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रमज़ान का इतिहास और उसका अर्थ

*रमज़ान का इतिहास और उसका अर्थ*

जौनपुर शाहगंज,सर्व प्रथम सभी हम वतन भाईयों को राजकुमार “अश्क़” की तरफ़ से मुकद्दस माह-ए-रमजान की दिली मुबारकबाद कबूल हो। दुनिया का कोई भी मजहब हो हमें सिर्फ और सिर्फ एक ही पैगाम देता है कि इंसान आपस में मुहब्बत करे। हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई सभी धर्मों में एक ही बात सब ने कही है ऐ खुदा के बनाए हुए नेक बंदो एक दूसरे से मुहब्बत करो, नेकी के रास्ते पर चलो। खुदा लोगों के दिलो में बसता है, उसे वहाँ तलाश करो, वह ज़रूर मिलेगा।
इसी भाई चारे आपसी प्रेम,यतीमों मजलूमों, की मदद करने का पैगाम देता है,यह रमज़ान का पाक महीना। आज हम इसके इतिहास इसके मतलब तथा इसके पीछे की छिपी हकीकत पर रोशनी डालने का प्रयास कर रहे हैं। उम्मीद है हमारे पाठकों को यह जानकारी पसंद आएगी।
उपवास रखना व्रत रखना सभी धर्मों में एक समान कहा गया हैं, सिर्फ इसके तरीके अलग अलग बताए गये हैं। उसी तरह इस्लाम धर्म में भी उपवास रखने की बात कही गई है, जिसे रोजा कहा जाता है।
इस्लाम धर्म में ऐसी मान्यता है कि इस पाक महीने में खुदा अपनी रहमतों का दरवाजा खोल देता है,और एक माह के लिए जहन्नुम यानि नरक के दरवाजे बंद कर देता है।इस मुकद्दस महीने में की जाने वाली इबादत का सवाब (पुण्य) कई गुना बढ़ जाता है। खुदा की रहमत से इसकी पनाह में आया हुआ हर शख्स पाक साफ़ होकर फिर से निखर जाता है। रमज़ान इस्लामिक कैलेंडर का नवां महीना है, इबादत के एतबार से इससे ज्यादा पाक और मुकद्दस कोई भी महीना नही माना जाता है।इस्लाम धर्म के पांच फर्ज हैं, जिसे हर मुसलमान को करना पड़ता है
1- शहादा (कलमा)
2- नमाज़
3- रोजा
4- जकात
5- हज.
रमज़ान के महीने में रोजा रखना हर बालिग मुसलमान के लिए जरूरी है।इस महीने में जो भी इबादत की जाती है उसका सवाब (पुण्य) 70 गुना ज्यादा मिलता है.
रमज़ान उपवास, इबादत के साथ साथ खुद के संयम, खुद को परखने का भी महीना माना जाता है।इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक सन् 2 हिजरी में अल्लाह के हुक्म से हर बालिग पर रोजा रखना फर्ज किया गया। इसी पाक महीने में इस्लाम धर्म की सबसे पवित्र किताब कुरआन नाजिल हुआ था। रमजान के आखिरी हिस्से में 21,23,25,27,29 मे से कोई एक रात लैलतुल कद्र होती है, इसी दिन कुरआन को नाजिल किया गया था.
*रोजा रखने की छूट * वैसे तो हर बालिग मुसलमान के लिए रोजा रखना जरूरी होता है, मगर फिर भी कुछ मामलों में इससे छुट भी दी गई है, जैसे कोई शख्स अगर बिमार हो, या खाली पेट रहने से बिमारी बढ़ने का खतरा हो, इसके अलावा जो औरत माँ बनने वाली हो, जो औरत अपनी औलाद को दूध पिलाती हो या कोई बहुत ही बुढा हो, ऐसे लोगों पर रोजा रखना फर्ज नहीं है।
*सहरी*- रोजा सहर (भोर )के वक्त जिसे फज्र भी कहा जाता है, से शुरू होकर मगरिब की अजा़न तक होता है. सहर का मतलब होता है अलसुबह जिस वक्त रोजा रखने की नीयत बांधते है। इस वक्त कुछ खाकर जिसे सहरी कह कर पुकारा जाता है हर मुसलमान नीयत बाॅधता हैं, इसका एक मतलब यह भी हो सकता है बंदिश, रोजा रखने की एक बार नीयत करने के बाद इसे तोड़ना नही चाहिए , अगर ऐसा किया जाता है तो यह खुदा की निंगाह में गुनाहे अजी़म है.
*इफ्तारी* इफ्तारी का मतलब होता है किसी बंदिश को खोलना, जो शख्स रोजा रखता है, उसे पुरे दिन कुछ भी खाने पीने पर पूरी तरह बंदिश लगी रहती है, शाम के वक्त मग़रिब की अजा़न होतें ही यह बंदिश खत्म हो जाती है, और रोजेदार कुछ भी खा पी सकता है। खजूर से इफ्तार यानि रोजा खोलने को अफजल यानि शुभ माना जाता है.
*तराबीह* रमज़ान के पाक महीने में खुदा की एक विशेष लम्बी नमाज़ के जरिए इबादत की जाती है जिसे तराबीह कहा जाता है. यह 20 रकआत की होती है. लम्बी नमाज़ होने के कारण 4 रकात बाद थोड़ा वक्त बैठ कर राहत प्रदान किया जाता है।
*वैज्ञानिक आधार*
*रोजा रखने से अनेक बीमारियों से होता है बचाव*
तो आइए जानते हैं कि रोजा रखना सिर्फ एक धार्मिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी बहुत फायदेमंद है
*कैंसर से बचाव* एक रिसर्च के अनुसार अगर कोई साल में 20 से 25 दिन 8 से 10 घंटे बिना कुछ खाएं पिए रहता है तो शरीर में पैदा होने वाले कैंसर के कारक मरने लगते हैं जापानी साइंटिस्ट डाॅक्टर यशरा आशमी जिनको साल 2016 में मेडिसिन के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था उन्होंने ने भी यह साबित किया कि अगर कोई इंसान साल में 20 से 25 से दिन 8 से 10 घंटे अगर भूखा प्यासा रहें तो उसे कैंसर का खतरा कम हो जाता है।
इसी तरह हमारे गलत खानपान के कारण आज हार्ट जैसी गंभीर बीमारी विकराल रूप लेती जा रही है। रोजा रखने से इस बीमारी से काफी हद तक बचा जा सकता है।
रोजा रखने से इंसान का दिमाग भी तेज होता है इससे शरीर में ऑक्सीडेटिव स्द्रेस, इंफ्लामेशन, ब्लड शुगर और इंसुलिन में सुधार होता है जिससे दिमाग को स्वस्थ रखने में काफी मदद मिलती है।
मोटापा को सभी बिमारियों का जड़ कहा जाता है मगर यदि आप रोजा रखते हैं तो इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। लम्बे समय तक भूखे रहने से शरीर में जमा हुआ फैट (चर्बी) तेजी से घटने लगता है और शरीर हल्का होने लगता है।
इन सबके अतिरिक्त अनेक ऐसे तत्व है जो शरीर के लिए नुकसान दायक वह सब समाप्त होने लगते हैं और हमारें शरीर स्फूर्ति आने लगती है।
*इस्लामिक महीनों के नाम*- 1-मुहर्रम, 2-सफर, 3-रबी उल अव्वल, 4-रबी उल सानी, या रबी उल आखिर, 5-जमादिल अव्वल, 6-जमादी उल आखिर,7- रजब, 8-शाबान 9-रमज़ान, 10-शव्वाल, 11-जिल्काद, 12-जिल्हिज्ज.
राजकुमार अश्क़

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