
अहिंसा से ही मिल सकती है शांति- डॉ एच सी विपिन कुमार जैन “विख्यात”
आज के युग में केवल अहिंसा से ही आत्मिक शांति मिल सकती है। अपरिग्रह व समता के भाव अहिंसा के लिए आवश्यक है।
परिवार, समाज या देश द्वारा अहिंसा अपनाई जाएगी तो वे भी सुखी बन जाएंगे।
भगवान महावीर ने दूसरे के दुःख दूर करने की धर्मवृत्ति को अहिंसा धर्म कहा है।
सदाचार, आचरण की शुद्धता और विचारों की स्वच्छता ,चारित्रिक आदर्श से मनोवृत्तियों का विकास इन सभी नैतिक सूत्रों की आधार भूमि है अहिंसा। यही धर्म का सच्चा स्वरूप भी है।
सच्ची अहिंसा वह है जहाँ मानव व मानव के बीच भेदभाव न हो, हृदय और हृदय, शब्द और शब्द, भावना और भावना के बीच समन्वय हो।
यह कैसी विडंबना है कि कुछ अहिंसा का दावा करने वाले कीड़े-मकोड़े को बचाने का प्रयत्न करते हैं किंतु भूखे, नंगे, दरिद्र मानव को छटपटाते हुए देखकर भी मन में करुणा नहीं लाते।
हम अहिंसक होने का ढोंग कर रहे हैं, अहिंसक जीवन जी नहीं पा रहे हैं।
भगवान महावीर अपने कर्म-संस्कारों के सिवाय किसी दूसरे को दु:ख देने वाला नहीं मानते थे।
महावीर अहिंसा के महान साधक एवं प्रयोक्ता थे! महावीर की अहिंसा जीवों को न मारने तक सीमित नहीं थी। उसकी सीमा सत्य-शोध के महाद्वार का स्पर्श कर रही थी। इसीलिए भगवान महावीर की मूल शिक्षा है- ‘अहिंसा’।
आवश्यकता इस बात की है, हम बदलें, हमारा स्वभाव बदले और हम हर क्षण महावीर बनने की तैयारी में जुटें तभी महावीर जयंती मनाना सार्थक होगा।