पैरावेट के गलत इलाज से भैंस के पेट में पल रहे बच्चे की मौत 

अखंड भारत न्यूज़ कौंशाम्बी

पैरावेट के गलत इलाज से भैंस के पेट में पल रहे बच्चे की मौत 

कौशाम्बी के बेरौंचा गांव का मामला 

–पीड़िता को 30,000 देकर शिकायत दबाई,

–पैरावेट अपने को सरकारी डाक्टर बताकर गांवों में करता है इलाज।

–पशु चिकित्साधिकारी की मिली भगत से फल फूल रहा है यह गोरखधंधा 

संवाददाता:प्रभाकर मिश्र 

कौशाम्बी ब्लाक क्षेत्र के एक गांव में गंभीर मामला सामने आया है, जहाँ एक पैरावेट के इलाज के तुरंत बाद एक गर्भवती भैंस की पेट में पल रहे बच्चे की मौत हो गई।इस मामले की जब शिकायत हुई तो पैरावेट ने पशुपालक को 30,000 देकर शिकायत वापस करवा ली। आरोपी खुद को ब्लॉक का सरकारी डाक्टर बता रहा है। जब इस संबंध में राजकीय पशु चिकित्साधिकारी से वार्ता की गई तो उन्होंने बताया कि वह संविदा पर पैरावेट का काम करता है।

👉 मामले का पूरा घटनाक्रम:

एक गांव के निवासी पशुपालक की भैंस को तेज बुखार था। उसने इलाज के लिए एक स्थानीय डाक्टर को बुलाया जो अपने को पशु विभाग का सरकारी डॉक्टर बताता है। पीड़िता ने बताया कि तथाकथित डाक्टर को जानकारी पहले ही दे दी गई थी कि भैंस 9 महीने की गर्भवती है। पैरावेट ने बिना ठीक से जांच किए ही भैंस को लगातार 5 इंजेक्शन लगा दिया।कुछ ही घंटों में भैंस के गर्भस्थ बछड़े की मौत हो गई और भैंस की जान भी खतरे में पड़ गई।

पशुपालक ने तुरंत थाना कौशांबी में पैरावेट के खिलाफ लिखित शिकायत दी।जब जांच की प्रक्रिया शुरू हुई तो खुलासा हुआ कि आरोपी केवल ब्लॉक में पैरावेट है, उसके पास न तो कोई डिग्री है और न ही पंजीकरण। इसके बावजूद वह कई वर्षों से पशु चिकित्साधिकारी व अन्य स्टाफ की मिली भगत से गांवों में पशुओं का इलाज कर मोटी रकम वसूल रहा है।

👉 30,000 देकर शिकायत दबाई

थाने में शिकायत के बाद आरोपी पर दबाव बनने लगा और उसे डर था कि अगर जांच आगे बढ़ी तो उसकी फर्जी पहचान और गैर-कानूनी दवा इलाज का खुलासा हो जाएगा। इसी डर से उसने पशुपालक को ₹30,000 की राशि दी और मामले को रफा-दफा करवा लिया। पशुपालक के अनुसार, आरोपी ने कहा कि “अगर मेरी पोल खुल गई तो मैं किसी गांव में दवा नहीं कर पाऊंगा, इसलिए ये पैसे ले लो और मामला खत्म करो। और किसी बताना नहीं कि पैरावेट पैसा दिया।”

👉 गंभीर नियम उल्लंघन:

विशेषज्ञों के अनुसार, ब्लॉक स्तर पर कार्यरत पैरावेट की भूमिका सीमित होती है। वे केवल प्राथमिक उपचार, टीकाकरण, कृत्रिम गर्भाधान, और पशुओं की देखरेख जैसे काम ही कर सकते हैं — वह भी केवल प्रशिक्षित और पंजीकृत होने पर। लेकिन यह गोरखधंधा पशु चिकित्साधिकारी की सांठगांठ से फल-फूल रहा है।

भारतीय पशु चिकित्सा परिषद अधिनियम (Veterinary Council Act, 1984) के तहत बिना रजिस्ट्रेशन और डिग्री के दवा देना, इंजेक्शन लगाना या इलाज करना अवैध है। आरोपी ने इन सभी नियमों का उल्लंघन किया है।

👉 ग्रामीणों की मांग:

ग्रामीणों और पशुपालकों ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है कि बिना डिग्री और अनुमति के इलाज करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।

पशुपालन विभाग पूरे ब्लॉक में संविदा कर्मचारियों की जांच कराए, जो खुद को डॉक्टर बताकर अवैध रूप से काम कर रहे हैं।

आरोपी से ली गई राशि, ब्लैकमेलिंग और समझौते की भी जांच हो।

👉 प्रशासन से मांग:

पशुपालन विभाग और जिला प्रशासन इस मामले की स्वतंत्र जांच कराएं।

आरोपी पर Veterinary Council Act के तहत FIR दर्ज की जाए और संविदा सेवा समाप्त की जाए।

भविष्य में ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति रोकने के लिए सभी पैरावेट की प्रमाणिकता की जांच हो।

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