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समस्या: रील के नशे में नौनिहाल, नाश हो रहा मासूम बचपन

मानसिक रूप से हुए मोबाइल के गुलाम..

श्रीगंगानगर. तकनीक और सोशल मीडिया का युग दिन-ब-दिन मनुष्य को घेरता ही जा रहा है। आधुनिक समाज के बच्चे, युवा और बुजुर्ग कोई भी इस गिरफ्त से अछूता नहीं है। यहां तक कि दूरदराज के गांव और सुदूरवर्ती इलाकों में भी सोशल मीडिया और मोबाइल का चलन जोरों पर है। विशेष रूप से आजकल रील बनाने और देखने का दौर चल रहा है। मनोरंजन के लिए शूरू हुई ये तकनीकि सुविधा अब जी का जंजाल बन चुकी है। हर उम्र के लोग इन रील को घंटों तक बिना किसी से बात किए एक जगह पर बैठे देखते रहते है। यह लत बच्चों के लिए खासी खतरनाक साबित हो रही है। इसके चलते बच्चे पढ़ाई से दूर होते जा रहे है। साथ ही उनका व्यवहार भी बदल रहा है। शहरभर में कई माता-पिता अपने बच्चों को लेकर मनोरोग चिकित्सकों के पास पहुंच रहे है। हालांकि छोटे बच्चों की काउंसलिंग करना बेहद मुश्किल होता है। फिर भी डॉक्टर का परामर्श हर तरह से महत्वपूर्ण है।

—बच्चों में मिलेंगे ये लक्षण

1.सोशल मीडिया पर मोबाइल या टीवी आदि अन्य माध्यम से जुड़ना।

2.अकेले रहना अधिक पसंद करना।

3.बाहर जाने का कहने पर आनाकानी।

4. काल्पनिक बातें करना।

5.कमजोर नजर और वजन में बढ़ोतरी। नजर कमजोर हो जाती है। 6.खाने-पीने में लापरवाही व नींद की कमी।

 

—-Medical शहर में यूं हैं बच्चों के हालात…

शहर की एक बच्ची कोविड काल में मोबाइल से अध्ययन के दौरान रील भी देखने लगी। आज उसकी स्थिति यह है कि वह स्कूल शुरू होने के बाद भी तीन से चार घंटे तक रील देखती है। इसी तरह ब्लॉक एरिया निवासी एक ढाई साल का बच्चा मोबाइल पर रील देखे बिना खाना तक नहीं खाता है। नाश्ता करते समय भी माता-पिता को उसे मोबाइल देना पड़ता है। ऐसे एक-दो नहीं बल्कि कई बच्चे हैं जिन्हें मोबाइल पर रील देखने की लत लग चुकी है।

 

“यदि बच्चा सोशल मीडिया का आदी हो गया है तो अचानक उसे डांटकर या उसमें कमी लाने का प्रयास नहीं करना चाहिए। यह लत छुड़वाने के लिए धीरे-धीरे प्रयास करने चाहिए। मोबाइल में टाइम लिमिट डाली जा सकती है। जिससे तय समय बाद मोबाइल बंद हो जाए, लेकिन इसका पता बच्चे को नहीं लगना चाहिए। मोबाइल पर रील से कमाई करने के अच्छे व बुरे परिणाम के बारे में जानना जरुरी है।बच्चों के सामने खुद भी मोबाइल का उपयोग सीमित करना चाहिए। माता-पिता को बच्चों पर मॉनिटरिंग भी रखनी चाहिए।”

डॉ.प्रेम अग्रवाल, मनोरोग विशेषज्ञ, राजकीय जिला चिकित्सालय,श्रीगंगानगर।

 

“मौजूदा समय में रील बनाने वाले लोग खुद को कंटेंट क्रिएटर और इन्फ्लुएंसर्स कहलाना पसंद करते हैं। शॉर्ट वीडियो प्लेटफॉर्म भी उन्हें इसी रूप में प्रमोट करते हैं। रील्स देखने से बच्चों का ‘अटेंशन स्पैन’ तेजी से कम होता है। जिसकी वजह से वे भुलक्कड़ हो जाते हैं और उनकी सीखने की रफ्तार भी धीमी हो जाती है। फिलहाल विद्यार्थियों के लिए साइकलिंग और आउटडोर खेलों पर ज्यादा ध्यान देना बेहतर रहेगा।”

-भूपेश शर्मा, जिला समन्वयक, विद्यार्थी परामर्श केंद्र, श्रीगंगानगर

AKHAND BHARAT NEWS

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