
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की तरफ से सरकारी अस्पतालों मेडिकल कॉलेज में जो इलाज के संबंध व्यवस्थाओं का वादा किया जाता है और बताया जाता है क्या वास्तव में धरातल पर, जमीनी स्तर पर सुविधा मरीजों को मिलती हैं? यह अपने आप में उत्तर प्रदेश सरकार की मेडिकल सुविधा के ऊपर एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह है?
क्योंकि क्योंकि 20 अप्रैल दिन शनिवार को एक ऐसा ही मामला देखने को मिला जहां पर ईएनटी डिपार्टमेंट नाक कान गला रोग विशेषज्ञ के पास एक साढे तीन साल के बच्चे के इलाज के लिए ले जाया गया लेकिन डॉक्टरों ने उसका इलाज करने से( कान की सफाई) इसलिए मना कर दिया क्योंकि वह बच्चा रो रहा था, डॉक्टर ने कहा इसको घर ले जाकर ड्रॉप डालकर सफाई कर लेना हम नहीं कर पाएंगे
मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ डॉक्टरों को नहीं पता कि कि बच्चे हैं उसे महज 3 साल का बच्चा क्या रोयेगा नहीं? उनके घर में क्या बच्चे नहीं है इंसानियत इतनी ज्यादा मर चुकी है इन लोगों के अंदर बिल्कुल दया धर्म नहीं है
कोई कहां से कितनी दूर से घंटों लाइन में खड़ा होकर इलाज करवाने के लिए इंतजार करता है और जब इलाज का नंबर आता है तो डॉक्टर हाथ खड़ा कर लेता है कि बच्चा तो शांत नहीं हो रहा है
इलाज नहीं कर पाएंगे धरती पर डॉक्टर को भगवान का रूप कहा गया है लेकिन हमें लगता है यहां के डॉक्टर ने सचमुच में अपने आप को भगवान ही मान लिया है कि वह तो कुछ करेंगे ही नहीं छूने से ही ठीक कर देंगे बच्चा है वह तो रोयेगा ही, क्या उसका इलाज नहीं होगा?
और वही एक तरफ जब कोई स्टाफ से संबंधित बच्चा आ जाता है तो बच्चा चाहे 6 महीने का ही क्यों ना हो समस्त स्टाफ उसकी देखरेख में लग जाता है चाहे बच्चा कितना भी रो रहा हो लेकिन उसका इलाज हो जाता है लेकिन बाहर से आए जिनका कोई जान पहचान वाला नहीं है जिनकी कोई पहुंच नहीं है उनका इलाज के लिए बहुत पापड़ बनाने पड़ते हैं यही है योगी सरकार?
बच्चों की मां ने अपना और अपने बच्चों का नाम लिखने से मना किया है नहीं तो मैं उसका नाम और फोटो भी डालता