

रिपोर्टर दिलीप कुमरावत MobNo 9179977597

मनावर। जिला धार।। हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का खास महत्व है। हर महीने के कृष्ण व शुक्ल पक्ष की एकादशी को व्रत किया जाता है, इस तरह से साल में कुल 24 एकादशी व्रत किया जाता हैं। बताया जाता है कि एकादशी व्रत में भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। हर एकादशी व्रत का अलग-अलग महत्व होता है, जिसमें से एक देवउठनी एकादशी जिसे देव प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है।

देवउठनी एकादशी के दिन चातुर्मास समाप्त होता है और भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं और फिर से सृष्टि का संचालन करते हैं। इसलिए इसे देवोत्थान एकादशी या देव प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। इस पावन दिवस पर सनातन धर्म को मानने वाले हर एक परिवारों द्वारा भगवान विष्णु के रूप में शालिग्राम भगवान और माता तुलसी का विधिवत विवाह संपन्न किया गया।

डा.कल्पना ने बताया कि आज स्थानीय पटेल कालोनी में डा.रजनी पाटीदार के घर पर सत्य नारायण भगवान कि कथा का वाचन कर तुलसी माता के भजन महिलाओं ने गाए ओर विवाह संपन्न हुआ।
डा.रजनी पाटीदार ने बताया कि एकादशी के दिन माता तुलसी का विवाह पर्व बड़ी धुमधाम से मनाया जाता है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु के रूप में शालिग्राम भगवान और माता तुलसी विधि विधान से विवाह संपन्न कराया जाता है। मान्यता है कि इस तुलसी विवाह घर में कन्यादान के समान पुण्य मिलता है। घर में सुख शांति व समृद्धि आती है। इस अवसर पर अनीता ओरा, मनिषा पाटीदार, पुनम ओरा ,सिमा अग्रवाल, भावना, लाली आदी उपस्थित रहें।
देवउठनी एकादशी का महत्व देवउठनी एकादशी व्रत करने से जीवन में सुख-समृद्धि व खुशहाली आती है। इसके साथ ही व्यक्ति के समस्त पापों का नाश होता है। कहते हैं कि एकादशी व्रत करने वाला मनुष्य सभी सुखों को भोगकर अंत में मोक्ष को पाता है।
देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह का महत्व देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का भी आयोजन करते हैं। इस दिन तुलसी के पौधे का भगवान शालिग्राम से विवाह कराया जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दंपत्तियों के कन्या नहीं होती उन्हें अपने जीवन में एक बार तो तुलसी विवाह का आयोजन जरूर ही करना चाहिए।
