
शोर चुनावी शोर में दब गयी श्रमिकों की समस्यायें
जौनपुर।चुनावी शोर मजदूरों की समस्यायें मुददा न बनकर दब गयी । श्रमिकों की समस्याओं के निदान पर चर्चा नहीं हो सकी जो लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है। श्रमिकों की समस्यायें में दब गयी। श्रमिकों की आर्थिक, सामाजिक स्थिति सुदृढ़ न होने पाना एक बहुत बड़ी समस्या है, इस समस्या के समाधान हेतु सरकार और राजनैतिक दल आज तक कितना प्रयास किये यह श्रमिकों की हालत देखकर अन्दाजा लगाया जा सकता है। इस पर विशेष तौर पर ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि श्रमिक वर्ग भी समाज के अन्य वर्ग की तरह आत्म निर्भर बन सके। जिले में कल कारखानों की कमी से मजदूर वर्ग को काम नहीं मिल पाता। षहर के ष्षाही पुल, पालिटेकनिक चैराहा, चंाद मेडिकल स्टोर के निकट सहित कई स्थानों पर सवेरे मजदूर एकत्रित होते है उनमें से आधे को भी काम नहीं मिल पता और अधिकतर निराष लौट जाते है। बड़ी संख्या में जिले के मजदूर वर्ग बाहरी प्रदेषों में जाकर जीविकोपार्जन के लिए कड़ी मेहनत कर रहे है। यहां एक कताई मिल थी उसे भी बन्द कर दिया गया। सतहरिया भी कुछ कारखाने है जिसमें जिले के बहुत लोग को रोजगार मिला है। नये कल कारखाने लग नहीं रहे है। ज्ञात हो कि किसी भी देश की आर्थिक गतिविधियों के सुचारू रूप से परिचालन में श्रमिक वर्ग का विशेष योगदान रहता है, या यूं कहें कि देश की आर्थिक उन्नति श्रमिक वर्ग के कंधों पर टिकी होती है। आज अंधे-आधुनिकीकरण के दौर में भी इस वर्ग का महत्व कम नहीं हुआ। उद्योग-धंधों, व्यापार-जगत, कृषि-उत्पादन और निर्माणात्मक क्रियाकलाप में मजदूर श्रम की भूमिका निःसंदेह सर्वाधिक रहती है। लेकिन, पिछले कुछ सालों में श्रमिक वर्ग कई प्रकार की दुश्वारियां झेलने को विवश है। श्रमिक वर्ग की 2 श्रेणियां प्रचलन में हैं। एक श्रेणी संगठनात्मक है, तो दूसरी असंगठनात्मक। जहां संगठित क्षेत्र के श्रमिक को न केवल पर्याप्त मजदूरी प्राप्त होती है बल्कि उसकी सामाजिक सुरक्षा भी सुनिश्चित की जाती है, उनको मासिक वेतन, महंगाई भत्ता, पैंशन और अन्य जरूरी सुविधाएं भी उपलब्ध करवाई जाती हैं, वहीं, असंगठित क्षेत्र की बात करें तो इसे कम मजदूरी पर काम करना पड़ता है, किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा भी नहीं दी जाती और इसका जीवन-यापन पूरी तरह से दैनिक मजदूरी पर आधारित होता है। ऐसे में असंगठित श्रमिक वर्ग अशक्त और दूसरों पर अधिक निर्भर होता है। विडंबना यह है कि देश में असंगठित श्रमिकों की तादाद बहुत ज्यादा है। इसे आंकड़ों में बताया जाए तो यह लगभग 90 फीसदी के इर्द-गिर्द होगी। दरअसल, आज देश की बड़ी आबादी दैनिक मजदूरी से जीवन का गुजारा करती है। मौजूदा वक्त में उद्योग-धंधों के शिथिल होने से इनका जीवन निर्वाह दूभर हो गया है। ऐसे में इन पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। श्रमिक वर्ग में समाज का बहुत बड़ा तबका शामिल है। हस्तशिल्पी, सफाई कर्मचारी, बढ़ई, लोहार, पशुपालक और जो दैनिक मजदूरी से जीवन निर्वाह करता है, वह मजदूर ही है। इनके अलावा, सूती वस्त्र उद्योग, चीनी उद्योग, सीमैंट उद्योग, लोहा और इस्पात उद्योग और कोयला खदानों में होने वाले क्रियाकलाप में श्रमिक वर्ग शामिल रहता है। आज श्रमिक वर्ग की समस्याओं के समाधान की आवश्यकता है।