
पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य समाज को सच्ची और निष्पक्ष जानकारी प्रदान करना है, जिससे जनता को सही निर्णय लेने में मदद मिल सके। लेकिन वर्तमान समय में, फर्जी न्यूज़ चैनलों और पत्रकारों की बाढ़ ने पत्रकारिता के इस महत्व को कमजोर कर दिया है।
फर्जी न्यूज़ चैनल और पत्रकार, सस्ती लोकप्रियता और आर्थिक लाभ के लिए खबरों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करते हैं। वे सनसनीखेज और भ्रामक खबरें फैलाते हैं, जिससे समाज में भ्रम और असमंजस की स्थिति उत्पन्न होती है। सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव ने इस समस्या को और भी विकराल बना दिया है। यहाँ पर बिना किसी सत्यापन के खबरें तेजी से फैलती हैं, और कई बार इन्हें मुख्यधारा के मीडिया द्वारा भी उठा लिया जाता है।
फर्जी खबरों का एक बड़ा कारण टीआरपी की दौड़ भी है। न्यूज़ चैनल्स और पत्रकार टीआरपी बढ़ाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं। इसके लिए वे खबरों को मसालेदार बनाकर प्रस्तुत करते हैं, जिससे उनकी दर्शक संख्या बढ़ सके। लेकिन इस प्रक्रिया में वे पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं और समाज में गलत सूचनाओं का प्रसार करते हैं।
यह समस्या केवल भारत में ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी देखी जा रही है। कई प्रतिष्ठित मीडिया हाउस भी इस दौड़ में शामिल हो गए हैं, जिससे पत्रकारिता का स्तर गिरता जा रहा है। इससे जनता का मीडिया पर से भरोसा उठने लगा है।
इस समस्या का समाधान तभी संभव है जब मीडिया हाउस और पत्रकार अपने नैतिक जिम्मेदारियों को समझें और सच्चाई पर आधारित खबरें प्रस्तुत करें। साथ ही, मीडिया के लिए एक सख्त नियामक तंत्र की भी आवश्यकता है, जो फर्जी खबरों के प्रसार पर रोक लगा सके। इसके अलावा, जनता को भी जागरूक होना होगा और खबरों की सत्यता की जांच खुद करनी होगी।
समाज में सच्चाई और निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए पत्रकारिता के मूल्यों की पुनः स्थापना अत्यंत आवश्यक है। फर्जी खबरों के इस दौर में सच्ची और जिम्मेदार पत्रकारिता ही समाज को सही दिशा दिखा सकती है।