
महाराजा मर्दनसिंह जू देव के राज्यारोहण की स्मृति में 216 वाॅ आयोजन दो माह तक चलेगा यह मेला
गढ़ाकोटा- ध्वजारोहण से शुरू हो गया देश में बुंदेलखंड का प्रसिद्ध मेला बसंत पंचमी से होली तक लगने वाला यह मेला बसंत पंचमी के दिन ध्वजारोहण कर शुभारंभ किया गया ध्वजारोहण नगर पालिका में सफाई कर्मचारी द्वारा किया गया ऐसे मानता है कि इस नगर के राजा मर्दन सिंह जू देव मैं अपने राज्य में समरसता कायम करने हेतु एवं इस मेले को भरवाने का रहस्य बना रहे इससे यह ध्वजारोहण सफाई कर्मचारियों से करवाया था इस मेले में कई देशों के लोग इकट्ठे होते थे एवं अंग्रेजों से लड़ने के लिए एक रणनीति तैयार करते थे राजा पशु व्यापारी बनकर इस मेले में आते थे एवं बैठकर रणनीति बनाते थे जो एक रहस्य बनी रहती थी इस कारण से इस मेले का नाम रहस्य मेला पड़ गया जिसका आज शुभारंभ हो गया यहां पर सबसे पुराने बसने वाले आदिवासी थे। उनके समय यह एक गढ़ था । 17वीं शताब्दी में यह एक राजपूत सरदार चंद्र शाह के कब्जे में आया जिसने किला बनवाया था। मूलतः इसे कोट कहा जाता था किन्तु किले के निर्माण के बाद इसका नाम बदलकर गढ़ाकोटा हो गया। सन 1703 में, छत्रसाल के एक पुत्र हिरदे शाह का इस स्थान से गहरा लगाव रहा है।उसने यहां एक नगर का निर्माण किया । इसे अब हिरदेनगर कहते है जो सोनार नदी के किनारे हैं। उसकी मृत्यु के उपरान्त ,इस प्रदेश के अधिकार के संबंध में एक विवाद उठा खड़ा हुआ। उनके एक पुत्र पृथ्वीराज ने पेशवा की सहायता से इस प्रदेश को हथिया लिया।
सन 1785 में महाराज मर्दनसिंह गद्दी के उत्तराधिकारी बने । महाराज मर्दन सिंह एक चतुर शासन शासक थे,उन्होंने गढ़ाकोटा एवं इसके आस-पास सुन्दर किंले बनवाये । इस किले के अवशेष आजभी मौजूद है। इसी किले के समीप उन्होने एक सुन्दर बावड़ी का निर्माण कराया जो आज वन क्षेत्र में रमना विश्राम गृह के समीप मौजूद एवं सुरक्षित है। महाराजा मर्दन जी सिंह ने वर्ष 1809 से फरवरी माह में वसंत पंचमी से यहा एक बहुत बड़ा और महत्तपूर्ण पशु मेले का शुभारंभ करवाया,यह मेला वसंत पंचमी से प्रारंभ होकर होली तक चलता हैं। इस बार इस मेले का 216 वां आयोजन किया जा रहा हैं। रहली निर्वाचन क्षेत्र के माननीय विधायक एवं प्रदेश के केविनेट मंत्री पं. गोपाल भार्गव के अथक प्रयासों से यह मेला आज विराट रूप ले चुका है। यहाॅ आयोजित होने वाले किसान मेले मे दिन में किसान मेला व कृषक संगोष्ठी के माध्यम से तकनीकी जानकारी प्राप्त करते है तथा दोपहर से छात्र छात्राओं द्धारा सामूहिक नृत्यों ’एकल नृत्यों की प्रस्तुति एवं रा़त्रिकालील सांस्कृतिक कार्यक्रम में बुंदेली राई नृत्य 101 नृत्य नृत्यकियो द्धारा किया जाता है। इस परम्परागत बुंदेली राई नृत्य में सभी नागरिक बंधु बडे. उत्साह के साथ रात भर नृत्य एवं गायन का आनंद उठाते है। जो अपने आप में बुदलेखण्ड. की एक अलग पहचान बनाए हैं