
रखी में किसानों ने 24 हजार एकड़ में
जिले में लगातार अंडरग्राउंड वॉटर लेवल का ग्राफ गिर रहा है। जिले के 40 से 50 गांव डार्क जोन में है। इसके बाद भी अंधाधुंध तरीके से जल दोहन किया जा रहा है। जिले के भूजल सर्वेक्षण के आंकड़ों की बात करें तो जिले में 88.70 फीसदी के हिसाब से भूजल दोहन किया जा रहा है। इसके चलते 69-70 सेमी प्रतिवर्ष वॉटर लेवल का ग्राफ गिर रहा है। जिले के कई इलाको में तेजी से अंडरग्राउंड वॉटर लेवल में गिरावट दर्ज की गई है। जिले में जो तालाब हैं उनको प्रशासन अभी तक अतिक्रमण से मुक्त नहीं करा पाया है। 90 प्रतिशत सरकारी और निजी भवनों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगे ही नहीं है, जिनमें लगे है वह बदहाल पड़े हैं। इसके चलते जिले में जल संचयन को पलीता लग रहा है।
डार्क जोन फरवरी में ही भू-जल स्तर 300 से 350 फीट तक नीचे गर्मी आते ही पेयजल संकट व निस्तारी की समस्या कोई नई बात नहीं है। सबको पता है गर्मी मे नदी-तालाबो व भू-जल का स्तर नीचे चला जाता है, फरवरी माह में ही भू-जल स्तर 300 से 350 फीट तक नीचे चला गया है। मार्च-अप्रैल में गर्मी बढ़ने के साथ ही समस्या विकराल होती जाएगी। वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के प्रति लोगों की उदासीनता व ग्रीष्मकालीन फसल पर अत्याधिक पानी का दोहन इस समस्या का प्रमुख कारण है।
गर्मी में इन गांवों में
स्थिति होती है खराब
अधिक खराब स्थिति धाराशीव, बगबुड़ा, बम्हनपुर, सीतावर, परसापाली, भालूकोना, ढाबाडीह, खेंदा, अमलडीहा, पैदा, खैरा, कोतरगढ़, कुम्हारी, अहिल्दा, चंगोरी, पैसर, अमलीडीह, बाजार भाठा, करदा, कोरिया, तिल्दा, लाटा, पैजनी, जुरा, लाहोद, बनवनी, मुण्डा, लवनबन, चौराभाठा, जामडीह, कोहरौद, बुधवा, कोनी, बंजर, बगबुड़वा, परसवानी, धौराभाठा, पेंड्री, बोरतरा, बुचीपार, रोहरा, मनोहरा, हरिनभट्ठा, टिमनी, चकरवाय, डेकुना, खर्वे, कोवाताल, संकरा, मानाकोनी, मिरगिदा आदि ग्रामों में पेयजल संकट खड़ा हो चुका है।
बड़े किसान जागरूक होंगे तो पानी नहीं होगा बर्बाद: एक एकड़ रबी फसल (धान) में करीब 24 लाख लीटर पानी की खपत होती है। बड़े किसान पानी की व्यर्थता को रोकते हैं तो वॉटर लेवल को डाउन होने से बहुत हद तक बचाया जा सकता
बिजली विभाग के कार्यपालन अभियंता वीके राठिया ने बताया कि कृषि के लिए 20 हजार पंप कनेक्शन हैं, जिसमें 3 एचपी के पंप के लिए 6000 यूनिट तक बिजली मुफ्त व वहीं 5 एचपी पंप वाले किसानों को 7500 यूनिट फ्री दी जाती है जो एक सीजन में फसल लेने के लिए पर्याप्त है। किसान औसतन 13 करोड़ यूनिट बिजली की खपत करते हैं। अगर पांच रुपए यूनिट के हिसाब से भी गणना की जाए तो 65 करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं। कृषि उपसंचालक दीपक
खेतों के बोर 24 घंटे अनवरत पानी फेंकते हैं
जिले के किसान इस वर्ष 9 हजार 600 हेक्टेयर यानि करीब 24 हजार एकड़ जमीन पर ग्रीष्मकालीन धान की फसल ले रहे हैं, जिसके लिए करोडों लीटर पानी की खपत हो रही है। सबसे अधिक पानी की बर्बादी खेतों को सिंचित करने के नाम पर बोर से हो रही है। जिले में करीब 22 हजार बोर उपयोग किए जाते हैं। जिसमें सिंचाई पंप लगाए जाते हैं,
जिनमें एक बार पंप का बटन ऑन करने के बाद वह तभी बंद होता है जब बिजली गुल होती है वरना ये पंप 24 घंटे अनवरत पानी फेंकते रहते हैं। कभी- -कभी किसान भी बटन चालू करके भूल जाते है जिससे करोड़ों लीटर पानी यही व्यर्थ ही बह जाता है। मौजूदा समय में जलस्तर कुछ क्षेत्रों में 300 से 350 फीट के नीचे तक जा पहुंचा है।
गर्मी में प्रति व्यक्ति औसतन 130 लीटर पानी की खपत
बलौदाबाजार। बरसात में लबालब भरे तलाबों का स्तर फरवरी में ही कम हो गया है।
52 करोड़ रुपए की धान में होगी 62 करोड़ की बिजली खर्च
नायक के अनुसार इस बार लगभग 24000 एकड़ में ग्रीष्मकालीन फसल ली जा रही है। प्रति एकड़ 14 क्विंटल औसत धान उत्पादन के हिसाब जिले में कुल 3 लाख 36 हजार क्विंटल ग्रीष्मकालीन धान का उत्पादन होगा। अब अगर कृषि विभाग से मिली इस जानकारी के अनुसार ही देखा जाए तो धान का औसत मूल्य प्रति क्विंटल 2183 रुपए है ऐसे में कुल उत्पादित फसल 52 करोड़ रुपए की होगी जबकि इतने उत्पादन में सिर्फ बिजली के ही 65 करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं
गर्मी के दिनों में औसतन प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 120-130 लीटर पानी खर्च करता है। इस लिहाज से अगर देखें तो रबी की फसल के लिए इस्तेमाल होने वाले पानी की खपत को रोकने से बलौदाबाजार जिले के लगभग 13 लाख जनसंख्या को बड़ी आसानी से पानी मुहैया कराया जा सकता है। कृषि वैज्ञानिक डॉ. प्रदीप
कृषि विज्ञान केन्द्र भाटापारा में कार्यरत विशेषज्ञ डॉ. प्रदीप कश्यप के अनुसार एक एकड़ जमीन में धान की खेती के लिए
कश्यप के मुताबिक किसान अगर इस पानी का उपयोग सब्जी या अन्य फायदेमंद फसलों के उत्पादन के लिए करें तो बेहतर होगा। जिले में धान का पर्याप्त उत्पादन खरीद फसल से ही हो जाता है। रबी की फसल में धान का उत्पादन कितना जरूरी है इस पर विचार कर शासन को भी कुछ नीति बनानी चाहिए।
एक एकड़ फसल के लिए 24 लाख लीटर पानी
करीब 60 सेंटीमीटर पानी की जरूरत होती है इतना पानी करीब 24 लाख लीटर होता है और उपज 14-15 क्विंटल होती है।