
शान से कहो हम सेवक हैं -, उपेंद्र रितुरगं
जौनपुर। शाहगंज संसार बहुत ही सुन्दर है और मैं उसका एक अभिन्न अंग मात्र हूं कर्म की प्राथमिकता ही हमें सनातन धर्म संस्कृति के व्यवहारिक विरासत का ज्ञान कराती है।आज स्वामी बनने में सारी सृष्टि के लगभग प्रत्येक व्यक्ति का सम्मान बना हुआ है या यूं कहें कि कोई नहीं चाह रहा कि मैं किसी के नीचे काम या कार्य करूं।रही बात जीवन यापन की तो मालिक ना बन पाने के कारण या यह कहें कि संसारिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ही बामुश्किल कार्य करने में लगे हुए हैं।
यह भी अटल सत्य है कि किसी व्यवस्था को चलाने के लिए हमें कइ स्तर के चयन करने पड़ते हैं जहां पर कई तरह की आवश्यकता रहती उसी प्रकार के पद भी निर्धारित रहते हैं आज।
परन्तु वह भी समय था जब लोग कार्य की प्राथमिकता को अहम स्थान प्रदान करते थे स्वयं को छुपाकर एक मुखिया के अधीन सैकड़ों हजारों की संख्या रहती थी।काम करके श्रेय मुखिया को देते थे।यह कहने में भी परहेज़ नहीं रखते की हमारे सब कुछ कर्ता धर्ता फलने है। वरिष्ठों का सम्मान हमारा कर्तव्य बनता है और पहले भी था मैं यह कहने में संकोच नहीं करता कि फाला का सेवक हूं।
सबकी अपनी-अपनी बात है सोच है समाज का सरोकार रखने की क्षमता है। किसी के प्रति टिप्पणी करना हमारी आदत नहीं अगर किसी को चोट लगे तो क्षमा प्रार्थी हूं परन्तु सच्चाई यही है कि कोई किसी की परवाह नहीं करना चाहता है। वास्तविकता से सभी भागना चाहते हैं। परन्तु जो शान किसी के मार्गदर्शन में है किसी के आदेश में है किसी के हस्तक्षेप में है किसी के उत्तर दायित्व में है,वह स्वयं पर निर्भर होने में नहीं है क्योंकि हम अपने मन वाली कर सकने में सक्षम हो सकतें परन्तु सही है या ग़लत यह नहीं जान सकते।यह हमार अपना मत है जो हमें ज्ञान, परिचित कराती है निम्न व्याख्यान उपेंद्र रितुरगं के द्वारा दिया गया जो कि उन्होंने ने बाल संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहीं।