हवा में घुला प्रदूषण का जहर…कमजोर हो रही सांस की डोर

सिद्धार्थनगर। फसल की कटाई और मड़ाई के साथ डंठल, धूल-गुबार से हवा की सेहत बिगड़ रही है। धूल और धुआं से हवा में जहर घुल रहा है। जिले की एक्यूआई 158 तक पहुंच गई जो खतरनाक मानी जाती है। इससे सांस के रोगियों को समस्या हो ही रही है। इसके साथ नए लोग भी बीमारी की चपेट में आ रहे हैं।
सांस और सीने में जकड़न और दर्द की शिकायत वाले मरीजों की संख्या माधव प्रसाद त्रिपाठी मेडिकल कॉलेज के साथ ही निजी अस्पतालों में बढ़ गई है। चिकित्सक बुजुर्गों और बच्चों पर विशेष ध्यान देने की सलाह दे रहे हैं। क्योंकि इनके फेफड़े में संक्रमण तेजी से फैलने का खतरा अधिक रहता है। फसल की मड़ाई समाप्त होने तक प्रदूषण की स्थिति इस प्रकार रहने के आसार हैं।
अप्रैल लगने के बाद से हवा का रुख तेज हो जाता है। जमीन से नमी खत्म होने के बाद धूल के कण हवा के साथ उड़ने लगते हैं। गेहूं की फसल की कटाई और मड़ाई शुरू हो गई है। मड़ाई के दौरान धूल और गुबार तेजी से उड़ रहा है। साथ ही जगह-जगह गेहूं की फसल में आग लगने से धुआं उठा रहा है। वहीं, जगह-जगह निर्माण हो रहे निर्माण कार्य स्थल पर भी धूल उड़ रहे हैं। इससे हवा की सेहत खराब हो गई जो इंसान के सेहत पर भी असर डाल रहा है। पर्यावरण प्रदूषित होने से हर व्यक्ति को नुकसान पहुंच रहा है। लेकिन वृद्ध, बच्चे और बीमारी सांस के रोगियों पर इसका घातक असर पड़ता है। ऐसा चिकित्सक का कहना है। हमेशा आसमान में धुंध के तरह दिखने वाले धूल और धुएं के परत से सांस लेने में तकलीफ हो रही है। हवा की गुणवत्ता की बात करें तो 158 दर्ज की गई हैै जो खतरनाक स्तर माना जाता है।
चिकित्सकों का मानना है कि लगातार इस वातावरण में रहने से व्यक्ति रोगी हो जाएगा। माधव प्रसाद त्रिपाठी मेडिकल कॉलेज मेंं पिछले कई दिनों से सांस से संबंधित रोगियों की संख्या बढ़ गई है। सांस लेने में तकलीफ के साथ ही सीने और गले में जकड़न की शिकायत वाले 10-15 रोगी पहुंच रहे हैं। बार-बार घुटन जैसी स्थिति उत्पन्न हो जा रही है। डॉ. सीबी चौधरी ने बताया कि मास्क लगाने और धूल-गुबार वाले स्थान पर जाने से बचने की सलाह दी जा रही है। साथ ही नियमित दवा लेने के लिए कहा जा रहा है।
वायु प्रदूषण व्यक्ति को बुरी तरह से बीमार करने की ताकत रखता है। इसका सबसे बुरा असर फेफड़ों पर पड़ता है। इसके अलावा आंखें, स्किन और दूसरे शरीर के दूसरे अंग भी वायु प्रदूषण के प्रभाव से जूझते हैं। फेफड़ों पर वायु प्रदूषण की समस्या बड़ी बन सकती है। बचपन से प्रदूषण में रहें बच्चे हों या कभी कभी प्रदूषित हवा में आने वाले बच्चे, सभी में सांस से जुड़ी परेशानियां होती है। इसमें अस्थमा, निमोनिया, लंग इरिटेशन और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, सीओपीडी होने का खतरा रहता है। प्रेग्नेंसी के दौरान वायु प्रदूषण महिलाओं और उनके बच्चों के लिए घातक हो सकता है। इससे बच्चे की डिलीवरी समय से पहले होने की संभावना रहती है। बच्चा कमजोर हो सकता है और बचपन से ही अस्थमा का शिकार भी। उम्रदराज लोगों में अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और सीओपीडी का कारण बन सकता है। बढ़ती उम्र के साथ इम्युनिटी कमजोर पड़ जाती है और शरीर भी उतने अच्छे से काम नहीं कर पाती, ऐसे में प्रदूषित हवा में सांस लेना बड़ी परेशानी बन सकता है। मौजूदा समय में हवा खराब होने के कारण सांस की बीमारी के रोगी आ रहे हैं। ऐसे रोगी धूल भरी सड़क, निर्माण स्थल जहां धूल उड़ रहा हो, फसल की कटाई और मड़ाई में न जाएं। अगर निकलते हैं तो मास्क लगाकर निकलें। क्योंकि धूल एक परत बन चुकी है जो धुंध के तरह से दिख रही है। इस बचाव बेहद जरूरी है।
मौजूदा समय में फसल की कटाई और मड़ाई चल रही है। उससे उडऩे वाली धूल का परत बना हुआ है। इसके साथ ही जगह-जगह फसल जल रहीं है, जिससे काला धुआं उठा रहा है। सड़क पर धूल का गुबार उठ रहा है साथ ही निर्माण कार्य स्थल पर धूल उड़ने के कारण हवा की गुणवत्ता खराब हुई है। जानकारों के मुताबिक एक बार बारिश होने के बाद ही यह समस्या दूर होगी।