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उच्च न्यायालय वीकली राउंड अप: पिछले सप्ताह के कुछ खास नंबर/जजमेंट पर एक नज़र

उच्च न्यायालय वीकली राउंड अप: पिछले सप्ताह के कुछ खास नंबर/जजमेंट पर एक नज़र

 

देश के विभिन्न न्यायालयों में पिछले सप्ताह (22 अप्रैल, 2024 से 26 अप्रैल, 2024) तक क्या हुआ, देखने के लिए देखते हैं उच्च न्यायालय वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह उच्च न्यायालय के कुछ खास आदेश/जजमेंट पर एक नजर।

भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना में आठ सप्ताह के सीडीएस परीक्षण के माध्यम से महिलाएं शामिल होने के लिए निर्णय ले सकती हैं: दिल्ली हाई कोर्ट

 

दिल्ली हाइकोर्ट ने शुक्रवार को केंद्रीय रक्षा मंत्रालय को संयुक्त रक्षा सेवा (सीडीएस) परीक्षा के माध्यम से भारतीय सैन्य अकादमी, भारतीय नौसेना अकादमी और वायु सेना अकादमी में भर्ती के लिए महिला टीम को शामिल करने की मांग वाली याचिका पर निर्णय लेने का निर्देश दिया।

प्रतिष्ठित वैज्ञानिक वैज्ञानिक और न्यायाधीश मनमीत पुतिम सिंह अरोड़ा ने केंद्र सरकार को आठ सप्ताह के भीतर कानून के कुश कालरा द्वारा खंडित अभयवेदन निर्णय लेने का निर्देश दिया।

केश प्रयोगशाला- कुश कालरा बनाम भारत संघ और अन्य।

 

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कार्य अनुपूरक सेवा के रूप में बाद में नियमित रूप से कर सकते हैं पेंशन अर्हक सेवा के रूप में माना जा सकता है, पेंशन की गणना के लिए नहीं: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

 

इलाहाबाद उच्च न्यायालय का मानना ​​है कि कोई भी कर्मचारी दैनिक वेतन भोगी के रूप में पेंशन/पेंशन राशि की गणना के लिए दी गई सेवाएं अर्हक सेवा के रूप में नहीं ले सकता है। ऐसा माना जाता है कि जब कर्मचारी पद पर नियुक्त कर्मचारियों को पद पर नियुक्त किया जाता है और बाद में नियमित कर दिया जाता है, तो पद पर नियुक्त कर्मचारियों को पेंशन की अवधि के लिए अर्हक सेवाओं में पद पर नियुक्त किया जाना चाहिए।

जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की पीठ ने आगे स्पष्ट किया कि “याचिकाकर्ता के दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को पेंशन/पेंशन की मात्रा के उद्देश्य से दी जाने वाली सेवाएं प्रदान नहीं की जा सकती हैं। हालाँकि, एक ही समय में, कई वर्षों तक कार्यशाला कर्मचारी के रूप में सेवा प्रदान करने के बाद और उसके बाद, जब उसकी सेवा नियमित हो गई, तो उसे इस आधार पर पेंशन से शुरू नहीं किया जा सकता है कि वह पेंशन के लिए अर्हक सेवा प्रदान कर सके बिल्कुल नहीं.

केएस प्लांट: यूपी राज्य और 3 अन्य बनाम अरुण कुमार श्रीवास्तव 2024 लाइव लॉ (एबी) 267 [विशेष अपील दोषपूर्ण संख्या – 2024 का 62]

 

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संविदा भर्ती नियुक्ति| एंटरप्राइज़ की पूरी कंपनी प्रक्रिया फ़र्जी, दस्तावेज़ीकरण से पहले सुनवाई के अवसर की आवश्यकता नहीं: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय

 

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के सहायक शाला शिक्षक ग्रेड-III भर्ती अकादमी के संदर्भ में कहा गया है कि रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि राज्य के अधिकारियों ने भर्ती प्रक्रिया को लागू किया है। कोर्ट ने मध्य प्रदेश पंचायत शिक्षा मंत्रालय (भर्ती एवं सेवा शर्त) नियम, 1997 में लागू कर्मचारियों का पालन न करने पर भी राज्य सरकार को निर्देश दिया।

चीफ जस्टिस रवि मलिमथ और जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि एक बार अवैध रूप से नियुक्तियां देने में संबंधित अधिकारियों की भूमिका राजस्व आयुक्त के समक्ष रिकॉर्ड से परिलक्षित होती है, तो उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए आगे के निर्देश में अदालत के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

केस टाइटल: राकेश पांडे बनाम मध्य प्रदेश राज्य, प्रमुख सचिव स्कूल शिक्षा विभाग और अन्य के माध्यम से।

 

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जीवनसाथी पर एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर का झूठा आरोप लगाना, बच्चों को स्वीकार करने से इनकार करना मानसिक क्रूरता: दिल्ली हाइकोर्ट

 

दिल्ली हाइकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जीवनसाथी पर एक्स्ट्रा मैरिटल संबंध का झूठा आरोप लगाना और बच्चों के पालन-पोषण से इनकार करना मानसिक क्रूरता है।

जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने कहा कि वैवाहिक बंधन को अस्वीकार करना और बच्चों को स्वीकार करने से इनकार करना, जो पति द्वारा लगाए गए घृणित आरोपों में निर्दोष पीड़ित हैं, कुछ और नहीं बल्कि सबसे गंभीर प्रकार की मानसिक क्रूरता है।

केस टाइटल: एक्स बनाम वाई

 

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झारखंड में व्याप्त नशीली दवाओं की समस्या के जवाब में हाइकोर्ट ने विभिन्न राज्य प्राधिकारियों विशेष रूप से राज्य पुलिस को कई निर्देश जारी किए

 

मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और अरुण कुमार राय ने इस बात पर जोर दिया कि तस्करी की समस्या रांची जिले से आगे तक फैली हुई है और पूरे राज्य में पूरे पुलिस प्रशासन को इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

चिंता व्यक्त करते हुए न्यायालय ने कहा, “यह न्यायालय यह समझने में विफल है कि दक्षिण छोटानागपुर, रांची के पुलिस उप महानिरीक्षक ने हालांकि ज्ञापन संख्या 1675 दिनांक 06.04.2024 के माध्यम से एक पत्र जारी किया, लेकिन बहुत आश्चर्यजनक रूप से उन्होंने नशीली दवाओं से संबंधित अपराध को विनियमित और नियंत्रित करने के लिए केवल दवा/मेडिकल दुकानों पर सीसीटीसी लगाने के निर्देश जारी किए, जैसा कि अनुलग्नक-I से पता चलता है, लेकिन यह केवल रांची जिले तक ही सीमित है।

केस टाइटल- चंदन कुमार यादव @ चंदन कुमार बनाम झारखंड राज्य और अन्य

 

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एमएसएमईडी अधिनियम, 2006 की धारा 19 के तहत न्यायालय को किश्तों में पूर्व जमा की अनुमति देने का अधिकार: इलाहाबाद हाईकोर्ट

 

इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक खंडपीठ, जिसमें चीफ जस्टिस अरुण भंसाली और जस्टिस जसप्रीत सिंह शामिल थे, ने कहा कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 की धारा 19 में अभिव्‍यक्ति “ऐसी अदालत द्वारा निर्देशित तरीके से” अदालत को विवेक देती है कि यदि आवश्यक लगे तो पूर्व-जमा को किस्तों में दिए जाने की अनुमति दी जा सकती है।

एमएसएमई अधिनियम की धारा 19: “डिक्री, अवॉर्ड या आदेश को रद्द करने के लिए आवेदन- परिषद द्वारा या वैकल्पिक विवाद समाधान सेवाएं प्रदान करने वाले किसी संस्थान या केंद्र द्वारा किए गए किसी भी डिक्री, अवॉर्ड या अन्य आदेश को रद्द करने के लिए किसी आवेदन, जिसका संदर्भ परिषद द्वारा दिया गया हो, को किसी भी अदालत द्वारा तब तक विचार नहीं किया जाएगा, जब तक कि अपीलकर्ता (आपूर्तिकर्ता नहीं होने के नाते) ने डिक्री, अवॉर्ड या, ऐसे न्यायालय द्वारा निर्देशित तरीके से अन्य आदेश, जैसा भी मामला हो, के संदर्भ में राशि का पचहत्तर प्रतिशत जमा नहीं कर दिया हो।

केस टाइटलः मेसर्स डॉकेट केयर सिस्टम्स बनाम मेसर्स हैरीविल इलेक्ट्रॉनिक्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड

 

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चुनाव | उम्मीदवार को हलफनामे में उन आपराधिक मामलों का खुलासा करने की जरूरत नहीं, जहां आरोप तय नहीं किया गया या संज्ञान नहीं लिया गया: कर्नाटक हाईकोर्ट

 

कर्नाटक हाईकोर्ट हाल ही में एक फैसले में यह स्पष्ट किया कि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार के खिलाफ एफआईआर दर्ज करके या निजी शिकायत दर्ज करके शुरू किए गए हर आपराधिक मामले का खुलासा नामांकन पत्र के साथ हलफनामे में नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि जिन मामलों में आरोप तय नहीं किए गए हैं या कथित अपराधों का संज्ञान नहीं लिया गया है, उन्हें हलफनामे में बताने की जरूरत नहीं है।

जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित की एकल न्यायाधीश पीठ ने बीजी उदय द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की, जिन्हें गलत हलफनामा दाखिल करने के लिए जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 125 ए के तहत दोषी ठहराया गया था। अपीलीय अदालत ने इसकी पुष्टि की।

केस टाइटलः बी जी उदय और एच जी प्रशांत

 

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एक ही आरोपी के विरुद्ध विभिन्न अपराधों के लिए आंशिक संज्ञान लेना उचित नहीं: राजस्थान हाइकोर्ट

 

राजस्थान हाइकोर्ट ने माना कि एक ही आरोपी के विरुद्ध विभिन्न अपराधों के लिए अलग-अलग न्यायालयों द्वारा दो बार संज्ञान नहीं लिया जा सकता। जस्टिस अनूप कुमार ढांड की सिंगल बेंच ने कहा कि अतिरिक्त सेशन जज द्वारा याचिकाकर्ता क्रमांक 1 से 3 के विरुद्ध धारा 307 और 148 के अंतर्गत नए सिरे से संज्ञान लेने का कार्य, मजिस्ट्रेट द्वारा पहले से संज्ञान लिए गए आईपीसी की धारा 323, 341, 325, 308 और 379 के अंतर्गत आने वाले अपराधों के अतिरिक्त कानून के अनुरूप नहीं है।

केस टाइटल-लक्ष्मण सिंह @ बंटी और अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।

 

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सीआरपीसी के तहत आवेदन किए बिना ट्रायल कोर्ट के समक्ष कोई नई सामग्री पेश नहीं की जा सकती: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

 

पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPc) के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत आवेदन किए बिना ट्रायल कोर्ट में कोई नई सामग्री प्रदर्शित नहीं की जा सकती। अदालत ने अभियोजन पक्ष के साक्ष्य के समापन के बाद यौन उत्पीड़न के लिए आरोपी के इकबालिया बयान के साथ तुलना करने के लिए शिकायतकर्ता के आवेदन को अनुमति देने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया।

केस टाइटल- XXX बनाम XXX

 

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जिस हिंदू महिला की खुद की कोई आय न हो, वह मृत पति की दी गई संपत्ति का आनंद ले सकती है, हालांकि उस पर पूर्ण अधिकार नहीं रख सकती: दिल्ली हाईकोर्ट

 

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि एक हिंदू महिला, जिसकी खुद की कोई आय न हो, उसे अपने पूरे जीवनकाल में मृत पति से प्राप्त संपत्ति का आनंद लेने का पूरा अधिकार है, हालांकि उस पर उसका “पूर्ण अधिकार” नहीं हो सकता है।

जस्टिस प्रथिबा एम सिंह ने कहा, “हिंदू महिलाओं के मामले में, जिनके पास अपनी आय नहीं है, उनके पतियों द्वारा दी गई जीवन संपत्ति प्राप्त करना..उनकी वित्तीय सुरक्षा के लिए आवश्यक है।” अदालत ने कहा कि ऐसी सुरक्षा यह सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि पति के निधन के बाद महिला अपने बच्चों पर निर्भर न रहे। कोर्ट ने कहा, “ऐसी परिस्थितियों में, पत्नी को अपने जीवनकाल में संपत्ति का आनंद लेने का पूरा अधिकार है। वह जीवन भर उक्त संपत्ति से आय का आनंद ले सकती है।”

केस टाइटलः मनमोहन सिंह और अन्य बनाम शीतल सिंह और अन्य।

 

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छंटनी नोटिस और नोटिस के बदले भुगतान की प्रक्रियात्मक आवश्यकताएं आईडी एक्ट की धारा 25एफ और राज्य नियमों के तहत पूरी की जानी चाहिए: गुजरात हाईकोर्ट

 

गुजरात हाईकोर्ट की एक खंडपीठ, जिसमें जस्टिस बीरेन वैष्णव और जस्टिस प्रणव त्रिवेदी शामिल थे, उन्होंने अहमदाबाद स्थित मार्बल डीलर त्रिवेदी क्राफ्ट्स के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया। पीठ ने औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25एफ और औद्योगिक विवाद (गुजरात) नियम, 1996 के नियम 80बी का अवलोकन किया और कहा कि निर्धारित प्रारूप में नोटिस देकर और नोटिस की एवज में प्रभावित श्रमिकों को एक महीने का वेतन देकर छंटनी की प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं का विधिवत पालन किया गया था।

केस टाइटल: भीमनाथ आर यादव और अन्य बनाम त्रिवेदी क्राफ्ट्स प्रा लिमिटेड और अन्य

 

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राष्ट्रीय आरोग्य निधि के तहत वित्तीय सहायता का दावा करने के लिए आय सीमा प्रथम दृष्टया अनुचित: दिल्ली हाइकोर्ट

 

स्वतः संज्ञान लेते हुए दिल्ली हाइकोर्ट ने हाल ही में पाया कि प्रथम दृष्टया केंद्र सरकार की राष्ट्रीय आरोग्य निधि (RAN) अम्ब्रेला योजना के तहत लाभ का दावा करने के लिए आय सीमा उचित नहीं है। यह योजना राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले और हृदय, किडनी आदि से संबंधित जानलेवा बीमारियों से पीड़ित गरीब मरीजों को सरकारी अस्पतालों में उनके इलाज के लिए एकमुश्त वित्तीय सहायता प्रदान करती है।

केस टाइटल- न्यायालय अपने स्वयं के प्रस्ताव पर बनाम भारत संघ और अन्य

 

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नाबालिग लड़की अपनी मर्जी से आरोपी के साथ अभिभावक के घर से बाहर निकली, इसे अपहरण नहीं माना जाएगा: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

 

पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने कहा कि यदि कोई नाबालिग लड़की अपनी मर्जी से अपने अभिभावक के घर से बाहर निकलती है तो वह अपहरण के लिए उत्तरदायी नहीं होगी। अदालत ने आरोपी को अग्रिम जमानत दी, जिस पर फतेहगढ़ साहिब पुलिस ने 17 वर्षीय लड़की का अपहरण करके उसे शादी के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया।

जस्टिस मनीषा बत्रा ने कहा, “कानून का सुस्थापित प्रस्ताव यह भी है कि आरोपी ने आईपीसी की धारा 363 के तहत अपराध साबित करने के लिए नाबालिग के अपने वैध अभिभावक की हिरासत से बाहर निकलने में सक्रिय भूमिका निभाई होगी और जहां नाबालिग विवेक की उम्र में है और अपनी मर्जी से अपने माता-पिता का घर छोड़कर आरोपी के साथ जाती है, वहां आरोपी पर अपहरण का आरोप नहीं लगाया जा सकता।”

केस टाइटल- XXX बनाम XXX

 

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दोषी कर्मचारी उन मामलों में भी जांच रिपोर्ट की प्रति के हकदार जहां अनुशासनात्मक कार्यवाही को नियंत्रित करने वाले नियम छिपे हैं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

 

अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करने वाले सरकारी कर्मचारियों के अधिकारों की पुष्टि करते हुए जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि अपराधी कर्मचारी जांच रिपोर्ट की एक प्रति के हकदार हैं, यहां तक कि उन मामलों में भी जहां अनुशासनात्मक कार्यवाही को नियंत्रित करने वाले नियम स्पष्ट रूप से इसके लिए प्रदान नहीं करते हैं।

भारत संघ और अन्य बनाम मोहम्मद रमजान खान 1991 का संदर्भ देते हुए, जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब भी जांच अधिकारी अनुशासनात्मक प्राधिकारी के अलावा अन्य होता है और जांच अधिकारी की रिपोर्ट कर्मचारी को आरोपों का दोषी ठहराती है, तो अपराधी कर्मचारी रिपोर्ट की एक प्रति का हकदार है ताकि वह अनुशासनात्मक प्राधिकरण को प्रतिनिधित्व करने में सक्षम हो सके।

 

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जहां पति-पत्नी का विवाद फैमिली कोर्ट में लंबित हो, वहां मुलाक़ात के अधिकार के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका आम तौर पर सुनवाई योग्य नहीं होगी: इलाहाबाद हाईकोर्ट

 

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट आम तौर पर मुलाक़ात का अधिकार देने के लिए जारी नहीं की जाएगी, खासकर जब पार्टियों के बीच की कार्यवाही फैमिली कोर्ट के समक्ष लंबित हो। जस्टिस डॉ योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की पीठ ने कहा, “बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट, जैसा कि लगातार माना जाता रहा है, हालांकि अधिकार की रिट है, निश्चित रूप से जारी नहीं की जानी चाहिए, खासकर जब बच्चे की कस्टडी के लिए माता-पिता के खिलाफ रिट मांगी जाती है।”

केस टाइटलः मिथिलेश मौर्य और अन्य बनाम यूपी राज्य और 5 अन्य 2024 लाइव लॉ (एबी) 265

 

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औद्योगिक विवाद अधिनियम | श्रम न्यायालय के पास जांच अधिकारी के डिस्चार्ज या ‌डिसमिसल ऑर्डर के निष्कर्ष की सत्यता की जांच करने की पर्याप्त शक्ति: इलाहाबाद हाईकोर्ट

 

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि श्रम न्यायालय को औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 11-ए के तहत जांच अधिकारी की ओर से पारित डिस्चार्ज या डिसमिसल ऑर्डर में दिए गए निष्कर्ष की सत्यता की जांच करने के लिए पर्याप्त शक्ति दी गई है। जस्टिस दिनेश पाठक की सिंगल बेंच ने कहा कि औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 11 श्रमिक के ‌डिस्चार्ज या डिसमिसल के मामले में उचित राहत देने के लिए श्रम न्यायालयों/न्यायाधिकरण/राष्ट्रीय न्यायाधिकरण की शक्ति को दर्शाती है। यह माना गया कि श्रमिक को राहत देने के मामले की जांच करते समय, श्रम न्यायालय को ‌डिस्चार्ज/‌डिसमिसल ऑर्डर की वैधता की जांच करने की शक्ति सौंपी गई है।

केस टाइटलः चरण पाल सिंह बनाम पीठासीन अधिकारी श्रम न्यायालय द्वितीय गाजियाबाद और अन्य 2024 लाइव लॉ (एबी) 264

 

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लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम अपने आप में पूर्ण संहिता, परिसीमन अधिनियम उस पर लागू नहीं होता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

 

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 86(1) के तहत दायर चुनाव याचिका, जिसे अधिनियम की धारा 81 के तहत निर्धारित सीमा अवधि के बाहर दायर किया गया है, सुनवाई योग्य नहीं है। जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह ने कहा कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 एक पूर्ण और स्व-निहित संहिता है, जो परिसीमन अधिनियम को अनुपयुक्त बना देता है। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 81 निर्वाचित उम्मीदवार के चुनाव की तारीख से 45 दिनों की अवधि प्रदान करती है और यदि चुनाव की तारीखें अलग-अलग हैं तो चुनाव याचिका दायर करने के लिए बाद की तारीख दी जाती है।

केस टाइटलः जय प्रकाश और अन्य बनाम अंजुला सिंह माहौर और अन्य [ELECTION PETITION NUMBER- 1 of 2024]

 

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गलत तरीके से ट्रेन से उतरने के दौरान यदि यात्री को चोट लगती है या मृत्यु हो जाती है, तो रेलवे मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी: कर्नाटक हाईकोर्ट

 

कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि यदि किसी वास्तविक यात्री की चलती ट्रेन से उतरते समय मृत्यु हो जाती है, जिस पर वह गलत तरीके से चढ़ गया, तो रेलवे दावेदारों को मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी है। जस्टिस एचपी संदेश की एकल न्यायाधीश पीठ ने रोजमनी और अन्य द्वारा दायर अपील स्वीकार कर ली और रेलवे दावा न्यायाधिकरण द्वारा दिनांक 28-04-2016 को पारित आदेश रद्द कर दिया।

पीठ ने आदेश रद्द करते हुए कहा, “न्यायाधिकरण द्वारा पारित निर्णय रद्द कर दिया गया। परिणामस्वरूप, दावा आवेदन स्वीकार किया जाता है। अपीलकर्ता दावा आवेदन दाखिल करने की तारीख से इसकी प्राप्ति तक 7% प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ 4,00,000/- रुपये के मुआवजे के हकदार हैं।”

केस टाइटल: रोज़मनी और अन्य तथा यूनियन बैंक ऑफ इंडिया

 

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Dowry Death | अभियोजन पक्ष को आरोपी के खिलाफ दोष का अनुमान लगाने के लिए पहले आईपीसी की धारा 304-बी के सभी तत्व दिखाने होंगे: झारखंड हाइकोर्ट

 

झारखंड हाइकोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब अभियोजन पक्ष द्वारा आईपीसी की धारा 304-बी के तहत अपराध के सभी तत्व दिखाए जाते हैं, तभी निर्दोषता की धारणा समाप्त हो जाती है, जिससे साक्ष्य अधिनियम (Evidence Act) की धारा 113-बी के तहत साबित करने का भार अभियुक्त पर आ जाता है।

जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस प्रदीप कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने कहा, “आईपीसी की धारा 304-बी के तहत अभियुक्त के दोषी आचरण पर अनिवार्य धारणा होने के कारण अभियोजन पक्ष को पहले अपराध के सभी तत्वों की उपलब्धता दिखानी चाहिए, जिससे साक्ष्य अधिनियम की धारा 113-बी के अनुसार साबित करने का भार अभियुक्त पर आ जाए। एक बार सभी तत्व मौजूद होने के बाद निर्दोषता की धारणा समाप्त हो जाती है।”

केस टाइटल- संजय साव बनाम झारखंड राज्य

 

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रजिस्टर्ड आयुर्वेदिक मेडिकल प्रैक्टिशनर के रूप में लाइसेंस प्राप्त करने का अधिकार केवल BAMS/BUMS डिग्री रखने वालों को ही: दिल्ली हाईकोर्ट

 

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि रजिस्टर्ड आयुर्वेदिक या यूनानी मेडिकल प्रैक्टिशनर के रूप में लाइसेंस प्राप्त करने का अधिकार केवल उसी स्टूडेंट के पास है, जिसके पास BAMS/BUMS की डिग्री है।

जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि ऐसी डिग्री प्राप्त करने से पहले स्टूडेंट को रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर के रूप में प्रैक्टिस करने का कोई अधिकार नहीं है। अदालत ने कहा, “जो स्टूडेंट BAMS/BUMS डिग्री प्राप्त करने के लिए BAMS/BUMS कोर्स कर रहा है, वह ऐसे किसी अधिकार का दावा नहीं कर सकता।”

केस टाइटल: जीवेश कुमार एवं अन्य बनाम भारत संघ और अन्य।

 

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सहकारी समिति के कर्मचारी/अधिकारी लोक सेवक नहीं, IPC की धारा 409 के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

 

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि सहकारी समिति के कर्मचारी और अधिकारी भारतीय दंड संहिता की धारा 21 के अनुसार लोक सेवक नहीं हैं और इसलिए आईपीसी की धारा 409 (लोक सेवक, बैंकर, व्यापारी या एजेंट द्वारा आपराधिक विश्वासघात) के तहत उन पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।

जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने बृजपाल सिंह द्वारा दायर एक याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें एडिसनल चीफ़ जूडिशियल मजिस्ट्रेट, एटा की अदालत द्वारा पारित आपराधिक कार्यवाही, आरोप पत्र, और संज्ञान आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी।

 

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धारा 202 सीआरपीसी | जांच अदालत को विशेष रूप से सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय मामलों में सभी शिकायत गवाहों की जांच करनी चाहिए: झारखंड हाईकोर्ट

 

झारखंड हाईकोर्ट ने जोर देकर कहा जब कोई मामला सत्र न्यायालय के विशेष क्षेत्राधिकार में आता है तो जांच अदालत के लिए शिकायतकर्ता को शिकायत में आरोपों का समर्थन करने वाले सभी गवाहों से पूछताछ करने के लिए बुलाना आवश्यक है।

मामले की अध्यक्षता करते हुए जस्टिस सुभाष चंद ने कहा, “इस धारा 202 (ए) और धारा 202 (बी) और धारा 202 (2) के प्रावधानों में यह प्रावधान है कि यदि मामला विशेष रूप से सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है तो यह अनिवार्य है जांच अदालत शिकायत में लगाए गए आरोपों के समर्थन में शिकायत के सभी गवाहों से पूछताछ करने के लिए कहेगी।”

केस टाइटल: डॉ. पुनम सिन्हा @ पुनम सिन्हा बनाम झारखंड राज्य और अन्य

 

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धारा 202 सीआरपीसी | जांच अदालत को विशेष रूप से सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय मामलों में सभी शिकायत गवाहों की जांच करनी चाहिए: झारखंड हाईकोर्ट

 

झारखंड हाईकोर्ट ने जोर देकर कहा जब कोई मामला सत्र न्यायालय के विशेष क्षेत्राधिकार में आता है तो जांच अदालत के लिए शिकायतकर्ता को शिकायत में आरोपों का समर्थन करने वाले सभी गवाहों से पूछताछ करने के लिए बुलाना आवश्यक है।

मामले की अध्यक्षता करते हुए जस्टिस सुभाष चंद ने कहा, “इस धारा 202 (ए) और धारा 202 (बी) और धारा 202 (2) के प्रावधानों में यह प्रावधान है कि यदि मामला विशेष रूप से सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है तो यह अनिवार्य है जांच अदालत शिकायत में लगाए गए आरोपों के समर्थन में शिकायत के सभी गवाहों से पूछताछ करने के लिए कहेगी।”

केस टाइटल: डॉ. पुनम सिन्हा @ पुनम सिन्हा बनाम झारखंड राज्य और अन्य

 

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फैमिली कोर्ट्स के पास स्टेटस में परिवर्तन होने पर चाइल्ड कस्टडी आदेशों को संशोधित करने का अधिकार, रेस ज्यूडिकाटा का सिद्धांत लागू नहीं होता: केरल हाइकोर्ट

 

केरल हाइकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया कि चाइल्ड कस्टडी मामलों में परिस्थितियों में कोई परिवर्तन होने पर पक्षकारों के लिए न्यायालय से संपर्क करना और आदेश में संशोधन की मांग करना खुला है। फैमिली कोर्ट ने कहा कि शुरू में पारित आदेश को अंतिम नहीं कहा जा सकता, यह कहते हुए कि रेस ज्यूडिकाटा का सिद्धांत बाल हिरासत मामलों में लागू नहीं होता।

फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज करते हुए जस्टिस राजा विजयराघवन वी और जस्टिस पीएम मनोज की खंडपीठ ने दोहराया कि यदि परिस्थितियों में परिवर्तन होता है, जो बच्चे की भलाई को प्रभावित करता है तो न्यायालयों के पास कस्टडी आदेशों को संशोधित करने का अधिकार है। यहां तक कि जब आदेश माता-पिता के बीच समझौते/समझ के आधार पर होते हैं तो स्थिति बदलने पर और बच्चे के कल्याण के लिए इसे आवश्यक समझे जाने पर उन पर फिर से विचार किया जा सकता है।

केस टाइटल- थॉमस @ मनोज ईजे बनाम इंदु एस

 

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औद्योगिक विवाद अधिनियम| लेबर

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