
रिपोर्टर : दिलीप कुमरावत MobNo9179977597
मनावर। जिला धार।। नगर में राधा अष्टमी का पर्व महिलाओं द्वारा भक्तिभाव से मनाया गया। राधाकृष्ण मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना श्रृंगार किया गया।
बताया जाता है कि सनातन धर्म में भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि श्री राधाष्टमी के नाम से प्रसिद्ध है। शास्त्रों में इस तिथि को श्री राधाजी का प्राकट्य दिवस माना गया है। श्री राधाजी वृषभानु की यज्ञ भूमि से प्रकट हुई थीं। वेद तथा पुराणादि में जिनका ‘कृष्ण वल्लभा’ कहकर गुणगान किया गया है। वे श्री वृन्दावनेश्वरी राधा सदा श्री कृष्ण को आनन्द प्रदान करने वाली साध्वी कृष्ण प्रिया थीं। श्री राधाजी का प्राकट्य श्री वृषभानुपुरी (बरसाना) या उनके ननिहाल रावल ग्राम में प्रातःकाल का मानते हैं। कल्पभेद से यह मान्य है, पर पुराणों में मध्याह्न समय का वर्णन ही प्राप्त होता है।
राधाष्टमी महोत्सव इस्कॉन वृन्दावन में
शास्त्रों में श्री राधा कृष्ण की शाश्वत शक्तिस्वरूपा एवम प्राणों की अधिष्ठात्री देवी के रूप में वर्णित हैं अतः राधा जी की पूजा के बिना श्रीकृष्ण जी की पूजा अधूरी मानी गयी है। श्रीमद देवी भागवत में श्री नारायण ने नारद जी के प्रति ‘श्री राधायै स्वाहा’ षडाक्षर मंत्र की अति प्राचीन परंपरा तथा विलक्षण महिमा के वर्णन प्रसंग में श्री राधा पूजा की अनिवार्यता का निरूपण करते हुए कहा है कि श्री राधा की पूजा न की जाए तो मनुष्य श्री कृष्ण की पूजा का अधिकार नहीं रखता। अतः समस्त वैष्णवों को चाहिए कि वे भगवती श्री राधा की अर्चना अवश्य करें। श्री राधा भगवान श्री कृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी हैं। इसलिए भगवान इनके अधीन रहते हैं। यह संपूर्ण कामनाओं का राधन (साधन) करती हैं, इसी कारण इन्हें श्री राधा कहा गया है।
बरसाना में इस दिन विशेष पूजा : बरसाना में इस दिन विशेष पूजा अर्चना होती है। इस साल राधा रानी का जन्मोत्सव यानी राधा अष्टमी 31 अगस्त को है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी की तरह ही धूमधाम से राधा अष्टमी का पावन पर्व मनाया जाता है। राधा रानी की उपासना करने से भगवान श्री कृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है। ऐसा कहा जाता है कि राधारानी के बिना भगवान श्री कृष्ण की पूजा अधूरी रहती है
पूजा विधि : राधा रानी की पूजा के लिए एक मंडप के नीचे मंडल बनाकर उसके मध्यभाग में मिट्टी या तांबे का कलश स्थापित किया जाता है। कलश पर तांबे का पात्र रखते है। इस पात्र पर वस्त्राभूषण से सुसज्जित राधाजी की मूर्ति को स्थापित की जाती है। तत्पश्चात राधाजी का षोडशोपचार से पूजन किया जाता हैं। बताया जाता हैं कि पूजा का समय ठीक मध्याह्न का होना चाहिए। पूजन पश्चात पूरा उपवास अथवा एक समय भोजन करने का विधान है। दूसरे दिन श्रद्धानुसार सुहागिन स्त्रियों तथा ब्राह्मणों को भोजन कराकर व उन्हें दक्षिणा दी जाती है।
पूजन सामग्री लिस्ट : राधाकृष्ण की प्रतिमा या चित्र, राधारानी की पोशाक, पंचामृत, फूल, तुलसी दल, धूप, दीपक, घी/तेल, सिंदूर, हल्दी, कुमकुम, अक्षत (चावल), फल, खीर, मिठाई, पान, सुपारी, लौंग, इलायची।
राधा अष्टमी का व्रत करने से सभी पापों का नाश होता है। इस दिन विवाहित महिलाएं संतान सुख और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जो लोग राधा अष्टमी का व्रत करते हैं उनसे भगवान श्रीकृष्ण अपने आप प्रसन्न हो जाते हैं।
मंत्र- ॐ ह्रीं राधिकायै नमः
भोग : राधा रानी को सात्विक व्यंजन, दूध से बनी मिठाइयां और मौसमी फल बेहद प्रिय हैं। इस पावन दिन राधा रानी को माखन मिश्री, खीर, मालपुआ, पंचामृत का भोग लगाया जाता है। और अगले दिन महिलाओं द्वारा व्रत का पारणा किया जाता हैं।
राधा रानी पूजन मंत्र : ॐ वृषभानुज्यै विधमहे, कृष्णप्रियायै धीमहि, तन्नो राधा प्रचोदयात। ॐ ह्रीं श्रीराधिकायै विद्महे गान्धर्विकायै विधीमहि तन्नो राधा प्रचोदयात्।।
राधा अष्टमी की रात दीपक से किए जाने वाले उपाय से रिश्तों में प्यार के साथ धन में अपार वृद्धि होती है।