
आखिर बिहार के क्रिकेटरों के साथ कब तक अन्याय होता रहेगा?राज्य विभाजन के बाद 18 वर्षों तक लगातार बिहार भारतीय क्रिकेट की मुख्यधारा से दूर रहा।बीसीसीआई के संविधान के अनुसार जब कोई नए राज्य का गठन होता है तो उस राज्य को मान्यता लेने के लिए सभी मापदंड पूरे करने होते हैं।लेकिन झारखंड को बिना किसी मापदंड को पूरा किए बिहार क्रिकेट संघ के मान्यता को रद्द करके झारखंड राज्य क्रिकेट संघ को मान्यता प्रदान कर दिया गया बीसीसीआई के द्वारा। जो कि बिहार के क्रिकेट और क्रिकेटरों के साथ नाइंसाफी थी। 2018 में बिहार क्रिकेट संघ को पूर्ण मान्यता मिलने के बाद भी बिहार क्रिकेट टीम के सिर्फ दो खिलाड़ियों का चयन आईपीएल में हुआ है। बिहार क्रिकेट टीम के क्रिकेटरों का न तो दलीप ,देवधर,ईरानी ट्रॉफी में चयन किया जाता है न ही भारतीय ए और न भारतीय अंडर 19 टीम में चयन हो पाता है।बिहार सीनियर क्रिकेट टीम व आयु वर्ग क्रिकेट टीम के कई ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने बीसीसीआई के विभिन्न क्रिकेट प्रतियोगिताओं में निरंतर बेहतर प्रदर्शन किया है लेकिन उन्हें उच्च स्तर पर मौका नहीं दिया जाता है।आखिर रणजी ट्रॉफी में सबसे ज्यादा एक सत्र में 68 विकेट लेने वाले बिहार के स्पिन गेंदबाज आशुतोष अमण को किसी भी आईपीएल टीम के नेट गेंदबाज के तौर पर भी मौका नहीं मिला। वहीं 2021-22 सत्र में अपने प्रथम श्रेणी क्रिकेट के पदार्पण मैंच में शानदार तिहरा शतक जड़कर विश्व रिकॉर्ड बनाने वाले बिहार के सकीबुल गणी का भी दलीप ट्रॉफी जैसे टूर्नामेंट में चयन न होना हास्यास्पद था।बिहार में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है।बिहार में और भी बहुत ऐसे क्रिकेटर हैं जिनके प्रदर्शन को ज्यादा महत्व नहीं मिलता है। इस सत्र में मुश्ताक अली टी20 क्रिकेट टूर्नामेंट में बिहार की ओर से पाँच अर्धशतकीय पारी खेलने वाले बिपिन सौरभ को आईपीएल में कोई खरीददार नहीं मिला। बिहार क्रिकेट टीम से खेलकर किए गए प्रदर्शन को ज्यादा महत्व नहीं मिलने के कारण अभी भी बिहार से क्रिकेटरों का पलायन जारी है।इस विषय पर कहीं न कहीं बीसीसीआई को ध्यान देना होगा ।आखिर बिहार के क्रिकेटरों के प्रदर्शन को महत्व क्यों नहीं मिलता है?