
शीर्षक – आदत या मानसिक रोग
लेखिका – डॉ कंचन जैन
जिस व्यक्ति को झूठ बोलने की आदत लग जाए। या दूसरे शब्दों में कहें कि वह व्यक्ति किसी भी कीमत पर खुद को गलत साबित नहीं होने देना चाहता। ऐसा व्यक्ति थोड़े समय में ही एक मनोरोगी बन जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि वह व्यक्ति किसी गलती को या किसी बात को छुपाने के लिए एक झूठ बोलेगा।फिर उसे छुपाने के लिए दूसरा झूठ सोचेगा और दूसरे को छुपाने के लिए तीसरा और तीसरे को छुपाने के लिए चौथा।इसी तरह एक श्रंखला बन जाएगी । ऐसे व्यक्ति को पूर्ण रूप से यह पता होता है कि वह झूठ बोल रहा है। और यह गलत है, क्योंकि उसे खुद को सही साबित करना होता है। इसी कारण वह अपने झूठ को छुपाने के लिए अपने मस्तिष्क में उस झूठी बात को सच्ची साबित करता है।और यह सोचता है कि वह इस बात को छुपा सकता है परंतु उसके मन का भय उसके मानसिक संतुलन को कहीं ना कहीं प्रभावित कर रहा होता है। और उसे अंदर ही अंदर यानी कि आंतरिक रुप से मानसिक रूप से यह ज्ञात होता है। कि वह गलत कर रहा है। यही कारण है की झूठ बोलने वालों में बातें करते वक्त नजरें चुराना, हाथ कांपना, हकलाना या बात को घुमाना जैसे लक्षण देखे जातें हैं