
जलियांवाला बाग, आज भी मौजूद है अत्याचार के निशान -शिवानी जैन एडवोकेट
ऑल ह्यूमंस सेव एंड फॉरेंसिक फाऑल ह्यूमंस सेव एंड फॉरेंसिक फाउंडेशन डिस्टिक वूमेन चीफ शिवानी जैन एडवोकेट ने कहा कि प्रतिवर्ष 13 अप्रैल को जलियांवाला बाग स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 1919 के 13 अप्रैल को बैसाखी के दिन एक शांतिपूर्ण बैठक में शामिल लोगों पर अंग्रेज जनरल डायर ने गोली चलाने का आदेश दिया था, जिसमें हजारों निहत्थे पुरुष, महिलाएं और बच्चे मारे गये।
थिंक मानवाधिकार संगठन एडवाइजरी बोर्ड मेंबर डॉ कंचन जैन ने कहा कि भारत में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के दौरान स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी गतिविधियों को रोकने लिए कई कठोर कानून लाये गये थे। इसी क्रम में अंग्रेजों द्वारा अराजक व क्रांतिकारी अपराध अधिनियम, 1919 (रॉलेट एक्ट) को 10 मार्च, 1919 को पारित किया गया था। इस एक्ट को काला कानून के नाम से भी जाना जाता है. इस कानून के बनने के बाद अंग्रेजी सरकार को बिना मुकदमा चलाये किसी को भी कैद करने का अधिकार मिल गया था।
मां सरस्वती शिक्षा समिति के प्रबंधक एवं प्राचीन मानवाधिकार काउंसिल सदस्य डॉ एच सी विपिन कुमार जैन, संरक्षक डॉ आरके शर्मा, निदेशक डॉक्टर नरेंद्र चौधरी, एडवोकेट आलोक मित्तल, एडवोकेट ज्ञानेंद्र चौधरी, एडवोकेट बृजेश शुक्ला, शार्क फाउंडेशन की तहसील प्रभारी डॉ एच सी अंजू लता जैन, एडवोकेट बीना, आदि ने कहा कि रॉलेट एक्ट के विरोध में 13 अप्रैल को जलियांवाला बाग में एक विरोध सभा का आयोजन हुआ।इस शांतिपूर्ण सभा में हजारों पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की भीड़ जमा हुई। इसी दौरान ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड डायर ने अपने सिपाहियों के साथ सभा स्थल पर पहुंच कर पूरे जलियांवाला बाग को घेर लिया।जनरल डायर ने बिना किसी चेतावनी के वहां से बाहर जाने के एकमात्र मार्ग को बंद कर अपने सिपाहियों को प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने के लिए कहा। इस अंधाधुंध गोलीबारी में सैकड़ों निर्दोष नागरिक मारे गये।
शिवानी जैन एडवोकेट
डिस्ट्रिक्ट वूमेन चीफ