
लालगंज रायबरेली -आधुनिक डिजिटलाइजेशन के युग में जहां आजकल के शादी विवाह कार्यक्रमों में चकाचौंध ,भारी लाइटिंग टेंट तथा वैवाहिक प्रतिस्पर्धा में आगे निकलने की होड़ व और भी कई तरह के आधुनिक यंत्रो का जयमाल इत्यादि में बढ़ चढ़ कर उपयोग इन सभी दिखावें से क्या एक विकसित समाज की कल्पना की जा सकती है !प्राचीन वैवाहिक रीति रिवाजों का क्षणिक मात्र भी उपयोग इन कार्यक्रमों में हो रहा है! पुरातन भारतीय वैवाहिक संस्कारों में जहां कई दिनों तक चलने वाले कार्यक्रमों अनुष्ठानो , मंत्रोच्चारण इत्यादि से एक सफल गृहस्थ जीवन के प्रवेश द्वार को खोला जाता था वहीं रिश्तों को मजबूत प्रगढ बनाने हेतु बहन बेटियों के परिजनों को सम्मानित करते हुए अग्रणी भूमिका में रखा जाता था वो अब सब लुप्तप्राय नजर आने लगे हैं। आजकल की शादियां अत्यंत महंगी व समयाभाव के कारण मात्र शोपीस बनकर रह गई है जिनका परिणाम वैवाहिक सम्बन्ध विच्छेद, आपसी कलह, मनमुटाव, भावनात्मक लगाव न होना व अंत में तलाक जैसी विसंगत स्थितियां देखने को मिल रही है ।