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कृष्ण भक्त मीरा बाई का विमलकुंड पर रहा प्रवास

रिपोर्टर मनमोहन गुप्ता कामां 9783029649

डीग जिले के कामा कस्वे के कामवन धाम में प्रेमचंद गोवर्धन क़े सानिध्य में सैकड़ों भक्तों ने किये विमल बिहारी व मीरा के दर्शन
सभी ब्रजयात्रियों ने विमलकुण्ड ,विमल बिहारी व मीरा की कथा का श्रवण किया। मंदिर के सेवाअधिकारी संजय लवानिया ने मीराबाई की कथा सुनाते हुए बताया कि
मीरा बाई 1524 में भगवान कृष्ण और उनकी यादों की तलाश में आदिवृंदावन कामवन आईं। मीरा ने 1524 से 1539 तक ब्रजवास किया। फिर अपनी मृत्यु तक रहने के लिए द्वारिका चली गईं और 1550 में भगवान कृष्ण में डूब गईं। बचपन से ही मीराबाई, भगवान कृष्ण की भक्त थीं।
पति के मरने के बाद मीरा पर व्यभिचार का आरोप लगाया गया। उन दिनों व्यभिचार के लिए मत्यु दंड दिया जाता था। इसलिए शाही दरबार में उन्हें जहर पीने को दिया गया। उन्होंने कृष्ण को याद किया और जहर पीकर वहां से चल दीं। लोग उनके मरने का इंतजार कर रहे थे, लेकिन वह स्वस्थ्य और प्रसन्न बनी रहीं।मीरा को अनेकों प्रकार से परेशान किया।
जब यातनाएं बरदाश्त से बाहर हो गईं, तो उन्होंने चित्तौड़ छोड़ दिया। वे पहले मेड़ता गईं, लेकिन जब उन्हें वहां भी संतोष नहीं मिला तो कुछ समय के बाद उन्होने कृष्ण -भक्ति के केंद्र वृंदावन का रुख कर लिया। श्री कृष्ण से मिलने की आस में मीरा आदिवृन्दावन कामवन आई तथा कुछ दिन तीर्थराज विमलकुण्ड पर प्रवास किया। मीराबाई द्वारा स्थापित व पूजित गिरधर गोपाल की प्रतिमा मीरा संग आज भी मन्दिर विमल बिहारी में विराजमान है जिसके दर्शन को लाखों भक्तजन आते हैं।
मीरा मानती थीं कि वह गोपी ललिता ही हैं, जिन्होने फिर से जन्म लिया है। ललिता कृष्ण के प्रेम में दीवानी थीं। मीरा ने अपनी तीर्थयात्रा जारी रखी, वे एक गांव से दूसरे गांव नाचती-गाती पूरे ब्रजमंडल में घूमती रहीं। माना जाता है कि उन्होंने अपने जीवन के अंतिम कुछ साल गुजरात के द्वारका में गुजारे। ऐसा कहा जाता है कि मीरा द्वारका में द्वारकाधीश की मूर्ति में समा गईं।
समस्त कृष्ण भक्तगणों ने कामवन स्थित श्रीकृष्ण की क्रीड़ास्थलियों क़े दर्शन कर गोवर्धन को प्रस्थान किया।

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