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महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव 2024 बीजेपी को डरा रहा डीएमके फैक्टर, दलित, मराठा-मुस्लिम और कुनबी झटका क्यों दे सकते हैं ?

राज्य महाराष्ट्र के लोकसभा चुनाव 2024 में इस बार बीजेपी को सबसे बड़ा फैक्टर डीएमके डरा रहा है। डीएमके मतलब दलित, मराठा-मुस्लिम और कुनबी।

विजय कुमार भारद्वाज/मुंबई

महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव 2024 बीजेपी को डरा रहा डीएमके फैक्टर, दलित, मराठा-मुस्लिम और कुनबी झटका क्यों दे सकते हैं ?

मुंबई/महाराष्ट्र: राज्य महाराष्ट्र के लोकसभा चुनाव 2024 में इस बार बीजेपी को सबसे बड़ा फैक्टर डीएमके डरा रहा है। डीएमके मतलब दलित, मराठा-मुस्लिम और कुनबी। महाराष्ट्र में पहले चरण का लोकसभा चुनाव हो चुका है, जिसमें बहुत कम वोटिंग हुई। अब दूसरे दौर के चुनाव शुक्रवार को होंगे। विदर्भ की 5 और मराठवाडा की 3 सीटों पर चुनाव है।महाराष्ट्र के पहले दौर के लोकसभा चुनाव में कम वोटिंग होने के बाद बीजेपी सतर्क हो गई है। बीजेपी के रणनीतिकारों को लग रहा है कि कम वोटिंग मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के सपने के आड़े आ सकती है। लिहाजा, एक तरफ जहां उसने अपने चुनाव प्रचार में हिंदुत्व का तड़का लगाना शुरू कर दिया है, वहीं अगले दौर के चुनावों में वोटर्स को मतदान के लिए निकालने की रणनीति पर भी काम हो रहा है। सूत्रों के अनुसार, संघ और बीजेपी के कार्यकर्ताओं से कहा गया है कि वे वोटर्स के बूथ तक आने का इंतजार न करें, बल्कि हर दो घंटे में वोटर लिस्ट की समीक्षा करने के साथ ही हर सोसायटी और घर-घर जाकर वोटर्स को बाहर निकालें। बीजेपी को अंदेशा है कि पहले दौर की कम वोटिंग के बाद अगले दौर में उसकी चुनौती और बढ़ गई है। खास तौर पर महाराष्ट्र में, जहां महा विकास आघाडी की शक्ल में इंडिया अलायंस एकजुट है और ज्यादातर सीटों पर उसने सूझ-बूझ और समन्वय के साथ उम्मीदवारों का चयन किया है।दलितों का क्या है डर?इस चुनाव में सबसे बड़ा फैक्टर डीएमके यानी दलित, मराठा-मुस्लिम और कुनबी बनकर सामने आ रहा है। दूसरे दौर के चुनाव में विदर्भ की पांच और मराठवाडा की तीन सीटों पर चुनाव है, लेकिन इनमें से कई पर बीजेपी को खूब पसीना बहाना पड़ रहा है। असल में महाराष्ट्र में दलित मतदाता विदर्भ और मराठवाडा में निर्णायक होता है। जहां अब यह बात फैलने लगी है कि अगर बीजेपी सत्ता में आई, तो वह बाबासाहेब आंबेडकर के संविधान को बदल देगी। हालांकि, पीएम मोदी बार-बार दोहरा रहे हैं कि संविधान को कोई ताकत नहीं बदल सकती, लेकिन दलितों में बाबासाहेब का दर्जा भगवान से कम नहीं है, इसलिए चाहे नवबौद्ध हों या दलित, संविधान से छेड़छाड़ की बात तक मुद्दा बनाने के लिए काफी है।इंडिया की जगह भारत करने जैसे भाषण भी दलित समाज में शक पैदा कर चुके हैं। उसकी असली चिंता आरक्षण है। इस बार विपक्ष ने भी इसे मुख्य मुद्दा बना रखा है। बाबासाहेब आंबेडकर के पोते और वंचित बहुजन आघाडी के नेता प्रकाश आंबेडकर अपनी हर सभा में बीजेपी से संविधान को खतरा होने की बात पुरजोर तरीके से उठा रहे हैं। विपक्ष कह रहा है कि अगर बीजेपी और मोदी सत्ता में लौटे, तो अगली बार चुनाव ही नहीं होगा।मराठा क्या लेंगे फैसला?दूसरी तरफ, मराठा समाज भी आरक्षण की मांग को लेकर लगातार आंदोलन करता रहा है। मनोज जरांगे पाटील ने साफ तौर पर किसी का समर्थन करने से मना कर दिया, लेकिन वह बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस को जिस तरह कोसते घूम रहे हैं। उससे मराठा समाज में बीजेपी के खिलाफ संदेश जा रहा है। जालना में जिस तरह से मराठा आंदोलनकारियों पर पुलिस ने लाठियां चलाईं।उसके विडियो मराठा समाज के वॉट्सऐप ग्रुप पर अब भी घूम रहे हैं। राज्य में मराठा समाज करीब 30 फीसदी तक माना जाता है। अगर ये नाराज हुए, तो बीजेपी के कई दिग्गज नेता मुश्किल में आ सकते हैं। मराठवाडा में मुस्लिम समाज भी पूरी तरह बीजेपी के खिलाफ नजर आ रहा है। इनकी संख्या कहीं 7 फीसदी, तो कहीं 13 फीसदी तक है।विदर्भ और मराठवाडा तक फैला कुनबी समाज पहले से बीजेपी के विरोध में खड़ा दिखाई दे रहा है। ऐसे में, राज्य में अब यदि कोई बड़ा मुद्दा नहीं आया, तो बीजेपी के लिए मुश्किल बढ़ सकती है। हालांकि, जानकार मान रहे हैं कि पहले दौर की पांच सीटों में बीजेपी का पलड़ा ही कुछ भारी है। तीन पर बीजेपी+सहयोगी और दो पर कांग्रेस जीत सकती है, वहीं दूसरे दौर की आठ सीट में भी पांच पर बीजेपी और सहयोगी आगे हैं। तीन पर कांग्रेस और सहयोगी जीत सकते हैं। दूसरे शब्दों में हर दौर में कम से कम 40 फीसदी तक सीट का घाटा सत्ता पक्ष को हो सकता है।

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