उत्तर प्रदेशशाहजहाँपुर

*खाद के लिए तरसते किसान और मौन सत्ता कब मिलेगी जवाब देही*

खाद लेने के लिए लंबी लाइन
खाद ना मिलने पर धरना प्रदर्शन

अमित दीक्षित पत्रकार शाहजहांपुर

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शाहजहांपुर। उत्तर प्रदेश जैसे कृषि प्रधान राज्य में जब किसानों को खाद के लिए घंटों-घंटों लंबी लाइन में लगकर भी खाली हाथ लौटना पड़े, तो यह केवल एक प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि सत्ता की संवेदनहीनता का प्रमाण है। शाहजहांपुर जैसे जिले में जहां सहकारिता मंत्री से लेकर वित्त मंत्री और केंद्रीय मंत्री तक मौजूद हैं, दो-दो सांसद हैं वहां भी अगर किसान खाद के लिए दर-दर भटक रहा है, तो यह एक बड़ा सवाल बनकर उभरता है। आज जब सरकारें आंकड़ों के माध्यम से कृषि क्रांति का दावा कर रही हैं, तब खेतों की असल तस्वीर कुछ और ही कहानी बयां कर रही है। खाद का संकट महज आपूर्ति की समस्या नहीं है, यह वितरण प्रणाली में फैले भ्रष्टाचार, मनमानी और लापरवाही की उपज है। समितियों पर ओवररेटिंग के आरोप, मनमानी तरीके से खाद वितरण और जिम्मेदार अधिकारियों की उदासीनता ने किसान की पीड़ा को और गहरा कर दिया है। किसान खेत में अन्न उपजाता है, मगर खुद खाद के लिए संघर्ष करता है यह विडंबना नहीं तो और क्या है। जिले में इतने बड़े-बड़े नाम होने के बावजूद अगर एक बुनियादी जरूरत जैसे खाद की आपूर्ति नहीं हो पा रही है, तो इन पदों की उपयोगिता पर प्रश्नचिह्न लगना स्वाभाविक है। आखिर यह नेता कब बोलेंगे, क्या केवल चुनावी रैलियों में किसानों के नाम पर वोट मांगने तक ही इनकी भूमिका सीमित है। अब समय आ गया है कि जिले के जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारी खेत की मिट्टी में जाकर किसान की आंखों में देखना सीखें। उन्हें केवल आश्वासन नहीं कार्य चाहिए। समितियों पर निगरानी, पारदर्शी वितरण प्रणाली, और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई ही किसानों का विश्वास वापस ला सकती है। जब तक किसान को उसका हक नहीं मिलेगा, तब तक विकास के सारे दावे खोखले ही रहेंगे। सत्ता को अब यह समझना होगा कि किसान के पसीने को नजरअंदाज करना किसी भी व्यवस्था के लिए आत्मघाती हो सकता है।

!!धरना, प्रदर्शन और चुप्पी किसके लिए सत्ता में हैं जनप्रतिनिधि!!

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भारतीय किसान यूनियन भानू सहित तमाम किसान संगठन जब लगातार धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं, तो यह प्रशासन के लिए चेतावनी है, मगर दुर्भाग्य यह है कि सत्ता में बैठे जनप्रतिनिधि और जिम्मेदार अधिकारी इस आवाज को अनसुना कर रहे हैं। जब जनता की चुनी हुई सरकार ही जनता की तकलीफ से मुंह मोड़ ले, तो लोकतंत्र का वास्तविक अर्थ ही खो जाता है।

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