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एंबुलेंस के ना मिलने से इलाज के अभाव में चार साल के बच्चे की मौत,

गढ़चिरौली के दुर्गम भागों की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था ने ली फिर एक जान


समीर वानखेड़े जिला संवादाता चंद्रपुर महाराष्ट्र:
ऐसा देखा गया है कि राज्य के लोगों और आवश्यक गंभीर रोगियों को तत्काल एम्बुलेंस और चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने के लिए सरकार द्वारा करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी आदिवासी क्षेत्रों के लोगों को स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं प्राप्त करने के लिए आज भी संघर्ष करना पड़ता है।   चार साल के एक बच्चे की अचानक हालत बिगड़ने के बाद समय पर एंबुलेंस उपलब्ध नहीं होने के कारण इलाज के अभाव में उसकी मौत हो गई। इसलिए इस घटना ने एक बार फिर यह उजागर कर दिया है कि आजादी के 77 साल बाद भी सुदूर इलाकों में रहने वाले लोग बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।
सामने आई जानकारी के मुताबिक मृत बच्चे का नाम आर्यन अंकित तलांडी (4 वर्ष, निवासी कोरेली जिला अहेरी) है। यह घटना 24 जून को हुई और तीन दिन बाद सामने आई। अहेरी तालुका के सुदूर गांव कोरेली निवासी अंकित तलंदी का चार साल का बेटा आर्यन 23 जून की आधी रात को बीमार हो गया। उसके पेट में दर्द होने लगा। इसी बीच आधी रात को उसे इलाज के लिए पांच किमी दूर पर्मिली स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया। उस समय मौजूद चिकित्सा अधिकारियों ने आर्यन को प्राथमिक उपचार दिया। इसके बाद आर्यन को उसके माता-पिता वापस अपने घर कोरेली ले गए। 24 जून की सुबह उनकी तबीयत अधिक खराब होने पर उन्हें फिर से पर्मिली स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया। इसी समय चिकित्सा अधिकारियों ने उसे अहेरी ले जाने को कहा।
चूँकि उसे अहेरी ले जाने के लिए समय पर एम्बुलेंस उपलब्ध नहीं थी, इसलिए माता-पिता आर्यन को बस से अहेरी ले गए। इसी बीच रास्ते में उसकी हालत बिगड़ गई। जैसे ही बस ड्राइवर गौरव अमले को इस बात का एहसास हुआ, वह बस को सीधे अलापल्ली के स्वास्थ्य केंद्र ले गया। पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। इस वक्त आर्यन के साथ उनकी दादी और दादा भी थे। पिता दोपहिया वाहन से आने वाले थे। चूंकि परिवार में एकमात्र बच्चे की मृत्यु हो गई, इसलिए माता-पिता ने अस्पताल परिसर में एक ताहो को तोड़ दिया था। 
स्वास्थ्य विभाग की लचर कार्यप्रणाली के कारण इस इलाके में हर साल ऐसी दिल दहला देने वाली घटनाएं सामने आती हैं, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही के कारण तस्वीर यह है कि व्यवस्था सुधरने की बजाय बिगड़ती जा रही है. इसलिए सवाल पूछा जा रहा है कि क्या यहां के आदिवासियों की जान की कोई कीमत नहीं है।

AKHAND BHARAT NEWS

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