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जैन समाज के आयोजनों में धन की नहीं संयम नियम संकल्प की बोलियां लगें: कवि डी के जैन मित्तल

 

 

रिपोर्टर मनमोहन गुप्ता कामां

कामां डीग जिले के कामां से जैन धर्म जो जिनशासन का धर्म है, जिसके मूल सिद्धांत अहिंसा, सत्य, अचौर्य, शील व अपरिग्रह हैं। आज के युग में जैन धर्म में बहुत बड़े-बड़े आयोजन भव्य तरीके से होने लगे हैं, भव्य तरीके से होने में कोई बुराई नहीं है लेकिन भव्यता के साथ-साथ शालीनता और पैसे का अनावश्यक दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। कवि मित्तल ने कहा कि आजकल आप देखेंगे जैन समाज का कोई भी कार्यक्रम हो यथा चातुर्मास स्थापना, चातुर्मास निस्ठापन, सिद्ध चक्र विधान, दश लक्षण महापर्व, महावीर जन्म कल्याण महोत्सव आदि में अब जैन समाज के आयोजक केवल और केवल पैसे को महत्व देने लगे हैं, जिसमें एक चाहे दीपक जलाना हो, चाहे चित्र अनावरण हो, चाहे पाद प्रक्षालन हो, चाहे झंडारोहण हो, चाहे कलश स्थापना हो या कुछ भी मांगलिक कार्य हो, हर कार्य में आयोजन धन को महत्व देकर धन की बोली लगाने लगे हैं, जिसे हमारे आचार्य परमेष्ठी साधु परमेष्ठी भी गलत मानते हैं, लेकिन कुछ साधु स्पष्ट रूप से कह देते हैं और कुछ साधु आयोजकों पर छोड़ देते हैं आप अपनी व्यवस्था देखिए। लेकिन कुल मिलाकर जैन परंपरा के हिसाब से धन की बोली लगाना मेरी नजर में भी गलत है। जैन समाज में अगर धन की बोलियां लगती हैं तो केवल धन कुबेर ही उन बोलियां को ले पाते हैं क्योंकि बहुत ही विशाल स्तर पर बोलियां लगती हैं। अब जैन समाज के कुछ लोग इस बात का कुतर्क देते हैं कि बोलियां व्यवस्था है बोलियों के बिना सब कहेंगे कि हम करेंगे हम करेंगे तो कैसे होगा, तो उसके लिए हमारे जैन दर्शन में हमारे मुनियों ने संयम नियम की व्यवस्था की हुई है और संयम नियम की बोलियां मुनि महाराज लगवा भी चुके हैं।
वाह वाह फेम कवि डी के जैन मित्तल ने बताया कि अभी हाल ही में चांदनी चौक दिल्ली जैन लाल मंदिर में चातुर्मास के लिए अर्हम योग प्रणेता पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी का आना हुआ, उन्होंने स्पष्ट रूप से कह दिया बोलियां यहां धन से नहीं संयम नियम से लगेंगी। जहां दिल्ली चांदनी चौक में एक से एक बड़े धन कुबेर बैठे हुए हैं पैसे की कोई कमी नहीं है करोड़ों अरबो रुपए 1 घंटे में इकट्ठा हो जाता है, वहां पर मुनिराज ने स्पष्ट निर्देश देकर बोलियां नियम संयम से लगवाई जिसमें ज्यादा नियम संयम लेने वाले को बोलियां प्रदान की गई। यही हमारे जैन समाज का असल रूप है। मुझे याद है आचार्य भगवन विद्यासागर जी महाराज के परम शिष्य मुनि स्वभावसागर महाराज का चातुर्मास 1999 में कामां में हुआ था, जिसमें चातुर्मास निस्ठापन एवं पीछी परिवर्तन कार्यक्रम में मुनि स्वभावसागर महाराज ने धन को महत्व न देकर संयम नियम को महत्व दिया और ज्यादा दिनों तक ब्रह्मचर्य नियम पालन करने वालों को पुरानी पीछी प्रदान की गई और नई पीछी भी उनसे ग्रहण की गई थी।
आज के दौर में जो मुनि प्रणम्य सागर महाराज ने एक नई शुरुआत की है वह समस्त सकल जैन समाज के लिए बहुत ही अच्छा संदेश है। आज उनके इन आचरण का पालन करना भारत के हर एक जैन समाज के लिए बहुत ही अच्छा रहेगा और जैन समाज की ओर से पूरे भारत में अच्छा संदेश जाएगा।
क्योंकि आज कहीं भी देख लो जैन समाज में कहीं लाखों की बोली लग रही हैं कहीं करोड़ की बोली लग रही हैं, लेकिन नियम संयम की कोई बात नहीं कर रहा है। कुछ लोग कहते हैं कि बिना पैसे के कैसे काम होगा, मैं उनको बता देना चाहता हूं जैन समाज का काम कभी भी नहीं रुकता। बोलियां नियम से होनी चाहिए, पैसा किसी से मांग कर नहीं पैसा स्वेच्छा से गुल्लकों में दान किया जाता है। आज दिल्ली में धन की बोली लगती तो करोड़ों रुपए इकट्ठा होता अब नियम से बोली लगी है तो क्या वहां पैसा नहीं आएगा?
मेरा समस्त सकल जैन समाज भारत से निवेदन है वह इस बात पर अपने-अपने समाजों में विचार करें और इस धन की परिपाटी को छोड़कर नियम संयम के हिसाब से आगामी कार्यक्रमों में बोलियां लगवाएं।

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