रिपोर्ट-हरिओम जाटव
नरसिंहगढ़ – शासकीय स्कूलों में सीमित संख्या और प्रतिशत के आधार पे एडमिशन होता है जिसके कारण प्राइवेट स्कूल फलफूल रहे हैं । जिसका मुख्य शिक्षा का व्यवसायीकरण है l निजी स्कूलों के व्यापारिक रवैए के कारण अभिभावकों की जेब खाली हो रही है। बच्चों की शिक्षा के लिए अभिभावक महंगाई की मार से बेहाल हैं। नए सत्र में कॉपी किताबों के दाम 20 फीसदी तक बढ़ गए हैं। दुकानदार और स्कूल प्रबंधकों की कमीशनखोरी अभिभावकों पर भारी पड़ रही है। निजी स्कूल हर साल कोर्स में शामिल किताबें के प्रकाशन बदल देते हैं। ताकि अभिभावक पुरानी किताबों का उपयोग न कर सके और नया कोर्स खरीदने को मजबूर हो । शासन के आदेश है कि निजी स्कूलों में एनसीईआरटी की पुस्तकें पाठ्य क्रम में शामिल की जाएं, लेकिन यह नियम प्राइवेट स्कूल में लागू होते नहीं दिखाई दे रहा है। निजी स्कूल संचालक पूरी तरह से मनमानी पर उतारू हैं। नया सत्र प्रारंभ होते ही यूनिफार्म, जूता, मोजा के साथ ही किताबें और पाठ्यक्रम के नाम पर कमीशनखोरी का खेल चल रहा है। सुबह से शाम तक किताब विक्रेताओं के यहां अभिभावकों और बच्चों की भीड़ जुटी है। शिक्षा के नाम पर अभिभावकों की जेब खाली कराई जा रही है। नियम अनुसार निजी विद्यालय पाठ्यपुस्तक स्कूल से नहीं बेच सकते इसलिए स्कूल द्वारा चयन की गई दुकान पर ही कोर्स मिलता है और दुकानदार और विद्यालयों के बीच निश्चित होता है कि दुकानदार को पाठ्यपुस्तक पर कोई फायदा नहीं दिया जाएगा, दुकानदार सिर्फ कापियों और अन्य सामग्री पर ही कमाई करे । इस चक्कर में दुकानदार जो पहले ज्यादा डिस्काउंट देते थे अब वो भी कम कर दिया गया है ।
निजी विद्यालय और पाठ्य पुस्तक डीलर के बीच कमीशन तय होता हे और उसी आधार पे प्रकाशन द्वारा कीमत की पर्ची प्रिंट की जाती है। हकीकत यह है कि स्कूल संचालकों ने कॉपी किताबों के लिए दुकानों से सेटिंग कर रखी है ।निजी विद्यालयो द्वारा दुकानों से आने वाले कमीशन से मोटी और काली कमाई की जा रही है । सबसे बड़ी बात यह है कि इन निजी स्कूल संचालकों पर किसी भी तरह का कोई अंकुश नहीं है। शिक्षा और व्यवस्था के नाम पर अभिभावकों का शोषण किया जा रहा है। हर वर्ष स्कूल संचालक किताबें बदल रहे हैं। साथ ही इन किताबों के रेट भी खूब बढ़ा रहे हैं। निजी संचालकों की कमीशनखोरी का खेल सिर्फ किताबों तक ही सीमित नहीं है। ड्रेस, जूते, मोजे, टाई, बेल्ट पर भी कमीशन लिया जा रहा है। पहले ही संचालकों ने दुकान चयनित की हैं, वहीं उनके स्कूल की किताबें मिलेंगी। इसके अलावा अन्य बुक दुकानदारों पर किताबें नहीं मिल पाएंगी। यहीं से ड्रेस आदि भी खरीदने होंगे। इतना ही नहीं निजी स्कूलों में हर साल किताबें बदली जा रही हैं। जिससे कि बच्चे पुरानी किताबें लेकर पढ़ने न आए। इससे स्कूल संचालकों को कमीशन का नुकसान होगा। ड्रेस भी अधिकांश स्कूल की बदल ही जाती है। उसमें भी दो तरह की ड्रेस चल रही हैं।
प्राइवेट स्कूल संचालकों की मनमानी के चलते अभिभावक परेशान है। क्योंकि बच्चों की पढ़ाई की फीस व डोनेशन जमा करने में अभिभावकों का सारा बजट बिगड़ गया है। अभिभावक कर्ज व उधार लेकर अपने बच्चों का दाखिला करवाने पर मजबूर है। प्राइवेट स्कूलों द्वारा फीस के नाम पर किये जाने वाली मनमानी के खिलाफ शिक्षा विभाग की कुछ बोलने के बजाय मुंह बंद कर रखा है। प्राइवेट स्कूल संचालकों को कोई यह पूछने वाला नहीं कि आखिर किसके नाम पर इतनी भारी भरकम रकम एडमीशन के नाम वसूली जा रही है। यहां बता दें कि हर अभिभावकों से स्कूल प्रबंधकों के द्वारा किसी न किसी मद के नाम पर पैसा वसूला जाता है। ऐसा ही कुछ इस बार भी देखने को मिल रहा है। शहर के नामी गिरामी निजी व कॉन्वेंट स्कूलों में मनमानी तरीके से एडमीशन व फीस के साथ डोनेशन में नाम पर अभिभावकों से भारी भरकम पैसे वसूले जा रहे है। बड़े स्कूलों में एडमीशन फीस पंद्रह से बीस हजार रुपये से है । स्कूलों मे एनसीईआरटी की किताबों की जगह निजी प्रकाशकों की पुस्तकों को खरीदवा रहे हे जिसमें स्कूल प्रबंधन को अधिक कमीशन मिल रहा है। इस बार हर किताब पर पन्द्रह से बीस फीसदी दाम बढ़े है। जबकि किताबें वहीं पुरानी है। एनसीआरटी की किताबों से सात गुना अधिक दाम देकर प्राइवेट प्रकाशकों की किताबें खरीदने पड़ रही है। ऐसे हालत में नौकरी पेशा करने वाले अभिभावकों की हालत वैसे ही खराब है। अगर दो बच्चे है तो उन्हें पढ़ाना भारी पड़ रहा है। नौकरी पेशा के अलावा अन्य लोगों के बस में नहीं है कि अपने बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला करा सके। प्राइवेट स्कूल हर साल मनमानी तरीके से अभिभावकों से डोनेशन ,भवन, ड्रेस आदि के नाम पर भारी भरकम रकम चुकानी पड़ रही है। अभिभावकों में इससे आक्रोश है लेकिन खुलकर स्कूल प्रबंधन के खिलाफ बोल नहीं पा रहे है। उनकी दबी हुई भाषा बहुत कुछ कह रही है! प्रशासनिक अधिकारी एवं शिक्षा विभाग के अधिकारियों पर कई प्रश्न चिन्ह लगा रही है!
*पुस्तक मेला बना सिर्फ एक दिखावा -*
प्रशाशन द्वारा बच्चों को उचित दाम पर पाठ्य पुस्तक, ड्रेस, कापी ,जूते ,पेन आदि सामग्री मिले मगर कमीशन खोर निजी विद्यालयों ने प्रशाशन को खूब बंदर मदारी वाला खेल खिलाया। पुस्तक मेले में अगर पाठ्य पुस्तकों की बात करे तो केवल ncert की कुछ पुस्तक उपलब्ध थी। वैसे तो निजी स्कूलों द्वारा मार्च में ही अभिभावकों पर दबाओ बनाकर पाठ्यपुस्तक खरीदवा ली जाती है और पुस्तक मेला प्रशासन ने जून में लगाया । जिन अभिभावक ने मार्च में पाठ्य पुस्तक नहीं खरीदी थी वो पुस्तक मेले में खरीदने पहुंचे तो वहां निजी विद्यालयों का कोर्स ही नहीं रखा गया था किसी किसी दुकानदार द्वारा, सिर्फ कॉपी रखी हुई थी। जब पुस्तक मेले में बैठे शासकीय कर्मचारियों से इस बात की शिकायत की गई तो जवाब दिया गया कि दुकान पर कोर्स खत्म हो गया होगा। वहीं जब अभिभावक बाजार में दुकान पर कोर्स लेने गया तो निजी विद्यालयों के कोर्स की पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध थी और पूरी कीमत पे बेची भी जा रही थी । बेचारा अभिभावक अपने बच्चों की शिक्षा के लिए बंद मुंह किया दुकान से कोर्स खरीदने को मजबूर हैं।