
पर्यटन क्षेत्र में स्थानीय ग्राम सभाओं की भागीदारी को लेकर एक नई मांग सामने आई है। सर्व आदिवास समाज युवा प्रभाग जिला बस्तर के अध्यक्ष संतु मौर्य ने कहा कि पर्यटन प्रबंधन का अधिकार संविधान और कानून के अंतर्गत ग्रामों को नहीं दिया जाना चाहिए, ताकि स्थानीय समुदायों की झलक और अधिकार की रक्षा हो सके।
इन दोनों विधानों के अंतर्गत सभा ग्रामों को संविधान की 11वीं अनुसूची में पूर्ण विषयों पर कार्य करने एवं निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त है। उन्होंने विशेष रूप से कैसल संसाधन वन अधिकार (सामुदायिक वन संसाधन अधिकार) का उल्लेख करते हुए कहा कि जिन इलाकों को यह अधिकार प्राप्त है, वहां की ग्राम सभाओं के क्षेत्रीय और स्थानीय वन प्रबंधन में पहले से ही सीताफल की भूमिका निभाई जा रही है। इसी प्रकार, पर्यटन भी एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जिसमें ग्राम अपनी भूमिका निभा सकते हैं।
मौर्य ने कहा कि सभा ग्रामों में पर्यावरण संरक्षण, सांस्कृतिक खनिजों की रक्षा, स्वच्छता और स्थानीय रोजगार सृजन पर ध्यान देते हुए पर्यटन को जिम्मेदारी के रूप में निभा सकती है। इसके लिए स्वयं स्थानीय नियमों और स्वतंत्रता, आतंकवाद और प्रबंधन के लिए शुल्क भी निर्धारित किया जा सकता है।
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इस दिशा में स्पष्ट नीति बनाये और ग्राम सभाओं को आवश्यक मार्गदर्शन, प्रशिक्षण एवं संसाधन उपलब्ध कराये। इसके साथ ही शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से समूह को तैयार किया जाना चाहिए, ताकि वे प्रशिक्षण और उत्तरदेह तरीकों से पर्यटन संचालन कर सकें। अन्य लाभ स्थानीय समुदायों को खोजना चाहिए।
कुछ ग्रामीण सभाओं में पहले से ही पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में पहल की जा रही है, लेकिन इसे व्यापक स्तर पर लागू करने के लिए नीति और अधिकार की स्पष्टता की आवश्यकता है। श्री मौर्य ने जोर देकर कहा कि यदि सरकार ग्राम सभाओं को पर्यटन प्रबंधन का अधिकार देती है तो इससे न केवल स्थानीय आर्थिक विकास होगा, बल्कि सांस्कृतिक संरक्षण, सांस्कृतिक संतुलन और स्थानीय नेतृत्व को भी बढ़ावा मिलेगा।