
#41 प्रशिक्षु वाक् कला में हुए पारंगत#
काँठा परिषद का 7 दिवसीय पब्लिक स्पीकिंग कोर्स संपन्न
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मंच पर बोलनें के भय को खत्म करने, मंच की अप्रत्याशित चुनौतियों को संभालने, अपने विचारो को प्रभाव के साथ बताने के कौशल को विकसित करने व अपनी प्रामाणिक आवाज को आत्मविश्वास के साथ रखने की कला में वृद्धि करने के उद्धेश्य से काँठाप्रांतीय बंधुवरो के लिये आयोजित 7 दिवसीय पब्लिक स्पीकिंग कोर्स संपन्न हुआ। प्रशिक्षक हितेश गिरिया, नेहा चौधरी व पूजा जैन के प्रशिक्षण तथा रमेशकुमार निखिलकुमार गुन्देचा के प्रायोजन में राजाजीनगर स्थित आदिश्वर इंडिया कार्यालय में आयोजित इस KPPS कार्यशाला में 40 प्रशिक्षु बोलने की कला में पारंगत हुए। रविवार को आयोजित समापन समारोह की शुरुआत नवकार स्मरण से हुई। परिषद के अध्यक्ष उत्तमचंद कोठारी ने मुख्य अतिथि, विशेष अतिथियों, फेकल्टी, प्रायोजक, प्रशिक्षुओं व उनके पारिवारिक सदस्यों, ट्रस्टियों एवं समाज के गणमान्यों का
स्वागत किया। उन्होंने कहा कि दानवीरो के सहयोग से समाज की प्रतिभाओं को आगे लाने हेतु काँठा परिषद प्रतिबद्ध है। मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए पारस भंडारी ने प्रशिक्षुओं से कहा कि सेमिनार के पश्चात स्वयं में बदलाव अवश्यंभावी है और यहां से सीखा हुआ वापस समाज को देना आपकी जिन्मेदारी है। उन्होंने कहा कि जीवन में कुछ भी करने के लिये दिल और दिमाग के फरक को समझना होगा। उन्होंने कहा कि व्यापार, समाज, व्यवहार एवं धर्म के कार्यों का सही ढंग से आंकलन करना होगा तथा अपनी कार्यशैली, सोच, काम एवं स्वभाव में एक सोच प्रक्रिया को लाना होगा।
समापन समारोह में मुख्य अतिथि राजस्थान पत्रिका के संपादकीय प्रभारी जीवेंद्रकुमार झा ने कहा कि सफलता-असफलता तब आयेगी जब प्रयास करेंगे और प्रयास व मेहनत से एक दिन सफलता जरूर मिलती है। उन्होंने प्रशिक्षुओं को प्रेरणा देते हुए कहा कि हो सकता है कि संघर्ष लंबा हो परंतु हर असफलता एक सफलता की जननी होती है। तकनीक के बारे ने उन्होंने कहा कि तकनीक को इंसान ने ही बनाया है, वो इंसान से आगे नहीं जा सकती। तकनीक का उपयोग करना उचित है परंतु उस पर निर्भर न रहकर अपने ज्ञान के भंडार को बढ़ाना चाहिये। उन्होंने कहा कि आलोचक हमारी कमियों को उजागर करता है, उन आलोचनाओं का आंकलन कर स्वयं में बदलाव करना है। काँठा परिषद के मंत्री सिद्धार्थ बोहरा ने प्रशिक्षुओं से अनुरोध किया कि कार्यशाला से प्राप्त कला का उपयोग अपने दैनिक जीवन के साथ समाजोपयोगी कार्यों में अवश्य करे। साथ ही उन्होंने कहा कि ऐसे कलात्मक कार्यों में महिलाओं का बड़ी संख्या में भाग लेना काँठा समाज के लिये एक शुभ संकेत है। योजना संयोजक दिनेश खींवेसरा ने प्रशिक्षकों की मेहनत और प्रशिक्षुओं के लगन की सराहना की। उन्होंने जानकारी दी कि समापन समारोह की प्रस्तुति में प्रशिक्षुओं ने पर्यावरण, पानी, भ्रूण हत्या, खानपान, पौधारोपण, बच्चे अभिभावको के मित्र, पीढ़ी का अंतराल, लैंगिक समानता, पाश्चात्यकरण, सोशियल मीडिया, केशलेस इकोनोमि, पशु बलि, योग एवं सड़क सुरक्षा जैसे विषयों पर अपने विचार रखे। इस अवसर पर समाज सेवी महेंद्र मूणोत ने कहा कि मनुष्य को जीवन में सेवा करने के लियेज्ञान की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजनो से न केवल कब, कहा कैसे और कितना बोलना सीखाया जाता है साथ में संस्कारों से जोड़ने का कार्य भी होता है। उन्होंने कहा कि कथनी और करणी में फरक न हो तो ही बात दूसरों तक पहुँचती है। प्रायोजक रमेश गुन्देचा ने प्रशिक्षुओं से कहा कि अपने विचारो को सुचारू रूप से लोगों को बताना है और एक सशक्त प्रांत का निर्माण करना है।
समापन समारोह में सेमिनार के प्रशिक्षक हितेश गिरिया, नेहा चौधरी व पूजा जैन ने सभी श्रोताओं को अपने दमदार व्यक्तव्य से प्रभावित किया, उन सभी ने प्रशिक्षुओं को वाक् कला के उत्पादक उपयोग के सुझाव दिये। सभी प्रशिक्षकों, प्रायोजक, मुख्य अतिथियों, विशेष अतिथि गणेशमल गुगलिया, मिट्ठालाल मुथा व सुरेश भंडारी तथा सहयोग के लिये सिमरण खींवेसरा का सम्मान किया गया। सात दिवसीय सेमिनार में सह संयोजक सूरजमल पितलिया व संजय गुन्देचा तथा भोजन व्यवस्था में रमेश गुगलिया का विशेष सहयोग रहा। सभी प्रशिक्षुओं ने बौद्धिक विकास व वाक् कला में निपुर्णता हेतु समय समय पर ऐसे आयोजन का आग्रह किया। इस अवसर पर समाज के अनेकों गणमान्यों, प्रशिक्षुओं के पारिवारिक सदस्यों के साथ परिषद के ट्रस्टी विजय गुगलिया, किरणराज कोठारी, महेंद्र खींवेसरा, रमेश बी गुगलिया, विनोद गुगलिया, विमल गांधी, किरण गुगलिया, कांतिलाल गुगलिया इत्यादि मौजूद थे।