रामगढ़: रामगढ़ प्रखंड के भातुडिया गाँव कि महिलाओं ने अपने पति की लम्बी आयु की कामना के लिए सुहागिन महिलाएं आज ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या के रोहिणी नक्षत्र युक्त धृति योग मे वट सावित्री का व्रत की आज के दिन बरगद के वृक्ष की पूजा कर सुहागन महिलाएं देवी सावित्री के त्याग, पती प्रेम एवं पतिव्रत धर्म का स्मरण करती है। यह व्रत सुहागन स्त्रियों के लिए सौभाग्य वर्धक पापहारक, दुख नाशक एवं धन -धान्य प्रदान करने वाला होता है। इसमें ब्रह्मा विष्णु एवं महेश के साथ स्वयं सावित्री माता भी विराजमान रहती है।
पुरोहित ने कहा कि ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को वट सावित्री का व्रत पुण्य फल देने वाला संयोग बना है। इस दिन रोहिणी नक्षत्र एवं धृति योग भी विद्दमान है। सावित्री व्रत पर गृहों की स्थिति भी शुभकारी है सनातन धर्म मे बरगद के पेड़ की पूजा करने की परंपरा सदियों पुरानी है। यह वृक्ष जितना धार्मिक महत्व रखता है उतना ही महत्व वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी है। धार्मिक मान्यताओं के आनुसार बरगद के पेड़ मे ब्रह्मा विष्णु और महेश का वास होता है वहीं वैज्ञानिक रूप से बरगद के पेड़ की जड़ तना व फल तीनो मे ही औषधीय गुण पाए जाते है। बरगद के पेड़ का सिर्फ धार्मिक ही नही बल्कि आयुवैद् मे भी बहुत महत्व बताया गया है।
इससे कई प्रकार की औषधीयां प्राप्त की जा सकती है। महिलाएं पूजा की थाल लेकर बरगद के पेड़ के नीचे पूजा अर्चना करते हुए जल, अक्षत, कुमकुम फल से पूजा अर्चना की। इसके बाद लाल मौली धागे से वृक्ष के चारों और घूमते हुए सात बार परिक्रमा लगाते हुए महिलाओं दृारा सावित्री की कथा सुनी। धार्मिक ग्रैंथों के अनुसार पीपल की तरह वटवृक्ष मे भी माँ लक्ष्मी का वास माना जाता है।
कथा अनुसार जब यमराज सत्यवान के प्राण ले जाने लगे तो सावित्री भी उनके पीछे- पीछे चलने लगी थी उसकी पति के प्रति निष्ठा को देखकर यमराज ने आज ही के दिन वरदान मांगने को कहा। जिस पर सावित्री ने एक वरदान में सौ पुत्रों की माता बनना मांगा और जब उन्हें वरदान दिया तो सावित्री ने कहा कि वह पतिव्रता स्त्री है और बिना पति के माँ नही बन सकती इसका एहसास यमराज को हुआ और उन्हें लगा कि मेरे दृारा दिए गए वरदान से मैं स्वयं गलती कर बैठा हूँ और उन्होंने सत्यवान के प्राण को फिर से उनके शरीर में वापस कर दिया।