
भ्रष्टाचारियों के मुंह पर,वक्त का तमाचा
डॉ एच सी विपिन कुमार जैन
देखो ! कैसा कमजोर बेवस , लाचार दिखाई देता है,
पढ़ा लिखा होकर भी फर्जीवाड़ा करता है।
कागजों में करके हेरा फेरी, जीवित को मुर्दा बना देता है।
यदि मिल जाए हिस्सेदारी, तो मुर्दे को भी जीवित बता देता है।
हड़पकर उसकी नगदी और जमीन को,
फिर करता है उनके हिस्से तीन।
ऐसे मक्कारों की दुकानों को,
बंद करके कर देना चाहिए सील।
गरीबों के साथ न्याय होना चाहिए,
ऐसे अफसर को जरा जेल विजिट करानी चाहिए।
सुना है जेल का फर्श और दीवार बनवा रहा है,
कैदियों और जेलरों से मुलाकात बढ़ा रहा है।
आभास है, उसे कुदरत के नियमों का।
देख रहा है पन्ने कानून के नियमों का।
सुना था, अफसर ईमानदार आया है।
साथ में एक गठरी भ्रष्टाचार की लाया है।
चीख चीख कर बोल रहे हैं, पन्ने।
अब कुछ नहीं होगा नन्हे।
तेरा भ्रष्टाचार बढ़ गया है,
पेट तेरा फट गया है।
अब नहीं न्याय में देर है,
असुविधा के लिए खेद है।
चाय बहुत पीता है।
एक चम्मच शक्कर की कीमत,
दस हजार लेता है।
एक बंगला और एक मोटर गाड़ी जो उसने खरीदी है,
किस्तों की भरपाई, भ्रष्टाचार की झोली थोड़ी-थोड़ी खोली है।
यह जनता ही तो करेगी भरपाई , मेरे भाई।
सुविधा चाहिए तो सुविधा शुल्क दो मेरे भाई।
मामला यदि कोई उजागर हो भी गया,
गंगा मैया बचा लेती हैं, जो डूब गया।
खाकर कसम जूनियर कहता है,
साहब बहुत ईमानदार है।
मगर वक्त का तमाचा ऐसा पड़ा गया,
किसी गरीब की हाय लग गई,
साहब कुर्सी के नीचे गिर गया।
जिस मोटर गाड़ी की किस्त के लिए
कर रहा था, हेरा फेरी।
इस गाड़ी के नीचे पड़ी है, लाश तेरी।