
वह कथा किस काम की जिसमें ईश्वर निंदा होय
मित्रों कभी कभी हृदय जब व्यथित हो उठता है तो न चाहते हुए भी लेखन प्रबल हो उठता है।
अभी हाल ही में ओंकारेश्वर में कथा करते समय एक कथावाचक (पं प्रदीप मिश्रा)ने राधा रानी के विवाह से सम्बंधित कुछ अमर्यादित टिप्पणियां की हैं।जिसके लिए वृंदावन के संत पूजनीय प्रेमानंद जी महाराज को भी विरोध दर्ज कराना पड़ा है।
मेरा व्यक्तिगत यह मानना है कि हम चाहे कितने भी बड़े कथावाचक क्यों ना हों हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि जब हम व्यास पीठ पर बैठे हों तो हमें ऐसी कोई टिप्पणी नहीं करनी चाहिए जो ईश्वर निंदा की श्रेणी में आए या जिससे जन भावनाएं आहत हों । हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि जिन ईश्वर की कृपा से हम उनकी कथा कह कर , सुना कर अपना पेट पाल रहे हैं या अपनी आजीविका कमा रहे
हैं हमें उनके बारे में कभी भी ऐसी टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है जिनसे ईश्वर का अपमान हो या जन भावनाएं आहत हों। पता नहीं क्यों पैसा कमाने के लोभ में यह भूल जाते हैं कि जो ईश्वर हमें यह सब करने की शक्ति प्रदान करता है वह यह नहीं कहता कि हम उसी परम शक्ति की निंदा करें। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वह दे सकता है तो छीन भी सकता है । यह सानो शौकत जाने में समय नहीं
लगेगा ।पता भी नहीं चलेगा एक झटके में सब कुछ छिन जाएगा या बर्बाद हो जाएगा। हमें कोई भी टिप्पणी करने से पूर्व हमारे शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान होना एवं अध्ययन होना आवश्यक है। अगर हम इन बातों का ध्यान नहीं रखेंगे तो हमारी जिव्हा इसी तरह फिसलती रहेगी एवं हमारे मुख से हमारे ही पालनहार के लिए अमर्यादित शब्दों का उच्चारण होता रहेगा। हद तो तब होती है जब हम गलती करने के
बावजूद कुछ अल्प ज्ञानियों द्वारा लिखित पुस्तकों का हवाला देकर कहते हैं कि ऐसा फलानी पुस्तक में लिखा है । अरे जब आपके समक्ष भागवत गीता जैसी पुस्तक उपलब्ध है तो अन्य पुस्तकों को पढ़कर आपको बेतुके उदाहरण प्रस्तुत करने की कहां आवश्यकता है । यदि आप फिर भी ऐसा करते हैं तो यही माना जाएगा कि आप अत्यधिक धनार्जन की अभिलाषा में या तो पथ से भटक गए या किसी से पैसा
लेकर आपने ऐसा कर दिया। ग़लत कह कर खेद प्रकट करना आसान है पर आपने जो ईश्वर की निंदा का पाप किया है या जन भावनाओं को आहत करने का पाप किया है उसके लिए ईश्वर आपको कभी माफ नहीं करेंगे। अतः संक्षिप्त रुप में यही कहना चाहूंगा कि हमें कुछ भी बोलने से पूर्व यह मनन कर लेना उचित होगा कि इससे समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा और मानवता के लिए यह सब कहां क उचित रहेगा।
कवि, पत्रकार अशोक राय वत्स