अतीत को याद करने की आवश्यकता नहीं है,उससे सीख कर हम अपने अपराधों से मुक्त हो सकते हैं। मुनिश्री विभंजन सागर जी जिला जेल धार में कैदियों को मंगल आशीर्वाद प्रवचन दिए 

अतीत को याद करने की आवश्यकता नहीं है,उससे सीख कर हम अपने अपराधों से मुक्त हो सकते हैं। मुनिश्री विभंजन सागर जी

 

 

जिला जेल धार में कैदियों को मंगल आशीर्वाद प्रवचन दिए

 

राहुल सेन मांडव

मो 9669141814

 

धार । दिगंबर जैन संत उपाध्याय 108 श्री विभंजन सागर जी मुनिराज ने रविवार को सुबह धार जिला जेल में कैदियों को अपने मंगल आशीर्वाद प्रवचन दिए। कार्यक्रम के प्रारंभ में सभी ने प्रार्थना की मंगलाचरण संघस्थ प्रगति दीदी द्वारा प्रस्तुत किया गया आचार्य श्री के चित्र पर द्वीप प्रज्वलन एव मुनिश्री के पाद प्रक्षालन जिला जेल अधीक्षक श्री आर.आर. दांगी,सहायक जेल अधीक्षक श्री कमल पलासिया, समाजसेवी वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेंद्र त्रिपाठी, समाज अध्यक्ष श्रेणिक गंगवाल ने किया।

संत श्री विभंजन सागर जी ने इस अवसर पर अपने मंगल आशीर्वाद प्रवचन में कैदियों को जीवन में सुधार लाने का महत्वपूर्ण संदेश दिया उन्होंने कहा कि गलती हर इंसान से होती है परंतु अपनी गलतियों को स्वीकार कर सुधारना ही मनुष्य का सच्चा धर्म है ।आपने कहा कि 90% अपराध नशे की लत के कारण होते हैं इसलिए नशें से दूर रहें। आपने कहा कि जब तक व्यक्ति अपने अपराध को अपराध नहीं समझेगा तब तक वह अपने आप पर सुधार नहीं कर सकता

। हो सकता यहां कोई कैदी अपने आप को निरपराधी मानता हो लेकिन यदि वह अपने आप को काम, क्रोध,लोभ, मोह से दूर रखकर अपना समय भगवान की भक्ति में लगाए और अपनी आत्मा को पहचानने की कोशिश करें तो वह इस जेल से छूटकर अपराधों से मुक्ति पा सकता है ।आपने कहा कि अपने अतीत को याद करने की आवश्यकता नहीं है लेकिन उसी अतीत से सीख कर हम अपने अपराधों से मुक्त हो सकते हैं। मुनिश्री ने कहा कि गलती करना गलती को दोहराना गलती से सीख लेना तथा गलती को सुधारना ही आप लोगों का मूल्य लक्ष्य होना चाहिए।उन्होंने कैदियों से अपनी रिहाई के बाद परिवार, समाज और देश के लिए अच्छे कार्य करने का आह्वान किया।

इस अवसर पर समाज की ओर से समाज अध्यक्ष द्वारा समाज की ओर से जिला जेल में खादी के वस्त्र निर्माण के लिए हथ करघा स्थापित करने की माँग की जिससे जेल में बंद कैदियों को रोजगार सुलभ हो सके। संचालन सचिव संजय छाबड़ा द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम में डॉ कमल जैन का विशेष सहयोग रहा।

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