिए बजट के हिसाब से बाउंड्री वॉल, पाथवे, पानी पीने के लिए आरओ प्लांट व आधुनिक शौचालय आदि
पुरातत्व सर्वेक्षण केंद्र सरकार के अधीन है जैसे-जैसे बजट आता है, धरोहरों के रख रखाव व उसके जीर्णोद्धार का काम कराया जाता है। अशोक स्तंभ की बाउंड्री वॉल का काम पूरा होने के निकट है। साथ ही भव्य पार्क का निर्माण प्रस्तावित है। कर्मवीर तिवारी, संरक्षण सहायक, पुरातत्व विभाग
सुविधाओं का निर्माण करा चुका है। साथ ही लोगों को बैठने के लिए पत्थर की बनीं कुर्मियों को लगाने का भी काम शुरू हो गया है। इन धरोहरों के रखरखाव पर विभाग हर साल लाखों रुपये खर्च कर रहा है।