A2Z सभी खबर सभी जिले कीUncategorizedअन्य खबरेउत्तर प्रदेशदेश

महावीर जयंती के अवसर पर सुदिती में गूंजा नमोकार मंत्र*

मैनपुरी। शहर के प्रतिष्ठित विद्यालय सुदिती ग्लोबल एकेडमी, मैनपुरी में महावीर जयंती का उत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया गया।

रिपोर्ट मनोज कुमार शर्मा 

जिला मैनपुरी 

 

 

*महावीर जयंती के अवसर पर सुदिती में गूंजा नमोकार मंत्र*

 

मैनपुरी। शहर के प्रतिष्ठित विद्यालय सुदिती ग्लोबल एकेडमी, मैनपुरी में महावीर जयंती का उत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया गया।

इस अवसर पर नमोकार मंत्र के उच्चारण के साथ भगवान महावीर की शिक्षाओं पर प्रकाश डाला गया। विद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ. राम मोहन ने जैन तीर्थकर भगवान महावीर के सम्मान में दीप प्रज्ज्वलित किया और उनके जीवन एवं उपदेशों के बारे में छात्रों को विस्तार से बताया।

उन्होने आगे कहा कि भगवान महावीर का सिद्धांत अहिंसा का था। उन्होंने सभी प्राणियों के प्रति दया और करुणा का भाव रखने की शिक्षा दी। उनका विश्वास था कि हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। उन्होंने लोगों को सत्य बोलने और परोपकार करने की प्रेरणा दी।

विद्यालय की प्रशासनिक प्रधानाचार्य डा० कुसुम मोहन ने विद्यार्थियों से अपील की कि वे भगवान महावीर के आदर्शों को अपने जीवन में अमल में लाएं। उन्होंने कहा कि केवल शारीरिक शिक्षा ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक और नैतिक शिक्षा भी बहुत महत्वपूर्ण है।

विद्यार्थियों ने नमोकार मंत्र का उच्चारण किया और भगवान महावीर के जीवन से प्रेरित गीत गाए। कार्यक्रम में जैन धर्म और महावीर जी की शिक्षाओं पर भी चर्चा की गई।

भगवान महावीर के जीवन के बारे में बताते हुये उन्होने कहा कि, वह एक महान संत और दार्शनिक थे। उनके उपदेशों में अहिंसा, सत्य और अपरिग्रह पर विशेष जोर दिया गया है। उन्होंने मानव जाति को अत्याचार और हिंसा से मुक्त करने का संदेश दिया। महावीर जी के अनुसार हमें अपने जीवन में सादगी और संयम अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि केवल धन और भौतिक सुख ही जीवन का लक्ष्य नहीं होना चाहिए, बल्कि आत्मिक शांति और स्वयं के आंतरिक विकास को भी महत्व देना चाहिए।

विद्यालय के प्रबंध निदेशक डा० लव मोहन ने भगवान महावीर जी के जीवन के बारे में बताया कि उनका का जन्म लगभग 599 ईसा पूर्व कुंडग्राम (बिहार) में हुआ था। उनका असली नाम वर्धमान था। 30 वर्ष की आयु में उन्होंने घर-बार छोड़कर संन्यास ले लिया। बारह वर्ष की कठोर तपस्या के बाद उन्हें कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ और वे तीर्थंकर बन गए। उन्होंने लगभग 30 वर्ष तक लोगों को उपदेश दिया। उनकी शिक्षाएं ही जैन धर्म का आधार बनीं हैं।

AKHAND BHARAT NEWS

AKHAND BHARAT NEWS
Back to top button
error: Content is protected !!