
पिछली पराजय के बाद से ही यह सीट जीतने की पुरजोर कोशिश में जुटी भाजपा की वैतरणी पार करने का जिम्मा अब रितेश के ही कंधे पर आ पड़ा है।
राजनीति में कब क्या हो जाए इसका अनुमान लगा पाना कठिन होता है। जिले की राजनीति में ताजा घटनाक्रम भी इसी तरह की बड़ी उथल पुथल से जुड़ा है। जिले की एकमात्र संसदीय सीट यहां दशकों से अकबरपुर सुरक्षित के नाम से रही है। डेढ़ दशक पहले परिसीमन के बाद यह संसदीय सीट सामान्य श्रेणी में आ गई। इसका नाम बदलकर अंबेडकरनगर सीट हो गया। परिसीमन के बाद पहला चुनाव वर्ष 2009 में हुआ। सपा छोड़कर पूर्व विधायक राकेश पांडेय ने बसपा से टिकट हासिल कर लिया।
उन्होंने सामान्य हुई सीट पर जीत की कोशिशों में लगी भाजपा को झटका दे दिया। भाजपा ने तब अपने फायरब्रांड नेता विनय कटियार को उतार दिया था। इसके बाद भी हार मिली । वर्ष 2014 के चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी की लहर में भाजपा प्रत्याशी के रूप में हरिओम पांडेय ने पहली जीत दिलाई। बसपा प्रत्याशी के तौर पर राकेश पांडेय पराजित हुए।
वर्ष 2019 के चुनाव में एक बार फिर सीट पर कब्जा करने के लिए भाजपा ने तत्कालीन सहकारिता मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा को यहां कुर्मी बाहुल्य मतदाताओं को देखते हुए मैदान में उतारा। इस बार राकेश पांडेय के पुत्र रितेश ने बतौर बसपा प्रत्याशी जीत दर्ज कर सबको चौंका दिया। इस चुनाव में सपा ने बसपा से गठबंधन किया था।
ऐसे में दो चुनाव में कद्दावर नेताओं को उतारने के बाद भी भाजपा को पिता पुत्र का वर्चस्व पूरी तरह तोड़ने में सफलता नहीं मिली। इसी बीच बसपा से रितेश की दूरी बढ़ने का भाजपा ने फायदा उठाया। पीएम ने उन्हें संसद में लंच पर आमंत्रित कर लिया। बीते दिनों न सिर्फ रितेश भाजपा में शामिल हो गए वरन जलालपुर से सपा विधायक राकेश ने अंतरात्मा की आवाज पर राज्यसभा चुनाव में भाजपा का साथ दे दिया।
अब भाजपा ने रितेश को टिकट थमाया है। ऐसे में यह तस्वीर अत्यंत दिलचस्प हो चली है कि जो पिता पुत्र भाजपा की राह में रोड़ा बन रहे थे अब वही पिता पुत्र भाजपा की जीत के नायक बनते दिखेंगे। अयोध्या के निकट की सीट होने के कारण भाजपा यहां जीत तय करने के लिए पूरी ताकत लगाने की तैयारी में है।