
मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष दोनों की राजनीतिक समझदारी लगी दाव पर
वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य का अंतिम परिणाम मध्यावधि चुनाव होना तय
कांग्रेस प्रदेश से लेकर दिल्ली तक संकट की गंभीरता नहीं समझ पायी
शिमला इस समय प्रदेश राजनीतिक अस्थिरता की दहलीज तक पहुंच चुका है। कांग्रेस के छः विधायक निष्कासित हो चुके हैं और इन स्थानों पर उपचुनाव की भी घोषणा हो चुकी है। कांग्रेस के बाद अब भाजपा के नौ विधायकों के खिलाफ अवमानना की कारवाई शुरू हो चुकी है। संभव है कि उनके खिलाफ भी अध्यक्ष अवमानना की याचिका को स्वीकार करके इनको भी निष्कासित कर दें। स्थितियां इस हद तक पहुंच चुकी है कि ऐसे में जो सवाल अहम हो रहे हैं उन में पहला और बड़ा सवाल यह है कि इस खेल का अन्तिम परिणाम क्या होगा। क्या प्रदेश अन्ततः मध्यावधि चुनावों की ओर बढ़ेगा? क्या हालत राष्ट्रपति शासन तक पहुंच जाएंगे? प्रदेश में इस तरह की राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण पहली बार बन रहा है जो प्रदेश के लिये किसी भी तरक से सही नहीं है। क्योंकि इस परिदृश्य में कांग्रेस के बागियांे को भाजपा में शामिल करवाना अनिवार्यता बन जायेगा और इसका परिणाम होगा छः सीटों पर उपचुनाव। यदि यह बागी भाजपा में शामिल न हो और सर्वाेच्च न्यायालय से इनका निष्कासन रद्द हो जाये जिसकी संभावना बहुत प्रबल है तो उस स्थिति में यह कांग्रेस के ही सदस्य रहते हैं और इससे भाजपा को कोई लाभ नहीं मिलता। क्योंकि तब कांग्रेस सरकार बचाने के लिए नेता को बदलने तक की बात कर सकती है। इसलिये बागियों को भाजपा में शामिल करवाना और उपचुनाव में जाना भाजपा की आवश्यकता बन गया है। इस स्थिति का अंतिम परिणाम राष्ट्रपति शासन और फिर मध्यावधि चुनाव होना तय है। इस परिदृश्य में यह सवाल आम आदमी की ओर से महत्वपूर्ण हो जाता है की प्रदेश को इस स्थिति तक पहुंचाने के लिये कौन जिम्मेदार है। प्रदेश में सरकार कांग्रेस की है इसलिए उसकी भूमिका का पहले आकलन करना आवश्यक हो जाता है। प्रदेश की आर्थिक स्थिति और बढ़ते हुये कर्जभार पर कांग्रेस बतौर विपक्ष पूर्व सरकार के खिलाफ मुद्दा उठाती रही है। परन्तु सत्ता में आने के लिए दस गारंटियां चुनाव में जारी कर बैठी। इससे सरकार तो बन गयी लेकिन गारंटियां गले की फॉस बन गयी। जब प्रदेश की आर्थिक स्थिति गारंटियां पूरी कर पाने में असमर्थ साबित हो रही थी तो उसी वक्त सलाहकारों और मुख्य संसदीय सचिवों की फौज खड़ी करके प्रदेश पर अवांछित बोझ क्यों डाला? यही नहीं मंत्रिमंडल में क्षेत्रीय असंतुलन खड़ा कर लिया गया। जो नौकरशाही प्रदेश को कर्ज़ के चक्रव्यूह में डालने के लिये जिम्मेदार है उसी को सरकार बनने पर सिर पर बिठा लिया। इसी के कारण खुद कर्ज के सहारे चलने पर विवश हो गये और हर सेवा तथा वस्तु के दाम बढ़ाने पड़ गये। इसके परिणाम स्वरुप युवाओं को रोजगार नहीं दे पाये। जब असंतुलन कार्यकर्ताओं की अनदेखी और युवाओं के रोजगार के मुद्दे उठने लगे तो इसकी शिकायतें कांग्रेस हाईकमान तक पहुंची। खुले पत्र तक लिखे गये परन्तु मुख्यमंत्री से लेकर हाईकमान तक ने इसका कोई संज्ञान नहीं लिया। इस तरह यह मुद्दे उठाने वालों को उस मुकाम तक पहुंचा दिया गया कि वह प्रदेश की जनता के हित और पार्टी की वफादारी दोनों में से किसी एक चुनने के लिए बाध्य हो गये। राज्यसभा का उम्मीदवार तय करने के लिये प्रदेश नेतृत्व को विश्वास में नही लिया गया परिणाम स्वरुप आवाज़ उठाने वालों ने राज्यसभा में पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार को हराकर फिर हाईकमान को चेता दिया। राज्यसभा चुनाव में जो घटा उसके बाद भी कांग्रेस नेतृत्व ने स्थिति को संभालने की बजाये अपने अहम के चलते और बिगाड़ दिया। क्योंकि राज्यसभा चुनाव में हुई क्रॉस वोटिंग के बाद कटौती प्रस्ताव और वित्त विद्येयक के पारण के दौरान सदन के पटल पर सरकार गिरने की संभावनाओं को टालने के लिये बागियों के खिलाफ रात को ही निष्कासन के नोटिस जारी कर दिये गये। यहां सरकार में कोई भी यह नहीं समझ पाया कि सरकार गिरने का परिणाम मध्यावधि चुनाव होगा और सदन का किसी भी पक्ष का विधायक चुनाव नहीं चाहेगा। इस स्थिति को नेता प्रतिपक्ष ने समझकर 28 फरवरी को अपने विधायकों से सदन में हंगामा करके अपने 15 विधायकों के निष्कासन की स्थिति खड़ी कर दी और अध्यक्ष ने उनका निष्कासन कर दिया। इस निष्कासन के बाद बजट के ध्वनिमत से पारित होने की स्थिति बन गई और बजट पारित भी हो गया। ऐसे में जब बजट पारित हो गया तो उसके बाद बागियों के खिलाफ आयी याचिका पर तुरन्त प्रभाव से कारवाई करना कोई राजनीतिक समझदारी नहीं था। क्योंकि यह याचिका लंबे समय तक अध्यक्ष के पास लंबित रह सकती थी। क्योंकि बजट पारित होते ही सदन में स्त्रावसान हो गया था और सरकार को तीन माह का समय संकट हल करने के लिये मिल जाता। लेकिन यहां पर सरकार और उसके सारे सलाहकार स्थिति का आकलन करने में असफल रहे और आज प्रदेश को इस मुकाम तक पहुंचा दिया गया। इस वस्तुस्थिति में यह देखना दिलचस्प होगा कि इसका लोकसभा चुनाव में क्या प्रभाव पड़ता है क्योंकि वर्तमान परिदृश्य में विपक्ष निश्चित रूप से सरकार पर भारी पड़ा है।