मदरिया पहाड़ का मेला हर वर्ष/साल फरवरी महीने में लगता है अगर आप 2024 में मदरिया पहाड़ मेला नेपाल घूमना चाहते है तो फरवरी महीने में जा सकते है

बाबा बदीउद्दीन कुतबुल मदार बाबा मदार 600 वर्ष पूर्व कई देशो का भ्रमण करते हुए भाईचारे एंव मुहब्बत का पैगाम लेकर ईरान से आये थे

बगहा:बिहार :- से सोहराब हुसैन कि रिपोर्ट

मदरिया पहाड़ का मेला हर वर्ष/साल फरवरी महीने में लगता है अगर आप 2024 में मदरिया पहाड़ मेला नेपाल घूमना चाहते है तो फरवरी महीने में जा सकते है

भारत के पड़ोसी देश नेपाल में मदरिया पहाड़ मेला हर साल लगता है मदरिया पहाड़ मेला हिंदी मुस्लिम एकता एंव आस्था का एक विशाल केंद्र है

क्योकि हर साल फरवरी के महीने में मदरिया पहाड़ मेला लगता है और यह मेला लगभग तेरह दिन चलता है हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक है यह मेला

उत्तर प्रदेश/बिहार/अन्य राज्य से भी लोग मदरिया पहाड़ मेला घुमने जाते है यह मेला नेपाल बॉर्डर से बहुत नजदीकी है इसलिए गोरखपुर शहर मदरिया पहाड़ मेला जाने का प्रमुख केंद्र माना जाता है

हर साल सभी धर्मो के श्रद्धालु इस मदरिया पहाड़ मेला घुमने और बाबा हजरत बदीउद्दीन कुतबुल मदार पर जाकर अपने दिल की मुराद मांगते है

मदरिया पहाड़ का मेला गोरखपुर से सटे पड़ोसी देश नेपाल में स्थित है

इस मदरिया पहाड़ में बाबा बदीउद्दीन की मजार स्थित है

कहा जाता है बाबा बदीउद्दीन कुतबुल मदार बाबा मदार 600 वर्ष पूर्व कई देशो का भ्रमण करते हुए

भाईचारे एंव मुहब्बत का पैगाम लेकर ईरान से आये थे

जहा पर बाबा की मजार है कहा जाता है वह

पाल पाली वंश के राजाओं के आदेश पर तत्कालीन जमीदार माधव पंजियार ने

गुदरी गाँव के शेर बहादुर आमत्य के सहयोग से मदार गढ़ी में चिलाकसी (ध्यान धारणा) के लिए

जमीन मुहैया कराया गया था

बाबा गरीब गुरबा जो अपने बीमारी से परेशान होते थे

उन्हें मदार का दूध लगाने का सलाह देते थे

इस तरह से बीमार को मदार के दूध से फायदा मिल जाता था

मदार के दूध से बीमारों का इलाज करते थे

इसलिए ही आपका नाम मदार बाबा पड़ा

मदरिया पहाड़ का मेला जाने वाले श्रद्धालुयो के लिए

पडरौना/पनीयहवा से फरवरी महीने में बस चलना शुरू हो जाती है

साथ ही गोरखपुर से भी बस पकड़कर नेपाल बॉर्डर

या फिर मदरिया पहाड़ का मेला जा सकते है।

बताते चलें कि श्रृंखला-बद्ध पहाड़ों में सबसे ऊंची चोटी पर पीर मदार बाबा का मजार अवस्थित है। वहां तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को कठिन व जानलेवा रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है। रास्ते में सात पहाड़ों की चढ़ाई पूरी करनी होती है। नकधरवा, गुददर व चावलधोई पहाड़ के रास्ते बेहद दुष्कर माने जाते हैं। फिर भी मजार तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। ये रास्ते काफी संकीर्ण पगडंडी की तरह हैं और पहाड़ों की चोटी के किनारों से होकर गुजरना पड़ता है। मामूली सी गलती होने पर सैकड़ों फीट गहरी खाई में गिरने का खतरा रहता है। सबसे ऊंची चोटी पर बाबा का मजार है,

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