बहुड़ा एकादशी और सुनाबेषा पर्व पर श्रद्धा की अविरल धारा: सबरा श्रीखेत्र कोरापुट और स्वर्णखेत्र सुनाबेड़ा में उमड़ा भक्तों का महासागर कोरापुट–सुनाबेड़ा, ओडिशा: आशाढ़ शुक्ल एकादशी के पावन अवसर पर ओडिशा के कोरापुट ज़िले के दो प्रमुख जगन्नाथ धाम — सबरा श्रीखेत्र, कोरापुट और स्वर्णखेत्र, सुनाबेड़ा — में सुनाबेषा महोत्सव की भव्यता और भक्ति भाव की अद्वितीय झलक देखने को मिली। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की रथों पर स्वर्णाभूषणों से सजी दिव्य झांकी ने लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित किया। ‘सुनाबेषा’, जिसका अर्थ है ‘सोने की पोशाक’, रथयात्रा का वह विशेष दिन होता है जब भगवान अपने रथों पर स्वर्ण आभूषणों से विभूषित किए जाते हैं। यह अद्वितीय दृश्य केवल आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देखने को मिलता है, जब भगवान गुंडिचा मंदिर से वापसी के पश्चात रथों पर ही विराजमान रहते हैं। कोरापुट के सबरा श्रीखेत्र और सुनाबेड़ा के स्वर्णखेत्र दोनों स्थलों पर भगवानों को सोने के मुकुट, गदा, चक्र, तलवार, ढाल, बाजूबंद, हार, कर्णफूल और कमरबंध जैसे अलंकरणों से सजाया गया। दर्शन हेतु पहुंचे श्रद्धालु भगवान के इस दिव्य स्वरूप को देखकर भावविभोर हो उठे। इस वर्ष सुनाबेषा महोत्सव में दोनों तीर्थस्थलों पर अनुमानित एक लाख से अधिक श्रद्धालु उपस्थित हुए। भक्तगण प्रातः काल से ही कतारों में खड़े होकर भगवान के दर्शन का इंतज़ार करते देखे गए। पूरा वातावरण “जय जगन्नाथ”, “हरि बोल”, “हरे कृष्ण” जैसे भक्ति-घोषों से गुंजायमान रहा। कोरापुट के सबरा श्रीखेत्र में आदिवासी परंपराओं के साथ श्रीजगन्नाथ की आराधना की गई, जिसमें पारंपरिक नृत्य और लोकभजन ने भक्ति को सांस्कृतिक रंग भी प्रदान किया। वहीं सुनाबेड़ा के स्वर्णखेत्र में रथों के समीप विशाल मंडपों में हरिनाम संकीर्तन, प्रवचन, आरती एवं महाप्रसाद वितरण का आयोजन हुआ। बहुड़ा एकादशी को भगवान विष्णु और उनके अवतारों की आराधना का विशेष दिन माना जाता है। श्रद्धालुओं ने आज उपवास, जप, ध्यान और सेवा के माध्यम से पुण्य अर्जित किया। यह दिन विशेष रूप से भगवान जगन्नाथ के भक्तों के लिए अत्यंत महत्व रखता है, क्योंकि इसे रथयात्रा की पूर्णता और ईश्वर के दर्शन का चरम क्षण माना जाता है। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए प्रशासन द्वारा सुरक्षा, चिकित्सा, पेयजल, प्रसाद वितरण और ट्रैफिक नियंत्रण की पुख्ता व्यवस्था की गई थी। दोनों तीर्थस्थलों पर वालंटियर, पुलिस बल और चिकित्सा दलों ने पूरी निष्ठा से अपनी सेवाएँ दीं। आज का दिन कोरापुट और सुनाबेड़ा के लिए केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भक्ति, संस्कृति और सामाजिक समरसता का उत्सव बन गया। रथों पर विराजमान स्वर्ण-भूषित भगवानों के दर्शन कर भक्तों की आंखें श्रद्धा से छलक पड़ीं और हृदय ईश्वरीय प्रेम से भर गया।

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