डीएलएसए ने बाल विवाह एक्ट, पोक्सो एक्ट और किशोर न्याय एक्ट के बारे में किया कार्यशाला का आयोजन
– सीजेएम ने बाल विवाह एक्ट, पोक्सो एक्ट और किशोर न्याय एक्ट कार्यशाला में दिए जरूरी निर्देश
भिवानी, 7 मई। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के चेयरमैन तथा जिला एवं सत्र न्यायाधीश दीपक अग्रवाल के निर्देशानुसार प्राधिकरण के सीजेएम-कम-सचिव कपिल राठी की अध्यक्षता में स्थानीय एडीआर सेंटर में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में मध्यस्थों, पैनल अधिवक्ताओं और पैरा लीगल वॉलिंटियर्स के लिए किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम व पास्को अधिनियम एवं बाल विवाह अधिनियम बारे कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में सीजेएम श्री राठी ने संबंधित अधिनियम पर विस्तार से प्रकाश डाला और जरूरी निर्देश दिए।
कार्यशाला में जिला बाल संरक्षण अधिकारी हरबंस कौर ने बताया कि कानून के अनुसार, निश्चित आयु से पहले किसी भी बच्चे का विवाह यानी नाबालिग उम्र में बच्चे का विवाह कर देना बाल विवाह होता है। जो कि कानूनी अपराध है। उन्होंने बताया कि समाज में बाल विवाह के सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक रूप में कई कारण हैं। विवाह में अधिक खर्च आता है, जिससे बचने के लिए कई परिवार वाले अपने बच्चों का बाल विवाह कर देते है। घर में एक शादी तय होती है तो, मां-बाप सोचते हैं कि इसी के साथ दूसरे बच्चे की शादी कर दी जाए। उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होता है कि बच्चों की आयु क्या है। इस तरह, माता-पिता को प्रति विवाह खर्च न्यूनतम मिलता है। कई बार देखा गया है कि घर के बड़े-बुजुर्ग कहते है कि वो अपने घर के बच्चों की शादी देख लें और उसके बाद चाहे उनकी मृत्यु हो जाए, जिसके नतीजन, किशोरावस्था में ही बच्चों के हाथ पीले कर दिए जाते हैं। जोकि कानूनी रूप से अपराध है, जिसमें सजा का प्रावधान है।
कार्यशाला में प्राधिकरण के पैनल अधिवक्ता विनोद कुमार ने पॉक्सो अधिनियम और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम है, बाल यौन-शोषण, यौन उत्पीड़न एवं पोर्नोग्राफी के विरुद्ध कार्यवाही के लिए कड़े प्रावधान किए गए है। यदि बच्चे द्वारा कोई गैर क़ानूनी या समाज विरोधी कार्य हो जाता है, तो इस गैर कानूनी कार्य को बाल अपराध कहा जाता है। कानूनी प्रक्रिया के तहत बाल अपराध आठ वर्ष से अधिक तथा 16 वर्ष से कम आयु के बालक द्वारा किया गया अपराध गैर कानूनी होगा, जिसे कानूनी प्रक्रिया के तहत बाल न्यायालय के समक्ष उपस्थित करते है। उन्होंने बताया कि विधेयक के प्रावधानों के अनुसार, गंभीर अपराधों में लिप्त पाए जाने वाले बाल अपराधियों को जेल की सजा दी जा सकती है। जबकि उन्हें उम्रकैद या फांसी की सजा नहीं होगी। इस अवसर पर अनेक पैनल अधिवक्ता गण व पीएलवी मौजूद थे।
******** ****************