राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा संभवतः 2 मार्च को मध्यप्रदेश और 5 मार्च को शाजापुर
बसंत ऋतु के दौरान प्रकृति में केसरिया छटा बिखरने लगती है। इस ऋतु में आम लोगों का मन, जीवन, उत्सव यहां तक की खानपान में भी केसरिया रंग का प्रभाव देखा जाता है। विशेष रूप से केसरिया भात (चावल) का तो कहना ही क्या। बसंत ऋतु में दादी-नानी के समय में तो 3-4 बार अलग-अलग प्रकार के सूखे मेवों से बने केसरिया भात खाने को मिल ही जाया करते थे। इस ऋतु का जब आम लोगों पर इतना प्रभाव होता है तो नेता इससे कैसे अछूते रह सकते हैं भला। और वह भी ऐसे समय में जब पूरा प्रदेश ही केसरिया रंग में रंगा हो। सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार बसंत ऋतु में केसरिया रंग में रंगने को आतुर जिले सहित प्रदेश के कुछ नेताओं को उस समय जोर का झटका धीरे से लगा जब उनके 4+4 फार्मूले पर सहमति नहीं बन पाई। 4+4 फार्मूला मतलब प्रदेश की 4 लोकसभा सीट और मध्यप्रदेश शासन में 4 मंत्री पद। 4+4 प्रस्ताव ठुकराए जाने के बाद केसरिया रंग में रंगने को आतुर नेताओं के सुर अचानक बदल गए और उन्होंने यू टर्न लेते हुए फिर तिरंगे की ओर रुख कर लिया। अब वे मध्यप्रदेश में 2 मार्च को आने वाली राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा की तैयारियों में जुट गए है। अति राजनीतिक महत्वकांक्षाओं की पूर्ति को लेकर किए गए इस अभियान को ‘ऑपरेशन फोकट’ नाम देना ही ज्यादा उचित रहेगा। खाया-पिया कुछ नहीं, ग्लास फोड़ा सो अलग।
क्या अब तिरंगे के प्रति ऐसे नेताओं की निष्ठा और वफादारी पर प्रश्नचिन्ह नहीं लग गया है जो ‘ऑपरेशन फोकट’ को लेकर भागादौड़ी कर रहे थे ? भाग्यशाली रहे वो विधायक और नेता जिन्होंने इस अभियान का हिस्सा बनने के बजाए तिरंगे में अपनी निष्ठा कायम रखी, नहीं तो उनकी वफादारी भी शक के दायरे में आ जाती।
बहरहाल जो होना था सो हो गया अब यह देखना दिलचस्प होगा कि ‘ऑपरेशन फोकट’ की असफलता के बाद 2 मार्च को मध्यप्रदेश में भारत जोड़ो न्याय यात्रा लेकर प्रवेश कर रहे राहुल गांधी का ऐसे नेताओं के प्रति क्या रवैया रहता है। इन नेताओं के प्रति उनका रवैया ही लोकसभा चुनाव में पार्टी की स्थिति और उसके बाद प्रदेश में निष्ठावान कांग्रेसियों की भूमिका तय करेगा। देशभर के लोगों को न्याय दिलाने निकले राहुल गांधी प्रदेश में अपनी ही पार्टी के निष्ठावान और वफादार कार्यकर्ताओ के साथ न्याय कर पाएंगे..?